श्रीकांत सिंह
भूत—प्रेत वाली फिल्मों में आपने देखा होगा कि अनायास ही किसी अज्ञात स्रोत से गीत संगीत सुनाई पड़ने लगता है। कुछ ऐसा ही हकीकत में होने वाला है। आपके कान में कोई लीड नहीं होगी, लेकिन संगीत सीधे आपके मस्तिस्क तक पहुंचेगा। हम बात कर रहे हैं एलन मस्क की, जिन्होंने जाने-माने कम्प्यूटर वैज्ञानिक ऑस्टिन हॉवर्ड से बातचीत में दावा किया है कि अब एक डिवाइस संगीत को सीधे दिमाग तक पहुंचा देगी।
दरअसल, आवश्यकता ही आविष्कार की जननी है। पहले हम लीड लगा कर संगीत सुनते थे, लेकिन लीड का तार हमारे शरीर के साथ लटक कर असुविधा पैदा करता रहा, जिसका समाधान ब्लूटूथ डिवाइस ने कर दिया। उसके बड्स कान में लगा लिए जाते हैं और लीड वाले तार की जरूरत नहीं पड़ती। लेकिन बड्स के भी कान से निकल कर गिर जाने की असुविधा बनी रहती है। उसी समस्या के समाधान के रूप में नई डिवाइस का आविष्कार किया जा रहा है, जिसमें बड्स की भी जरूरत नहीं रह जाएगी।
दुनिया की मशहूर कंपनियों में एक टेस्ला के सीईओ एलन मस्क का कहना है कि इस डिवाइस से संगीत सीधे दिमाग में पहुंचेगा और हेडफोन की कोई जरूरत नहीं होगी। यही नहीं, यह चिप डिप्रेशन से भी छुटकारा दिलाएगी। कम्प्यूटर से दिमाग को जोड़ने वाली तकनीक पर टेस्ला सीईओ 28 अगस्त को खुलासा करेंगे। यह एक छोटे से चिप के बराबर होगा, जिसे इंसान के दिमाग में इम्प्लांट किया जाएगा।
मस्क की न्यूरालिंक ब्रेन इम्प्लांट तकनीक सफल हो जाती है, तो दुनिया से हेडफोन जैसी चीज खत्म हो जाएगी। एलन मस्क एक प्रोजेक्ट को फंड कर रहे हैं जिसका नाम है-न्यूरालिंक। इसके तहत एक ऐसा कम्प्यूटर बनाया जा रहा है, जो एक छोटे से चिप के बराबर होगा। इसे इंसान के दिमाग में इम्प्लांट किया जाएगा।
एक इंच की इस चिप को सर्जरी कर इम्प्लांट किया जा सकता है। 28 अगस्त को कंपनी के एक समारोह में इसे लॉन्च किया जा सकता है। एलन मस्क ने 2016 में न्यूरालिंक नामक प्रोजेक्ट लॉन्च किया था। इसके तहत अत्यंत बारीक और लचीले थ्रेड्स डिजाइन किए गए हैं, जो इंसान के बाल की तुलना में दस गुना पतले हैं और इसे सीधे दिमाग में इम्प्लांट किया जा सकता है।
यह चिप हजारों माइक्रोस्कोपिक थ्रेड से जुड़ी होगी। इस ब्रेन कम्प्यूटर इंटरफेस टेक्नोलॉजी की मदद से कई तरह की न्यूरोलॉजिकल बीमारियों का इलाज आसानी से किया जा सकता है। साथ ही यह डिवाइस लकवाग्रस्त और रीढ़ की चोट के इलाज के लिए भी वरदान साबित होगी।
एक ट्विटर यूजर प्रणय पथोले ने पूछा था कि क्या न्यूरालिंक का इस्तेमाल दिमाग के उस हिस्से को फिर से प्रशिक्षित करने के लिए किया जा सकता है, जो किसी भी तरह के व्यसन या डिप्रेशन पैदा करने के लिए जिम्मेदार होते हैं, मस्क ने कहा- हां, बिल्कुल। इस तकनीक को अल्जाइमर और पार्किंसंस जैसी बीमारियों से पीड़ित लोगों के जीवन को बेहतर बनाने में इस्तेमाल किया जा सकता है। बंदरों और चूहों पर सफल परीक्षण के बाद इसका इंसानी परीक्षण अंतिम दौर में है।
न्यूरालिंक टेक्नोलॉजी इंसानों के दिमाग में ‘अल्ट्रा थिन थ्रेड्स’ के जरिये इलेक्ट्रॉड्स इम्प्लांट करने से संबंधित है। ये इंसान के दिमाग की स्किन में चिप और थ्रेड्स के जरिये कनेक्टेड होंगे। ये चिप रिमूवेबल पॉड से लिंक्ड होंगे, जिन्हें कानों के पीछे फिट किया जाएगा और बिना तार के दूसरे डिवाइस से कनेक्ट किया जाएगा। इसके जरिये दिमाग के अंदर की जानकारी सीधे स्मार्टफोन या फिर कम्प्यूटर में दर्ज हो सकेगी।
ये चिप शरीर के हॉर्मोन्स को भी कंट्रोल करने का काम करेगी। चिप ब्रेन डिसॉर्डर के लिए इस्तेमाल होने के साथ ही आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का भी काम भी करेगी। यानी बीमारी के साथ ही शरीर के कई जरूरी काम ये चिप कर सकती है।