12 Jyotirlinga temple: श्री रामा कृष्णा धमार्थ सेवा ट्रस्ट ने वृंदावन में चौरासी कोस परिक्रमा मार्ग पर एक अद्भुत द्वादश ज्योतिर्लिंग मंदिर का निर्माण कराया जा रहा है। दस बीघे जमीन पर मंदिर का निर्माण कराया जा रहा है, जिसकी चारदिवारी का कार्य जल्द ही आरंभ हो जाएगा।
12 Jyotirlinga temple: 84 कोष परिकर्मा मार्ग पर होगा मंदिर
इंफोपोस्ट न्यूज
नोएडा। 12 Jyotirlinga temple: हमारी सनातनी परंपराओं के पीछे विज्ञान कितना गहरा है, जिस संस्कृति से हम पैदा हुए, वही सनातन है। विज्ञान को परंपरा का आधार पहनाया गया है ताकि यह प्रवृत्ति बने और हम भारतीय हमेशा वैज्ञानिक जीवन जीते रहें।
आपको जानकर हैरानी होगी कि भारत में केदारनाथ से रामेश्वरम तक एक ही सीधी रेखा में बने महत्वपूर्ण शिव मंदिर हैं। आश्चर्य है कि हमारे पूर्वजों के पास ऐसी कौन सा विज्ञान और तकनीक थी जो हम आज तक समझ नहीं पाए।
उत्तराखंड के केदारनाथ, तेलंगाना के कालेश्वरम, आंध्र प्रदेश के कालेश्वर, तमिलनाडु के एकम्बरेश्वर, चिदंबरम और अंत में रामेश्वरम मंदिर नामक शिवालस एक सीधी रेखा में बने हैं। सनातन धर्म का अनुसरण करते हुए जाने 12 ज्योतिर्लिंग के महत्वपूर्ण रहस्य।
अद्भुत द्वादश ज्योतिर्लिंग मंदिर निर्माण का संकल्प
कथा व्यास आचार्य महेंद्र उपाध्याय ने बताया कि श्री रामा कृष्णा धमार्थ सेवा ट्रस्ट ने वृंदावन में चौरासी कोस परिक्रमा मार्ग पर एक अद्भुत द्वादश ज्योतिर्लिंग मंदिर निर्माण कराने का संकल्प लिया है जोकि दस बीघे जमीन पर बनेगा, मंदिर की चारदिवारी का कार्य जल्द ही आरंभ हो जाएगा।
इस पावन कार्य की मुख्य भूमिका में श्री रामा कृष्णा धमार्थ सेवा ट्रस्ट के संस्थापक प्रवीण पांडे है वहीं सहयोगी संस्था के रूप में अद्विक आर्या सेवा संस्थान के संस्थापक अतुल मिश्रा एवं अंतर्यामी सत्संग भवन के संस्थापक प्रवीण शर्मा का विशेष योगदान है।
निर्माण कार्य सनातन प्रेमियों की मदद से ही संभव
उन्होंने कहा कि द्वादश ज्योतिर्लिंग मंदिर निर्माण कार्य सनातन प्रेमियों की मदद से ही संभव है, जिसका भव्य स्वरूप होगा। मैं सनातन प्रेमियों से विनम्र निवेदन करता हूं कि इस पावन कार्य में अपना कुछ अंशदान व श्रमदान कर इस सनातनी कार्य में सहयोग करें।
मान्यता है कि 12 जगहों पर शिव जी ज्योति स्वरूप में विराजमान हैं। इस वजह से इन 12 मंदिरों को ज्योतिर्लिंग कहा जाता है। बारह ज्योतिर्लिंगों में सोमनाथ, मल्लिकार्जुन, महाकालेश्वर, ओंकारेश्वर, केदारेश्वर, भीमाशंकर, विश्वेश्वर (विश्वनाथ), त्र्यंबकेश्वर, वैद्यनाथ, नागेश्वर, रामेश्वर, घुष्मेश्वर (घृष्णेश्वर) शामिल हैं।