सत्य ऋषि
मूसा जाति के घासदार पौधे और उसके फल को केला कहा जाता है। मूल रूप से यह दक्षिण पूर्व एशिया के उष्णदेशीय क्षेत्र की वनस्पति है। संभवतः पपुआ न्यू गिनी में इस फसल को सबसे पहले उपजाया गया था। केले की खेती सम्पूर्ण उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में की जाती है। केला चार हजार साल पहले मलेशिया में मिला था। युगांडा केला खाने के मामले में पहले स्थान पर है जहां प्रति व्यक्ति 1 साल में लगभग 225 खेले खा लिए जाते हैं।
भारत में केले का पेड़ पवित्र माना जाता है। इसका उपयोग धार्मिक कार्यों में किया जाता है। सत्य संकल्प भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी को केले का भोग लगाया जाता है। केले के पत्तों में प्रसाद बांटा जाता है। केले में मुख्यतः विटामिन-ए, विटामिन-सी, थायमिन, राइबो-फ्लेविन, नियासिन और अन्य खनिज तत्व होते हैं। इसमें जल का अंश 64.3 प्रतिशत, प्रोटीन 1.3 प्रतिशत, कार्बोहाईड्रेट 24.7 प्रतिशत और चिकनाई 8.3 प्रतिशत है।
केला हर मौसम में सरलता से उपलब्ध होने वाला अत्यंत पौष्टिक एवं स्वादिष्ट फल है। केला रोचक, मधुर, शक्तिशाली, वीर्य व मांस बढ़ाने वाला, नेत्रदोष में हितकारी है। पके केले के नियमित सेवन से शरीर पुष्ट होता है। यह कफ, रक्तपित, वात और प्रदर के उपद्रवों को नष्ट कर देता है।
घर के मुख्य द्वार और पिछले हिस्से पर केले के पौधे को न लगाएं। केले के पौधे के आसपास साफ-सफाई रखें। केले के तने में लाल धागा बांधकर रखें। कहते हैं कि केले में साक्षात विष्णु और लक्ष्मी का वास होता है। घर में संतान हमेशा सुखी और संकटों से दूर रहती है।
माना जाता है कि समृद्धि के लिए केले के पेड़ की पूजा की जाती होती है। केले का पौधा घर में लगाने से बृहस्पति ग्रह का शुभ फल मिलने लगता है। इसके घर में होने से वैवाहिक जीवन की कठिनाइयां दूर होती हैं। अविवाहित कन्याओं का शीघ्र विवाह हो जाता है।
उच्च शिक्षा और ज्ञान प्राप्ति में यह पौधा सहायक सिद्ध होता है, क्योंकि इसमें से लगातार शांतिमय और सकारात्मक ऊर्जा निकलती रहती है। उसका लाभ पढ़ाई करने वाले बच्चों को होता है और वे प्रतियोगिता परीक्षाओं में सफलता प्राप्त करते हैं।