
Bad health system: देश की बदहाल स्वास्थ्य व्यवस्था को व्यापक तौर पर कभी भी ठीक नहीं किया गया। अलबत्ता स्वास्थ्य क्षेत्र का बजट जरूर घटा दिया गया। दुनिया के दूसरे देशों पर नजर डालें तो स्वास्थ्य व्यवस्था के मामले में भारत कहीं भी नहीं ठहरता। यह अलग बात है कि यहां के हेल्थ प्रोफेशनल ने अपनी अनूठी क्षमता का परिचय जरूर दिया है।
Bad health system: वर्ल्डोमीटर ने कोरोना संक्रमण की नई तस्वीर पेश की
संजय पराते
रायपुर, छत्तीसगढ़। Bad health system: वर्ल्डोमीटर ने कोरोना संक्रमण की एक नई तस्वीर पेश की है। उसके अनुसार, मई के पहले सप्ताह में दुनिया का कोरोना पीड़ित हर दूसरा व्यक्ति भारतीय था। पूरी दुनिया में इस अवधि में कोरोना के मामलों में 5% की और इससे होने वाली मौतों में 4% की कमी आई है। लेकिन भारत में कोरोना के 5% मामले बढ़े हैं। और इससे होने वाली मौतों में 14% की वृद्धि हुई है।
छत्तीसगढ़ की तस्वीर भारत की इस स्थिति की प्रतिनिधि तस्वीर है। यह 24 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में एक वह राज्य है, जहां संक्रमण की दर 15% से अधिक है। इस वर्ष 28 फरवरी को यहां पाजिटिविटी रेट 1% थी, जो 31 मार्च को बढ़कर 11.37% पर और फिर 21 अप्रैल को 31.72% पर पहुंच गई थी।
अनलॉक की प्रक्रिया शुरू
Bad health system: और अब घटकर 9 मई को 19% पर आ गई है। इस घटे पाजिटिविटी रेट के सहारे भूपेश नियंत्रित भोंपू मीडिया प्रचार कर रहा है कि अब प्रदेश में कोरोना की स्थिति नियंत्रण में है। पिछले 9 मार्च से जारी लॉकडाउन में जनता को राहत न पहुंचा पाने वाली सरकार ने अब अनलॉक की प्रक्रिया शुरू कर दी है।
वास्तविकता क्या है? पिछले वर्ष 31 मार्च को प्रदेश में कोरोना के 377 सक्रिय मरीज थे, जो 1 अप्रैल को बढ़कर 4563 तथा सितम्बर में 30,927 हो गए थे। इस वर्ष जनवरी में घटकर 4,327 सक्रिय मरीज रह गए थे, जो कोरोना की इस दूसरी लहर के चलते फिर से 9 मई को बढ़कर 1,30,859 हो गए हैं।
अप्रैल और मई के हालात
Bad health system: अप्रैल प्रथम सप्ताह में हर दिन औसतन 7255 संक्रमित लोग मिले थे, वही मई प्रथम सप्ताह में औसतन हर दिन 14,207 लोग संक्रमित मिले हैं। प्रदेश में अब तक (4 मई 2021) 7.87 लाख लोग संक्रमित हैं, जिनमें से 51% लोग (3.79 लाख) केवल इस वर्ष अप्रैल में संक्रमित हुए हैं।
प्रदेश में पिछले 13 महीनों में कोरोना से कुल 10,381 मौतें दर्ज की गई हैं, जिनमें से आधे से ज्यादा 6,220 (लगभग 60%) अप्रैल-मई के सवा महीनों में ही दर्ज की गई है। पूरे देश में कोरोना से हुई कुल मौतों का 5% से ज्यादा छत्तीसगढ़ में दर्ज किया गया है, जो इसकी आबादी के अनुपात में लगभग दोगुना है। कोरोना के मामले में छत्तीसगढ़ का स्थान 8वां-9वां है।
ये सभी सरकारी आंकड़े
ये सभी सरकारी आंकड़े हैं, जो छत्तीसगढ़ में कोरोना की दूसरी लहर की सांघातिकता और प्राणघातकता को बताते है। इस लहर ने अब गांवों पर और आदिवासी इलाकों में भी हमला कर दिया है। इसलिए पाजिटिविटी रेट के गिरने का प्रचार करना वास्तविकता को ढंकने का प्रयास भर है। क्योंकि यह जरूरी नहीं कि सक्रिय कोरोना संक्रमितों की कुल संख्या और इससे होने वाली मौतों की संख्या भी घट रही हो।
हाल ही में बीबीसी के लिए लिखी एक रिपोर्ट में पत्रकार आलोक पुतुल ने बताया था कि अब कोरोना संक्रमण सरगुजा जिले के विशेष संरक्षित आदिवासियों–पहाड़ी कोरवा तक पहुंच गया है। जो अपने अलग-थलग जीवन के लिए जाने जाते हैं।
तौरेंगा पंचायत में 90 लोग कोरोना संक्रमित
एक सामाजिक कार्यकर्ता के हवाले से उनकी रिपोर्ट बताती है कि गरियाबंद जिले के उदंती-सीतानदी अभयारण्य से लगे हुए तौरेंगा पंचायत में एक दिन की जांच में ही लगभग 90 लोग कोरोना संक्रमित पाए गए।
उनके अनुसार 9 अप्रैल से 8 मई के बीच गरियाबंद जिले में कोरोना के मामले में 179%, बलरामपुर में 185%, जशपुर जिले में 200%, मुंगेली में 264% तथा मरवाही जिले में 315% की वृद्धि हुई है। पुतुल यह भी इंगित करते हैं कि आदिवासी इलाकों में कोरोना की पहली लहर की तुलना में इस लहर में तीन गुनी मौतें हो रही हैं। जो एक दिल दहलाने वाली स्थिति है।
आंकड़ों की पूर्णता पर भी संदेह
लेकिन इन आंकड़ों की पूर्णता पर भी संदेह है। पुतुल बताते हैं कि “बिलासपुर जिले के कड़ार गांव में कई ऐसे परिवार हैं, जिनकी सरकारी स्वास्थ्य केंद्र में जांच हुई है। वे पॉजिटिव पाए गए। उन्हें स्वास्थ्य केंद्र से दवा दी गई।
उनके घर के सामने कोरोना संक्रमित होने की सूचना चस्पां की गई। लेकिन उनका नाम जिले के कोरोना संक्रमितों की सूची में नहीं है।” उन्होंने बताया कि इस गांव के भरत कश्यप सहित उनके परिवार के 4 सदस्यों की कोरोना रिपोर्ट पॉजिटिव आई थी, लेकिन संक्रमितों की सूची में इस परिवार के किसी भी सदस्य का नाम शामिल नहीं है।
स्वास्थ्य के क्षेत्र में निजीकरण को बढ़ावा
छत्तीसगढ़ निर्माण के बाद स्वास्थ्य के क्षेत्र में निजीकरण को जो बढ़ावा दिया गया, उसके कारण आज पूरे प्रदेश की स्वास्थ्य व्यवस्था वेंटीलेटर पर है। स्वास्थ्य मंत्री सिंहदेव का दावा है कि भाजपा राज के 15 सालों के मुकाबले दो सालों में स्वास्थ्य सुविधाओं में दोगुना विस्तार किया गया।
लेकिन यह विस्तार कोरोना महामारी से निपटने में सक्षम नहीं है। कोरोना लहर की दूसरी चेतावनी के बावजूद जो तैयारियां पिछले एक साल में इस सरकार को करनी थी, वह की ही नहीं गईं। 36 डेडिकेटेड कोविड अस्पताल और 137 कोविड केन्द्रों में कुल 19,294 बिस्तर हैं। लेकिन पर्याप्त चिकित्सकों और पैरा-मेडिकल स्टाफ के अभाव में अस्पताल मरीजों के लिए यातना-गृह बन गए हैं।
ऑक्सीजन बेड और वेंटीलेटरों की कमी
प्रदेश में ऑक्सीजन तो है, लेकिन ऑक्सीजन बेड और वेंटीलेटरों की भारी कमी है। अस्पताल में भर्ती हर दूसरे मरीज को ऑक्सीजन बेड की जरूरत है। रेमडेसिविर की कमी और कालाबाजारी आम बात हो गई है।
सरकार ने इस दूसरी लहर के लिए पूरा भरोसा निजी अस्पतालों पर किया। जिन्होंने मरीजों से अनाप-शनाप बिल वसूले। इस लूट के खिलाफ आवाज उठने पर इलाज की जो दरें घोषित की गईं, वे स्वास्थ्य माफिया के साथ इस सरकार की खुली साठगांठ का उदाहरण हैं।
मध्यम, गंभीर और अति-गंभीर मरीजों के लिए मान्यता प्राप्त निजी अस्पतालों के लिए क्रमशः 6200 रुपये, 12 हजार रुपये और 17 हजार रुपये प्रतिदिन की दरें तय की गई हैं।
कहां से लाएगा गरीब एक लाख रुपये
इसका अर्थ है कि एक कोरोना मरीज को अस्पताल में अपने 15 दिनों के इलाज के लिए मध्यम मरीज को न्यूनतम एक लाख रुपये से लेकर अति-गंभीर मरीजों को न्यूनतम तीन लाख रुपये तक खर्च करना पड़ेगा! इन दरों पर प्रदेश की गरीबी रेखा से नीचे वाली दो-तिहाई आबादी के लिए इन अस्पतालों में कदम रखना भी नसीब में नहीं होगा।
इन 74 निजी अस्पतालों के पास कुल 5527 बिस्तर उपलब्ध है और इस समय कोई खाली नहीं है। प्रति बिस्तर औसत ईलाज दर 12000 रूपये प्रतिदिन ही माना जाये, तो स्वास्थ्य माफिया की झोली में हर रोज 7-8 करोड़ रूपये डाले जा रहे हैं और यदि इस संकट की अवधि चार माह ही मानी जाए, तो 1000 करोड़ रुपये!
लेकिन यह भी एक उदार अनुमान ही है, क्योंकि मरीजों पर 5-10 लाख रुपयों के बिल ठोंके जा रहे हैं और बिल अदायगी न होने पर लाश तक देने से इंकार किया गया है। संकट की इस घड़ी में जितनी भी स्वास्थ्य बीमा योजनाएं घोषित की गई थीं, वे सब निष्प्रभावी साबित हुई हैं।
सरकार को करना चाहिए निजी अस्पतालों का अधिग्रहण
होना तो यह चाहिए था कि कोरोना संकट के दौरान इन निजी अस्पतालों का सरकार अधिग्रहण करती और यहां उपलब्ध सुविधाओं का उपयोग आम जनता के लिए करती। लेकिन ऐसा करने के लिए दृढ़ राजनैतिक इच्छाशक्ति चाहिए, जो स्वास्थ्य माफिया से टकराव ले सके।
लेकिन कांग्रेस सरकार में यह साहस कहां? इसके चलते कोरोना का इलाज अब एक ऐसा मुनाफादेह धंधा बन गया है कि लगभग सभी अस्पतालों में केवल कोरोना का इलाज चल रहा है और बाकी बीमारियों के इलाज को ताक पर रख दिया गया है। इलाज के अभाव में बाकी बीमारियों से ग्रस्त लोगों की मुसीबतों और मौतों की कहानी अभी आनी बाकी है।
कमाई में मशगूल निजी अस्पताल
ये निजी अस्पताल कमाई में इतने मशगूल हैं कि राजधानी रायपुर के एक अस्पताल में कथित रूप से शार्ट सर्किट से आग लगने से 9 कोरोना मरीजों की मौत हो गई। यह अस्पताल किसी भी चिकित्सा मानक को पूरा नहीं करता था। इसके बावजूद इसे चलाने की अनुमति दे दी गई।
क्योंकि इस अस्पताल में राजनेताओं का पैसा लगा होना बताया जाता है। इतनी गंभीर वारदात के एक माह बाद भी सरकारी जांच पूरी नहीं हुई है। आरोपित संचालकों को जमानत मिल गई है।
संकट के इस दौर में पूरी सरकार को लकवा मार गया लगता है। मंत्रिमंडल की सामूहिक जिम्मेदारी कहीं दिखती ही नहीं। कांग्रेस के मंत्री और विधायक कहीं दड़बे में घुस गए हैं। कोरोना से लड़ने की पूरी कमान दो लोगों के हाथों में है।
कोरोना मरीज नहीं, गद्दी बचाने की फिक्र
Bad health system: एक मुख्यमंत्री हैं, जो अपनी गद्दी बचाने के लिए लड़ रहे हैं और दूसरा स्वास्थ्य मंत्री, जो ढाई-ढाई साल के कार्यकाल के वादे की याद दिलाते हुए गद्दी पर बैठने के लिए लड़ रहे हैं। इन दोनों की लड़ाई के बीच कोरोना अपने तीसरे हमले की तैयारी कर रहा है।
आईसीएमआर की सीरो रिपोर्ट बताती है कि देश का हर चौथा व्यक्ति इस महामारी की चपेट में है। इसके अनुसार यह अनुमान लगाया जा सकता है कि छत्तीसगढ़ में लगभग 70 लाख लोग कोरोना पीड़ित होंगे।
जिनको चिन्हित कर तुरंत इलाज करने की जरूरत है। लेकिन जो अपना इलाज करा सकता हो, वही जिंदा रहेगा। बाकी से इस ‘सिस्टम’ को कोई मतलब नहीं। कोरोना के तीसरे हमले का मुकाबला करना है, तो जनता को स्वास्थ्य क्षेत्र के निजीकरण के खिलाफ आवाज उठानी होगी।
(लेखक छत्तीसगढ़ माकपा के सचिव हैं।)