
Article 370: जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 बहाल किए जाने की वकालत पर सत्ता की सियासत तेज हो गई है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 फिर से लागू करने की वकालत की थी।
Article 370: अनुच्छेद 370 चर्चा में क्यों ?
श्रीकांत सिंह
नई दिल्ली। Article 370 : केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने पी चिदंबरम पर निशाना साधा है। जावड़ेकर ने एक सवाल उठाया है। क्या बिहार चुनाव के लिए कांग्रेस अपने घोषणा पत्र में चिदंबरम की बात का उल्लेख करेगी? क्योंकि कांग्रेस जानती है कि अनुच्छेद 370 के हनन के फैसले का देश के लोगों ने स्वागत किया था।
पी. चिदंबरम के बहाने ही प्रकाश जावड़ेकर ने राहुल गांधी पर भी निशाना साधा है। कहा है कि कांग्रेस नेता राहुल गांधी भी अपने भाषणों में पाकिस्तान की तारीफ करते हैं। यही नहीं, वह चीन की भी सराहना करते हैं।
एक अस्थायी प्रावधान था अनुच्छेद 370
Article 370 : पृष्ठभूमि पर नजर डालें तो 17 अक्टूबर, 1949 को अनुच्छेद 370 भारतीय संविधान का हिस्सा बना था। इसे एक ‘अस्थायी प्रावधान’ के रूप में जोड़ा गया था। इसने जम्मू-कश्मीर को छूट दी थी, ताकि वह अपने संविधान का मसौदा तैयार कर सके। और राज्य में भारतीय संसद की विधायी शक्तियों को प्रतिबंधित कर सके।
संविधान के प्रारूप में इसे एन गोपालस्वामी अय्यंगार ने प्रस्तुत किया था। अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा को यह सिफारिश करने का अधिकार दिया गया था कि भारतीय संविधान के कौन से अनुच्छेद राज्य में लागू होने चाहिए।
राज्य के संविधान का मसौदा तैयार करने के बाद जम्मू-कश्मीर संविधान सभा को भंग कर दिया गया था। अनुच्छेद 3 में भारत के राष्ट्रपति को अपने प्रावधानों और दायरे में संशोधन करने की शक्ति दी गई है।
अनुच्छेद 35A अनुच्छेद 370 से उपजा है। और जम्मू-कश्मीर संविधान सभा की सिफारिश पर 1954 में राष्ट्रपति के एक आदेश के माध्यम से लागू किया गया था। अनुच्छेद 35ए जम्मू-कश्मीर विधायिका को राज्य के स्थायी निवासियों और उनके विशेषाधिकारों को परिभाषित करने का अधिकार देता है।
अनुच्छेद 370 में परिवर्तन की आवश्यकता क्यों?
भारतीय संविधान में अनुच्छेद 370 को जम्मू-कश्मीर को स्वायत्तता प्रदान करने के लिए जोड़ा गया था। लेकिन यह कश्मीरियों की भलाई करने में विफल रहा। शायद यही वजह रही कि कश्मीर लंबे समय से उग्रवाद और हिंसा से पीड़ित रहा है।
इसने कश्मीर और अन्य राष्ट्रों के बीच खाई को बढ़ाने का कार्य किया। इसी की वजह से पाकिस्तान और चीन जैसे पड़ोसियों से भारत की सुरक्षा संबंधी चुनौतियां और जटिल हो रही थीं।
अनुच्छेद 370 पर केंद्र का निर्णय
अब अनुच्छेद-370 का केवल खंड-1 लागू रहेगा। शेष खंड समाप्त हो गए हैं। खंड-1 भी राष्ट्रपति की ओर से लागू किया गया। और राष्ट्रपति की ओर से ही इसे हटाया भी जा सकता है।
केंद्र के फैसले के अनुसार, जम्मू-कश्मीर को विशेषाधिकार नहीं। एकल नागरिकता। एक राष्ट्र एक ध्वज। अनुच्छेद 360 (वित्तीय आपातकाल) अब लागू।
दूसरे राज्य के लोग जम्मू-कश्मीर में ज़मीन खरीद सकते हैं। लद्दाख और जम्मू कश्मीर को अलग-अलग केंद्र-शासित प्रदेश का दर्ज़ा। जम्मू-कश्मीर विधानसभा का कार्यकाल-5 वर्ष। आरटीआई और मानवाधिकार नियम लागू।
संवैधानिक चुनौतियां
राष्ट्रपति का आदेश जम्मू-कश्मीर की विशेष स्थिति को समाप्त करने की मांग करता है। अनुच्छेद 370 (3) के अनुसार, राष्ट्रपति को इस तरह के बदलाव के लिए जम्मू-कश्मीर की विधानसभा की सिफारिश की आवश्यकता होगी।
हालांकि, 2019 के राष्ट्रपति के आदेश में अनुच्छेद 367 में एक उप-खंड जोड़ा गया है। यह कुछ शर्तों को प्रतिस्थापित करता है। “जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा” का अर्थ है “जम्मू-कश्मीर की विधान सभा”। “जम्मू-कश्मीर सरकार” का अर्थ है “जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल और मंत्रिपरिषद की सलाह पर कार्य करना”।
सरकार ने संविधान में संशोधन करके अनुच्छेद 370 के तहत स्वायत्तता को कम करने की मांग की। उसके लिए संसद में दो-तिहाई बहुमत की आवश्यकता होगी। इस प्रावधान को वर्तमान में सर्वोच्च न्यायालय में इस आधार पर चुनौती दी गई है क्योंकि इसने भारतीय संविधान में अनुच्छेद 35ए को केवल राष्ट्रपति के एक आदेश के माध्यम से जोड़ा।
अनुच्छेद 3 का उल्लंघन
जम्मू-कश्मीर को केंद्रशासित प्रदेश में बदलना अनुच्छेद 3 का उल्लंघन है। क्योंकि विधेयक को राज्य विधानसभा की ओर से राष्ट्रपति को नहीं भेजा गया था। राज्य के पुनर्गठन में, राष्ट्रपति के आदेश को भी राज्य की सरकार की सहमति की आवश्यकता होती है।
हालांकि, जम्मू-कश्मीर वर्तमान में राज्यपाल के अधीन है। राज्यपाल की सहमति को सरकार की सहमति माना जाता है। लेकिन इसके कुछ प्रतिकूल परिणाम सामने आ सकते हैं। उस पर चर्चा करना भी अब प्रासंगिक हो गया है।
तो बढ़ सकती है कश्मीर में हिंसा?
अनुच्छेद 370 को कश्मीरियों ने अपनी अलग पहचान और स्वायत्तता के रूप में चिन्हित किया है।अनुच्छेद 370 के कमज़ोर पड़ने की प्रतिक्रिया के रूप में व्यापक विरोध और हिंसा बढ़ने की आशंका जताई गई है।
पाकिस्तान के आतंकवादी तत्व भारत में आतंकवाद फ़ैलाने के लिए कश्मीर का आसानी से उपयोग कर सकते हैं। कश्मीर में अशांति उसकी लोकतांत्रिक प्रगति को प्रभावित कर सकती है।
कश्मीर के उत्थान के लिए शिक्षा और रोज़गार को बढ़ावा दिया जा सकता है। इसके लिए 10 साल की रणनीति बना कर उसे लागू किया जाना चाहिए।
कश्मीर में वैधता के संकट को हल करने के लिए अहिंसा और शांति का गांधीवादी रास्ता अपनाया जाना चाहिए। सरकार सभी कश्मीरियों के लिए एक व्यापक आउटरीच कार्यक्रम शुरू कर सकती है। उसके जरिये अनुच्छेद 370 को हटाए जाने से उत्पन्न चुनौतियों को कम किया जा सकता है।
कश्मीरियत, इंसानियत, जम्हूरियत
कश्मीर समस्या के समाधान के लिए अटल बिहारी वाजपेयी के कश्मीरियत, इंसानियत, जम्हूरियत (कश्मीर की समावेशी संस्कृति, मानवतावाद और लोकतंत्र) के प्रारूप को राज्य में सुलह के लिए आधारशिला बनाया जाना चाहिए।
चिदंबरम ने अनुच्छेद 370 हटाने को गलत करार दिया था। उन्होंने ट्वीट किया था कि ‘जम्मू-कश्मीर की मुख्यधारा की क्षेत्रीय पार्टियों का जम्मू, कश्मीर और लद्दाख के लोगों के अधिकारों को बहाल करने के लिए संवैधानिक लड़ाई लड़ने के लिए एक साथ आना ऐसा घटनाक्रम है, जिसका सभी लोगों को स्वागत करना चाहिए।’ उन्होंने कहा था कि ‘कांग्रेस एक बार फिर अनुच्छेद 370 बहाल करने के लिए दृढ़ है।