
लंदन। राष्ट्रपति बनने के बाद से ही ईरान के मामले में अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप आक्रामक रहे हैं। इस मामले में उनका अपने सहयोगी देशों पर भी काफी दबाव रहा है। उन्हीं के दबाव में भारत को ईरान से दूरी बनानी पड़ी, नुकसान भी हुआ। क्योंकि अमेरिका के चक्कर में भारत को ईरान से सस्ता पेट्रोलियम खरीदने का मौका गंवाना पड़ा है। एक मित्र देश की मित्रता खोने के साथ ही भारत को चीन की कूटनीति का भी सामना करना पड़ा है।
अब ईरान पर फिर से संयुक्तराष्ट्र के वैश्विक प्रतिबंध लगवाने की अमेरिका की मुहिम खटाई में पड़ती नजर आ रही है। अमेरिका के हर कदम पर उसका साथ देने वाले ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी ने इस मसले पर साथ देने से मना कर दिया है। उधर, अपने सहयोगियों से समर्थन न मिलने पर अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पियो निराश दिखे और उन्होंने यूरोपीय देशों पर ‘अयातुल्लाह के साथ खड़े होने’ का आरोप लगा दिया।
माना जा रहा है कि संयुक्तराष्ट्र सुरक्षा परिषद में विरोध झेलने के बाद अमेरिका इस मुद्दे पर वीटो पावर का इस्तेमाल कर सकता है, ताकि ईरान पर प्रतिबंधों को फिर से लागू किया जा सके।
समझौते में शामिल रूस और चीन पहले से ईरान पर किसी तरह के प्रतिबंध के खिलाफ हैं। संयुक्तराष्ट्र सुरक्षा परिषद के सदस्यों ने ईरान पर अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध लगाने के अमेरिकी फैसले को ग़लत ठहराया है।
सुरक्षा परिषद के 15 में 13 सदस्यों ने कहा है कि अमेरिका का यह निर्णय इसलिए ग़लत है क्योंकि वो परमाणु समझौते के तहत सहमति से बनी एक प्रक्रिया पर चल रहा है। अमेरिका इस समझौते को दो साल पहले तोड़ चुका है।
अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पियो ने कहा था कि अगले 30 दिन के भीतर ईरान पर दोबारा संयुक्तराष्ट्र के प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं। इस पर अमेरिका के पुराने सहयोगियों ब्रिटेन, फ़्रांस, जर्मनी और बेल्जियम समेत चीन, रूस, वियतनाम, सेंट विंसेंट, दक्षिण अफ़्रीका, इंडोनेशिया, एस्टोनिया और ट्यूनेशिया ने चिट्ठी लिखकर अमेरिका के निर्णय को ग़लत ठहराया है।
अमेरिका ने ईरान पर विश्व शक्तियों के साथ 2015 के समझौते को तोड़ने का आरोप लगाया है, जिसका उद्देश्य प्रतिबंधों से राहत के बदले ईरान के परमाणु कार्यक्रम को रोकना था। लेकिन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इसे ‘सबसे ख़राब डील’ बताते हुए साल 2018 में इसे छोड़ दिया था।
अमेरिका चाहता है कि संयुक्तराष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव 2231 के तहत संयुक्तराष्ट्र के जो प्रतिबंध ईरान से हटा लिये गए थे, वे 19 सितंबर तक फिर से ईरान पर लग जाएं। यानी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के संयुक्तराष्ट्र असेंबली में वैश्विक नेताओं के बीच भाषण देने से कुछ दिन पहले।लेकिन अमेरिका को इस प्रस्ताव के तुरंत बाद विरोध का सामना करना पड़ा है।