
Arrest of Sisodia: एक सवाल सोशल मीडिया से लेकर समाचार के सभी स्रोतों में तैर रहा है कि क्या भाजपा वास्तव में भ्रष्टाचार को जड़ से समाप्त करने के प्रति प्रतिबद्ध है? क्या दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया की गिरफ्तारी भ्रष्टाचार पर कुठाराघात है या कुछ और? इसी को विस्तार से समझते हैं।
Arrest of Sisodia: सिसोदिया के इस्तीफे में छिपी रणनीति
इंफोपोस्ट डेस्क
Arrest of Sisodia: दिल्ली की शराब नीति मामले में मनीष सिसोदिया की गिरफ्तारी से कई सवाल पैदा हुए हैं। इसी विवाद पर उन्होंने पद से इस्तीफा भी दे दिया है। सीएम अरविंद केजरीवाल को लिखे अपने तीन पन्नों के इस्तीफे में उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधा है। इस्तीफे में उन्होंने लिखा है, ‘अब जबकि उन्होंने झूठे और निराधार आरोपों के आधार पर साजिश रची है और सारी हदें पार कर मुझे जेल में डाल दिया है, इसलिए मैं मंत्री के रूप में नहीं बना रहना चाहता।’
बता दें कि दिल्ली सरकार के प्रशासनिक चेहरा रहे सिसोदिया के पास 33 में 18 विभाग थे। सिसोदिया ने आरोप लगाया कि उन्हें ‘धमकाया गया, मजबूर किया गया और लालच दिया गया।उनके सामने नहीं झुके और इसलिए उन्हें सलाखों के पीछे डाल दिया गया। यह बेहद दुखद है कि पिछले आठ साल से ईमानदारी और निष्ठा से काम करने के बावजूद मुझ पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए गए। ये आरोप झूठे हैं। ये आरोप असल में कुछ नहीं, बल्कि उन कमजोर और कायर लोगों की साजिश हैं, जो अरविंद केजरीवाल की सच की राजनीति से डरे हुए हैं।’
मीडिया का एक वर्ग तो जज की भूमिका में
शायद यही वजह है कि अरविंद केजरीवाल के भी इस्तीफे की मांग जोर पकड़ रही है। इससे दिल्ली की जनता का फैसला अग्निपरीक्षा के दौर से गुजर रहा है। मनीष सिसोदिया को सुप्रीम कोर्ट से राहत न मिल पाने को अलग अलग तरीके से परिभाषित किया जा रहा है। मीडिया का एक वर्ग तो जज की भूमिका में आ गया है। भले ही अभी अंतिम फैसला अदालत को करना है।
सोशल मीडिया पर सक्रिय कुछ पत्रकार भी इस मामले को भाजपा के चुनावी भय से जोड़ कर देख रहे हैं। वरिष्ठ पत्रकार दीपक शर्मा ने तो यहां तक कह दिया है कि मनीष सिसोदिया आपरेशन 2024 के तहत जेल भेजे गए हैं। उन्होंने भविष्यवाणी भी की है कि विपक्ष के और भी ऐसे नेता जो पीएम मोदी के 2024 के अरमानों पर पानी फेर सकते हैं, केंद्रीय एजेंसियों के निशाने पर हैं।
क्या ये दिल्ली भाजपा में कलह जनित बौखलाहट है?
उनका यह भी दावा है कि दिल्ली भाजपा में मची कलह से उत्पन्न बौखलाहट की वजह से ये कदम उठाए गए हैं। क्योंकि आरोप यह लगाया गया है कि आबकारी नीति में कोई खामी नहीं थी तो उसे वापस क्यों लिया गया। क्या मनीष सिसोदिया को जेल भेजे जाने का यही एकमात्र आधार है? जानते हैं कि कानून के जानकार इस बारे में क्या कहते हैं?
सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता अमन लेखी ने कहा है, नीतियां बनाना और उसे वापस लेना सरकार का काम है। लेकिन उससे कोई आपराधिक मामला नहीं बन जाता। आमतौर पर ऐसे मामलों में एक ही व्यक्ति से पूछताछ की जाती है। जबकि उससे जुड़े सभी पक्षों के लोगों से भी पूछताछ की जानी चाहिए।
गिरफ्तारी की वैधानिकता पर सवाल
Arrest of Sisodia: उनके मुताबिक, अगर किसी प्रश्न का उत्तर मनीष सिसोदिया नहीं देते तो यह उनका मौलिक अधिकार है। एजेंसी का कर्तव्य है कि वह अपनी कुशलता से सच की खोज करे। गिरफ्तारी तभी की जानी चाहिए जब इस बात की आशंका हो कि आरोपित जांच में सहयोग के लिए उपस्थित नहीं होगा। लेकिन क्या दिल्ली सरकार में 18 विभाग संभालने वाले मनीष सिसोदिया कानून से भाग जाते? इसी प्रश्न ने मामले को राजनीतिक रंग दे दिया है।
आम आदमी पार्टी के नेता और समर्थक सड़कों पर हैं। उन्हें भाजपा को घेरने का एक मौका मिल गया है। वे कह रहे हैं कि यदि आरोप के आधार पर किसी बड़े नेता की गिरफ्तारी उचित है तो ऐसे कितने नेता हैं, जिन पर आरोप नहीं लगते रहते? यदि मात्र आरोप के आधार पर नेताओं को गिरफ्तार किया जाएगा, तो देश का काम काज ठप हो जाएगा। इस बारे में आप क्या सोचते हैं, कमेंट करके जरूर बताएं।