सत्य ऋषि
शायद आप जानते होंगे कि दिन और रात हमेशा बराबर नहीं होते। गर्मी में दिन बड़ा होता है और जाड़े में रात। दिन और रात की अवधि में धीरे धीरे परिवर्तन होता रहता है। और एक समय ऐसा आता है जब दिन और रात दोनों बराबर हो जाते हैं। ऐसा वर्ष में दो बार 21 मार्च और 23 सितंबर को होता है। इसी प्रकार 24 दिसंबर को सबसे छोटा दिन और सबसे बड़ी रात होती है तो 21 जून को सबसे बड़ा दिन और सबसे छोटी रात होती है।
हिंदी महीनों की बात करें, तो इस परिवर्तन को ग्रामीण अंदाज में बताया गया है। अगहन चूल्ही का अदहन, पूस काना टूस, माघ तिलातिल बाढ़ै तो फागुन गोड़ा काढ़ै। अर्थात—अगहन के महीने में चूल्हे पर पानी जितनी देर में गरम होता है, उतनी देर में दिन बीत जाता है। यानी दिन छोटा होने लगता है। पूस महीने में दिन इतना छोटा होता है कि पता ही नहीं चलता कि कब बीत गया। माघ में दिन थोड़ा थोड़ा बढ़ने लगता है और फागुन में काफी बड़ा हो जाता है।
दरअसल, सूर्य के उत्तरी गोलार्ध पर विषवत रेखा पर होने के कारण ही 23 सितंबर को दिन व रात बराबर होते हैं। खगोलीय घटना के बाद दक्षिणी गोलार्ध में सूर्य प्रवेश कर जाएगा और उत्तरी गोलार्ध में धीरे-धीरे रातें बड़ी होने लगेंगी। पृथ्वी के मौसम परिवर्तन के लिए वर्ष में चार बार 21 मार्च, 21 जून, 23 सितंबर और 22 दिसंबर को होने वाली खगोलीय घटना आम आदमी के जीवन को प्रभावित करती है। ऐसा खगोल वैज्ञानिकों का मत है।
23 सितंबर को होने वाली खगोलीय घटना में सूर्य उत्तरी गोलार्ध से दक्षिणी गोलार्ध में प्रवेश के साथ उसकी किरणें तिरछी होने से उत्तरी गोलार्ध में मौसम में सर्दभरी रातें महसूस होने लगती हैं। इस लिहाज से सायन सूर्य के तुला राशि में प्रवेश होने पर 23 सितंबर को दिन-रात बराबर होंगे। इस दिन बारह घंटे का दिन और बारह घंटे की रात होगी। सूर्योदय और सूर्यास्त भी एक ही समय होगा।
पृथ्वी के मध्य को भूमध्य या विषवत रेखा कहते हैं। जब सूर्य दक्षिण की ओर अग्रसर होता है, तो दक्षिणी गोलार्ध सूर्य कहलाता है। जब सूर्य उत्तर की ओर जाता है, तो उत्तरी गोलार्ध सूर्य कहलाता है। इन दोनों स्थितियों की अवधि छह माह होती है।
दरअसल, पृथ्वी सूर्य के चक्कर लगा रही है और सूर्य ब्रह्मांड में ब्लैक होल के चक्कर लगा रहा है। 27 हजार वर्ष में यह चक्कर पूर्ण होता है। इस बीच एक दिन आगे-पीछे हो जाता है। ऐसा माना जाता है कि यह कभी-कभी अयनांश की गणना के कारण होता है। इसी वजह से दिन-रात की बराबरी की अवधि कभी 22 तो कभी 23 सितंबर को होती है।
प्रत्येक वर्ष में दो दिन यानी 21 मार्च और 23 सितंबर को दिन-रात इसलिए बराबर होते हैं क्योंकि 21 जून को दक्षिणी ध्रुव सूर्य से सर्वाधिक दूर रहता है। इसलिए इस दिन सबसे बड़ा दिन होता है। इसके बाद 22 दिसंबर को सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायन की ओर प्रवेश करता है। इसलिए 24 दिसंबर को सबसे छोटा दिन और सबसे बड़ी रात होती है। 25 दिसंबर से दिन की अवधि फिर बढ़ने लगती है।
इसी के आधार पर पंचांग में सूर्योदय और सूर्यास्त का समय बदलता रहता है। भारतीय ज्योतिष में हिंदी महीनों के अनुसार दिन की गणना सूर्योदय काल से की जाती है, जबकि अंग्रेजी महीनों का आधार अलग होता है। उसके अनुसार रात 12 बजे ही दिन बदल जाता है और अगली तारीख आ जाती है। हिंदी महीनों में तिथि की गणना होती है, जिसे प्रथमा, द्वितीय, तृतीया आदि के रूप में जाना जाता है। यह चंद्रमा की स्थिति के अनुसार होता है।
हिंदी महीनों को 30 दिन का माना जाता है। इसमें 15 दिन का शुक्ल पक्ष और 15 दिन का कृष्ण पक्ष होता है। हर 15 दिन पर पूर्णिमा और अमावश्या आते रहते हैं। पूर्णिमा को चंद्रमा पूरा गोल होता है तो अमावश्या को चंद्रमा लुप्त हो जाता है और काली अंधेरी रात आ जाती है। चारों ओर अंधेरा हो जाता है। फिर धीरे धीरे चंद्रमा आंशिक रूप में नजर आता है और अगले 15 दिनों तक धीरे धीरे बढ़ता है और पूर्णिमा के दिन पूर्ण प्रकाशित हो जाता है।