बौद्ध दर्शन में जरा—मरण यानी बुढ़ापा और मृत्यु को दुख का कारण बताया गया है। क्योंकि सिद्धार्थ ने किसी बूढ़े व्यक्ति और एक शव को ले जाते देखा तो उन्हें संसार से वैराग्य हो गया। इस घटना का उनके जीवन पर इतना गहरा असर हुआ कि उन्होंने राजसी ठाट बाट छोड़ दिया और इस दुख को दूर करने के उपाय खोजने में लग गए। फिर भी संसार जरा—मरण के दुख से दूर नहीं हो पाया है। वैसे भी कोई बूढ़ा नहीं होना चाहता।
अब वैज्ञानिक उम्र अपने साथ दिखने वाले शारीरिक बदलाव का अध्ययन कर रहे हैं। दरअसल, उम्र बढ़ने के साथ हड्डियां कमजोर हो जाती हैं, त्वचा लटक जाती है, देखने की क्षमता कम होने लगती है और समय के साथ-साथ याददाश्त भी कमजोर पड़ने लगती है। जीवन की इसी समस्या का समाधान वैज्ञानिकों ने ढूंढ लिया है।
यूनिवर्सिटी ऑफ कैलीफोर्निया, सैनडियागो (यूसीएसडी) के वैज्ञानिकों ने यीस्ट यानी खमीर पर ‘एजिंग’ का असर जानने के लिए स्टडी की है। खमीर की कोशिकाओं में आसानी से बदलाव लाए जा सकते हैं। उनको इसके जरिये ये पक्का करना था कि क्या अलग-अलग कोशिकाएं अलग-अलग दर से बूढ़ी होती हैं। क्या उन सभी का एक ही लक्ष्य होता है।
वैज्ञानिकों ने पाया कि ये सच नहीं है। उन्होंने पाया कि एक ही जैसे वातावरण में पलने वाली लगभग समान जेनेटिक मटीरियल की कोशिकाएं अलग-अलग तरीकों से बूढ़ी होती हैं। जांची गई सभी खमीर कोशिकाओं में से आधी बूढ़ी हुईं क्योंकि उनके न्यूक्लियस के चारों तरफ का घेरा ‘न्यूक्लिओलस’ नष्ट होने लगा था। कम्यूटर मॉडलिंग और अन्य जटिल तकनीकों का इस्तेमाल करके ही वैज्ञानिक इस असाधारण नतीजे पर पहुंचे हैं।
दूसरी तरफ, आधी कोशिकाएं इसलिए बूढ़ी हुईं क्योंकि माइटोकॉन्ड्रिया ने सामान्य रूप से काम करना बंद कर दिया था। कोशिका का ये अंग ऊर्जा उत्पन्न करने के लिए जाना जाता है। वैज्ञानिकों ने पाया कि कोशिकाओं के मरने के दो तरीके होते हैं- न्यूक्लियर या माइटोकॉन्ड्रियल।
इस स्टडी के सीनियर ऑथर नान हाओ का कहना है—हमने हर एजिंग रूट के मॉलिक्यूलर प्रोसेस और उनके बीच के कनेक्शन को ढूंढा, उस मॉलिक्यूलर सर्किट को खोजा जो बूढ़ा करने वाली कोशिकाओं को नियंत्रित करता है।
वैज्ञानिकों ने ‘एजिंग लैंडस्केप’ को स्थापित करके बूढ़ा होने की प्रक्रिया में हेरफेर कर इस पूरी प्रक्रिया में बदलाव ला दिया। ये कामयाबी कोशिकाओं के डीएनए में बदलाव करके मिली है। स्टडी के मुताबिक वैज्ञानिक एक ‘अनूठा एजिंग रूट’ बनाने में समर्थ थे, जिसने कोशिकाओं का जीवन लंबा कर दिया। इन बदलावों को समझते हुए बूढ़ा होने की प्रक्रिया में देरी लाई जा सकती है।
फिलहाल ये परीक्षण खमीर कोशिकाओं पर किया गया है। इंसानों पर इसका परीक्षण करने से पहले वैज्ञानिक ज्यादा जटिल कोशिकाओं पर परीक्षण करना चाहते हैं। उसके बाद कुछ जीवों पर परीक्षण किया जाएगा। अगर परीक्षण सफल रहा तो बुढ़ापा लंबे समय के लिए हमारे जीवन से दूर हो जाएगा।