Asafoetida cultivation: उत्तर भारत में हींग की खपत देश में सबसे ज्यादा है। लेकिन खेती न हो पाने से इसका आयात करना पड़ता है। आप जानते ही हैं कि निर्यात के मुकाबले आयात ज्यादा होने से देश की अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल असर पड़ता है और देश की मुद्रा रुपये में कमजोरी दर्ज की जाती है।
Asafoetida cultivation: हींग एक प्राकृतिक उपज, नहीं होती खेती
श्रीकांत सिंह
Asafoetida cultivation: दरअसल, हींग एक ऐसा उत्पाद है जिसकी खेती नहीं की जा सकती। इसकी पैदावार अफगानिस्तान, कजाकिस्तान, किरगिजिस्तान जैसे देशों में प्राकृतिक रूप से होती है। फिर भी देश में हींग के लिए आयात पर निर्भरता कम करने के प्रयास किए जा रहे हैं। तभी तो हींग की खेती को बढ़ावा देने का प्रयास किया जा रहा है।
हींग की खेती को बढ़ावा देने के लिए कृषि विज्ञान केंद्र उत्तरकाशी की ओर से एक विशेष प्रोजेक्ट पर कार्य किया जा रहा है। उसी क्रम में उत्तराखंड में हींग की खेती की तैयारी की जा रही है। देश में फिलहाल हर साल हींग के आयात पर औसतन एक हजार मिलियन डॉलर खर्च करने पड़ते हैं।
आमतौर पर हींग का प्रयोग रसाई में किया जाता है। इसका उपयोग खुशबू और दवा के लिए भी किया जाता है। देश में हींग की खेती न होने से सरकार को ईरान, अफगानिस्तान और उज्बेकिस्तान से हींग का आयात करना पड़ता है।
हींग के मामले में कैसे आत्मनिर्भर बनेगा भारत?
कृषि विज्ञान केंद्र उत्तरकाशी के प्रधान विज्ञानी और हेड सीएस राघव के मुताबिक, हींग की खेती करने की कोशिश हिमालय क्षेत्र में केंद्र सरकार के प्रयासों का एक हिस्सा है। क्योंकि कई कृषि उत्पादों के मामले में भारत को आत्मनिर्भर बनाने के प्रयास किए जा रहे हैं।
केंद्र सरकार ने देश के सभी कृषि शोध संस्थानों से कहा है कि वे हींग की खेती को बढ़ावा देने के लिए कार्य करें। अरुणाचल प्रदेश और कश्मीर में भी हींग की खेती के प्रयास किए जा रहे हैं।
हींग के बीज के लिए कृषि विज्ञान केंद्र की टीम इसी माह इंस्टीट्यूट आफ हिमालयन बायोरिसोर्स टेक्नालाजी पालमपुर हिमाचल प्रदेश जाएगी।
सितंबर में ट्रायल के रूप में हर्षिल और बगोरी के चार काश्तकारों के साथ हींग के बीज की बुआई की जाएगी। उत्तराखंड में हींग के उत्पादन के मामले में यह पहला प्रयोग है। कृषि विज्ञान केंद्र चिन्यालीसौड़ उत्तरकाशी के विज्ञानियों ने पाया कि हर्षिल घाटी की जलवायु हींग के उत्पादन के लिए अनुकूल है।
गाजर प्रजाति के एक पौधे से निकाली जाती है हींग
दरअसल, हींग गाजर प्रजाति का एक छोटा सा पौधा है। इसकी आयु पांच वर्ष होती है। एक पौधे से करीब आधा लीटर से एक लीटर तक गम जैसा उत्पाद प्राप्त होता है। बाजार में हींग की अच्छी मांग होने के कारण हींग की कीमत 30 हजार से 40 हजार प्रति किलोग्राम होती है।
पांच साल में इसका पौधा परिपक्व हो जाता है। अभी भारत हींग के लिए पूरी तरह ईरान, तुर्की, कजाकिस्तान, रूस, सीरिया और अफगानिस्तान पर निर्भर है। कृषि विज्ञान केंद्र के वरिष्ठ उद्यान विशेषज्ञ डॉक्टर पंकज नौटियाल के मुताबिक, हींग का उत्पादन ठंडे इलाकों में रेतीली मिट्टी यानी शुष्क ठंडी मरुस्थलीय भूमि में होता है।
हर्षिल की घाटी हींग उत्पादन के लिए अनुकूल है। पांच वर्ष पहले इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन बायोरिसोर्स टेक्नॉलॉजी पालमपुर ने लाहौल स्पीति और किन्नौर क्षेत्र में हींग की खेती शुरू की थी। किन्नौर और हर्षिल घाटी की एक जैसी जलवायु परिस्थितियां हैं।
पांच साल में परिपक्व होता है हींग का पौधा
कृषि विज्ञान केंद्र उत्तरकाशी के वरिष्ठ बागवानी विशेषज्ञ पंकज नौटियाल का कहना है कि हींग ठंडे रेगिस्तान जैसे वातावरण में होती है। इसके लिए बलुई मिट्टी की आवश्यकता होती है। उत्तराखंड में हर्षिल और बागोरी में ऐसा वातानरण देखने के लिए मिलता है।
इसके पौधे को लगाने का उपयुक्त समय अगस्त से सितंबर के बीच होता है। जब पांच साल में इसके पौधे परिवक्व हो जाते हैं तब इसकी जड़ से गोंद की तरह का पदार्थ निकलता है। बाद में प्रोसेंसिग के जरिये हींग का उत्पादन किया जाता है।
कई फायदों की वजह से हींग की खपत ज्यादा
सेहत के नजरिये से हींग काफी फायदेमंद होती है। हींग का इस्तेमाल खाने में स्वाद बढ़ाने के लिए भी किया जाता है। भोजन में हींग को शामिल करके आप अपने डाइजेशन को मजबूत कर सकते हैं। तभी तो बाजार में गोली के रूप में हिंगोली प्रोडक्ट मिलता है।
वेट लॉस में भी हींग से अच्छा फायदा मिलता है। हींग में मौजूद एंटीबैक्टीरियल और एंटीवायरल गुण हमारे संपूर्ण स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद होता है। हींग को पानी में मिलाकर पीने से पाचन तंत्र दुरुस्त होता है और मेटाबॉलिजम को भी तेज करने में मददगार होता है। शरीर के खराब कोलेस्ट्रोल को भी हींग नियंत्रित करती है और आपके हार्ट को भी स्वस्थ रखती है।