
मुझे तोड़ लेना बन माली, उस पथ पर तुम देना फेंक। मातृभूमि पर शीष चढ़ाने जिस पथ जाएं वीर अनेक। माखनलाल चतुर्वेदी की ये पंक्तियां अग्निपथ के संदर्भ में याद आ रही हैं। यह पुष्प की अभिलाषा है कि सैनिकों के पथ पर आग नहीं, फूल बिखेरने की जरूरत है। लेकिन भयावह गर्मी में अग्निपथ या अग्निवीर शब्द जो भी लेकर आया, उसकी बुद्धि शायद घास चरने चली गई थी।
शब्द ब्रह्म का ही एक स्वरूप, गलत शब्द तो गलत परिणाम
श्रीकांत सिंह
नई दिल्ली। राजनीति में चुन चुन कर गलत शब्दों का चयन किया जा रहा है। यह चयन कोई ऐरा गैरा नहीं, हमारी सरकार कर रही है। परिणाम आपके सामने है। भारतीय सेना के तीनों अंगों- थल, जल और वायु सेना में भर्तियों के लिए अग्निपथ योजना की घोषणा के बाद से कई तरह के सवाल उठ रहे हैं।
तमाम तरह की शंकाओं के कारण देश के विभिन्न राज्यों में युवा सड़कों और रेलवे ट्रैकों पर उतर गए हैं। अग्निवीर के रूप में चार वर्षों तक सैन्य सेवा के बाद के भविष्य को लेकर सशंकित युवाओं की भीड़ उग्र हो गई और जमकर उत्पात मचाया।
बिहार में बीजेपी के दो विधायक भी आक्रोशित युवाओं के निशाने पर आ गए। वहीं, हरियाणा के पलवल में स्थिति इतनी बिगड़ गई कि वहां इंटरनेट बंद करना पड़ गया। फरीदाबाद में धारा 144 लागू करनी पड़ी। अग्निपथ योजना को लेकर युवाओं में उबलते आक्रोश को देखते हुए सरकार ने भी सफाई पेश की है।
दर्जनों ट्रेनें निरस्त, संपत्ति को भारी नुकसान
जगह-जगह प्रदर्शनों के कारण 34 से अधिक ट्रेनों को निरस्त कर दिया गया। आठ अन्य ट्रेनों को आंशिक रूप से निरस्त किया गया। रेलवे के मुताबिक, कम-से-कम 72 ट्रेनें इन प्रदर्शनों के कारण अपने नियत समय से देरी से चल रही हैं। अकेले मध्य पूर्व रेलवे जोन में ही 22 ट्रेनें रद्द करनी पड़ीं। बिहार के छपरा, गोपालगंज, कैमूर और गया में ट्रेनों में आग लगा दी गई। कई बोगियां जलकर नष्ट हो गईं।
हरियाणा के पलवल में अग्निपथ योजना के खिलाफ प्रदर्शन हिंसक हो गया। पथराव और गाड़ियों में आगजनी की गई। पुलिस ने हालात पर काबू पाने के लिए बल प्रयोग किया और प्रशासन ने इंटरनेट सेवा को बंद कर दिया है। प्रदर्शनकारियों ने उपायुक्त कार्यालय के सामने विरोध प्रदर्शन किया और राष्ट्रीय राजमार्ग 19 को जाम कर दिया। योजना का अग्निपथ अग्निवीर नाम क्या रखा, पूरा देश आग के हवाले कर दिया गया। इसलिए सरकार को शब्दों का चयन बहुत ही सोच समझकर करना होगा।
कहीं कृषि कानूनों की तरह न हो जाए ‘अग्निपथ’ का हश्र
केंद्र सरकार की ‘अग्निपथ योजना’ का बिहार सहित देश के सात राज्यों में जिस तरह से हिंसक विरोध जारी है, उससे यह सवाल उठने लगा है कि क्या इस योजना का हश्र भी कहीं कृषि कानूनों की तरह तो नहीं होगा? इसका एक बड़ा कारण योजना के विरोध के पहले दिन ही सरकार का बैकफुट पर जाकर अग्निवीर भर्ती की अधिकतम आयु सीमा 21 से बढ़ाकर 23 साल करना है। वैसे, यह केवल एक साल के लिए ही किया गया है।
तर्क यह दिया गया कि कोरोना काल में सेना में भर्ती न हो पाने की वजह से ऐसा किया गया है। लेकिन यह प्रावधान तो योजना लाते समय ही किया जाना चाहिए था। दो साल से सेना में भर्तियां नहीं हुई हैं, यह तो सरकार को पहले से मालूम था। अगर युवाओं का यह हिंसक प्रदर्शन ऐसे ही जारी रहा तो मुमकिन है कि योजना में और भी संशोधन होते चले जाएं।
देशव्यापी शॉर्ट-टर्म यूथ रिक्रूटमेंट स्कीम
अग्निपथ दरअसल देशव्यापी शॉर्ट-टर्म यूथ रिक्रूटमेंट स्कीम है। पहली भर्ती प्रक्रिया में युवाओं को छह महीने की ट्रेनिंग दी जाएगी। यह अवधि सेवा के कुल चार साल में शामिल होगी। हर अग्निवीर को भर्ती के पहले साल 30 हजार रुपये महीना तनख्वाह मिलेगी। इसमें से 21 हजार रुपये उसे वेतन के रूप में मिलेंगे और बाकी 9 हजार रुपये अग्निवीर कॉर्प्स फंड में जमा होंगे। फंड कांट्रीब्यूटरी होगा, जिसमें इतनी राशि सरकार भी डालेगी।
दूसरे साल अग्निवीर की तनख्वाह बढ़कर 33 हजार, तीसरे साल 36.5 हजार तो चौथे साल 40 हजार रुपये हो जाएगी। फंड की राशि और ब्याज के रूप में जमा 11.71 लाख रुपये उसे नौकरी से बाहर होते समय मिलेंगे। सेवा के दौरान शहीद होने या दिव्यांग होने पर आर्थिक मदद मिलेगी। परिवार को सेवा निधि समेत एक करोड़ से ज्यादा की राशि ब्याज समेत दी जाएगी। शेष सेवा अवधि का वेतन भी दिया जाएगा। कुल अग्निवीरों में से एक चौथाई को अच्छे रिकाॅर्ड के आधार पर सेना में पक्की नौकरी दी जाएगी।
असुरक्षित भविष्य के मद्देनजर युवाओं में आया उबाल
एक ओर हमारे नेताओं का भविष्य इतना सुरक्षित है कि एक बार चुनाव जीत गए तो समझिए जीवन भी पेंशन के हकदार बन जाएंगे। वही नेता युवाओं का भविष्य तय करने में इतनी कंजूसी क्यों कर रहे हैं? यह बात समझ से परे है। वैसे भी तमाम सेवाओं पेंशन योजना समाप्त कर दी गई है। लेकिन सैनिकों का संबंध देश की सुरक्षा से है। उनके साथ कोई घात नहीं किया जाना चाहिए। जो युवा भर्ती के समय ही असंतोष की आग में जल रहे हैं, उनसे आप देश की सुरक्षा की उम्मीद कैसे कर सकते हैं?
कुछ ही वर्षों की बात है, सैनिकों के भोजन की गुणवत्ता पर सवाल उठे थे। इसीप्रकार सैनिकों के ताबूत घोटाले से देश को शर्मसार होना पड़ा था। पुलवामा हमले के समय सैनिकों को एयरलिफ्ट न किए जाने पर सवाल उठे थे। आखिर हमारी सरकार गलतियों पर गलतियां कब तक करती रहेगी? ऐसे में असुरक्षित भविष्य को लेकर युवाओं में उबाल आना स्वाभाविक था। फिर भी हिंसा और सरकारी संपत्ति को नुकसान कभी भी नहीं पहुंचाया जाना चाहिए। इसके लिए जितना युवा दोषी हैं, सरकार उससे कम कसूरवार नहीं।