रांची। किसी भी देश अथवा समाज के बारे में जानना है तो उसके साहित्य में उतरना होगा। इस संदर्भ में साहित्य की प्रासंगिकता हमेशा बनी रहती है। आज कल तो साहित्य जो कर दिखाता है, वह करना मीडिया के वश में भी नहीं रह गया है। उपभोक्तावादी संस्कृति ने साहित्य को हासिये पर पहुंचा दिया है। देश हित में साहित्य और समाज को जुड़ना ही होगा।
इसी प्रसंग को आगे बढ़ाते हुए सेंट जेवियर्स कॉलेज के हिंदी विभाग की ओर से आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय वेबिनार के दूसरे दिन बुधवार को प्रथम सत्र के प्रमुख वक्ता जबलपुर के साहित्यकार रमेश सैनी ने साहित्य और समाज का अंतरसंबंध विषय पर वक्तव्य दिया। उन्होंने कहा कि साहित्य की प्रासंगिकता समाज के लिए हमेशा बनी रहेगी।
श्री सैनी ने कहा कि साहित्य समाज का दिशा निर्धारक होता है। साहित्य मानव समुदाय व अर्जित की गई समृद्ध भाषा की उपलब्धि है। साहित्य अपने समय का प्रतिबिंब है। इसमें समाज निर्माण की शक्ति होती है। आज साहित्य की जरूरत ज्यादा बढ़ गई है और साहित्यकारों का सामाजिक दायित्व भी बढ़ गया है।
दूसरे सत्र में मुख्य वक्ता साहित्यकार दिलीप तत्त्वे ने साहित्य और समाज के पुराने संबंधों की पुनर्स्थापना विषय पर बात की। उन्होंने कहा कि लोग अच्छे साहित्य में अपने आपको ढूंढ़ते हैं। साथ ही अपने पास-पड़ोस, परिवेश की कथा और भाषा को तलाशते हैं। लोग युग के अनुरूप बदली परंपराओं और संस्कृति को अपनाना चाहते हैं, ताकि समय के साथ चल सकें।
उन्होंने समय सापेक्ष साहित्य लेखन पर जोर दिया। वेबिनार में प्रतिभागियों ने साहित्य, समाज और भाषा से जुड़े कई प्रश्न भी वक्ताओं से पूछे, जिनके जवाब उन्होंने दिए। संचालन कॉलेज के हिंदी विभागाध्यक्ष सह वेबिनार के संयोजक डॉ कमल कुमार बोस ने किया। इसमें हिंदी विभाग के सभी शिक्षकों समेत बड़ी संख्या में अन्य प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया।
जाहिर है कि साहित्य को समाज से जोड़े रखने के लिए इस तरह के वेबिनार संजीवनी साबित हो सकते हैं, क्योंकि आज के मीडिया में साहित्य से संबंधित खबरों का सर्वथा अभाव रहता है। लोग साहित्य तो पढ़ना चाहते हैं, लेकिन जितना प्रचार प्रसार फिल्मों और क्रिकेट को मिलता है, उतना साहित्य को नहीं मिल पाता।