
आर के तिवारी
नई दिल्ली। कहते हैं मौन मन का संयम है। लेकिन इस मौन को साधना बहुत कठिन हैl विषय सामने आ जाए तो कोई भी बिना बोले नहीं रह पाताl औऱ हमारे नेता तो ऐसा लगता है कि बोलने के लिए ही जन्म लेते हैं l उनकी चर्चा कब बहस में तब्दील हो जाए औऱ बहस कब तू तू मैं मैं में बदल जाए कुछ कहा नहीं जा सकता l
कांग्रेस प्रवक्ता राजीव त्यागी की जान इसी चक्कर में गई l कुछ लोग तो बोलने के इतने आशिक होते हैं कि दूसरे कि सुनते ही नहीं, बस अपनी ही झोंके रहते हैं l ऐसे लोगों को मौन की कितनी भी साधना करा लीजिए, वे आदत से बाज नहीं आएंगे l
आज हम एक ऐसी राजनीतिक शख्सियत की चर्चा करने जा रहे हैं जिसके बोलने से आकर्षण पैदा होता रहा है औऱ मौन रहने से चुंबकत्व l आप समझ गए होंगे l हम पूर्व प्रधानमंत्री और भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी की बात कर रहे हैंl उनकी आज दूसरी पुण्यतिथि है।
इस मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की। अपने ट्वीट में उन्होंने लिखा, ‘प्यारे अटल जी को उनकी पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि। भारत हमेशा उनकी उत्कृष्ट सेवा और हमारे राष्ट्र की प्रगति के प्रयासों को याद रखेगा।’
पीएम मोदी ने एक संदेश में कहा, यह देश अटल जी के योगदान को कभी नहीं भुला सकता है। उनके नेतृत्व में हमने परमाणु शक्ति में भी देश का सिर ऊंचा किया। पार्टी नेता हो, सांसद हो, मंत्री हो या फिर प्रधानमंत्री, अटल जी ने हर भूमिका में आदर्श स्थापित किया।’
अटल जी के जीवन की विशेषता के रूप में बहुत सारी बातें कही जा सकती हैं। उनके भाषण की सदैव चर्चा होती है, लेकिन जितनी ताकत उनके भाषण में थी, उससे कई गुणा अधिक ताकत उनके मौन में थी। वो जनसभा में भी जब दो-चार वाक्य बोलने के बाद मौन हो जाते थे, तो लाखों की भीड़ के आखिरी व्यक्ति को भी उस मौन से संदेश मिल जाता था।
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने अटल बिहारी वाजपेयी को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए लिखा, भारत रत्न श्रद्धेय अटल बिहारी वाजपेयी जी देशभक्ति व भारतीय संस्कृति की प्रखर आवाज थे। वह एक राष्ट्र समर्पित राजनेता होने के साथ-साथ कुशल संगठक भी थे जिन्होंने भाजपा की नींव रख उसके विस्तार में एक अहम भूमिका निभाई और करोड़ों कार्यकर्ताओं को देश सेवा के लिए प्रेरित किया।
अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म 25 दिसंबर, 1924 को मध्य प्रदेश के ग्वालियर में एक स्कूल शिक्षक के परिवार में हुआ। उन्होंने 16 अगस्त 2018 को दिल्ली के एम्स में आखिरी सांस ली थी।
हमारे नेताओं को उनकी मौन की भाषा से कुछ सीखना चाहिए l उनके मुखर होने से भी कुछ सीखना चाहिए l अगर ऐसा नहीं हुआ तो राजनीति बदजुबानी, दबंगई औऱ अनीति तक सिमट कर रह जाएगी l
राजनीति के इस पतन में हमारे मीडिया खास तौर पर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का बहुत बड़ा हाथ है, जो नेताओं को बदजुबानी के लिए उकसाता रहता है l