
Biological Weapons: कोरोना कहर प्राकृतिक आपदा है या फिर जैविक हथियार? अभी भी यह बहस का मुद्दा बना हुआ है। इसमें दो राय नहीं कि कोरोना वायरस चीन के बुहान शहर से पूरी दुनिया में फैला है।
Biological Weapons: अंकुश लगाने के समय पर क्या कर रही है विश्व विरादरी?
चरण सिंह राजपूत
Biological Weapons: जमीनी हकीकत यह है कि कोरोना वायरस की महामारी के करीब डेढ़ साल बाद भी इसकी उत्पत्ति पर ठोस सबूत नहीं मिल सके हैं। सबसे पहले इसका शिकार बने चीन ने पूरी तरह से उन आरोपों का खंडन किया है, जिनमें वुहान के बाजार या लैब से इसके फैलने की बात कही गई थी।
वह बात दूसरी है कि पिछले साल तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कोरोना वायरस के लिए सीधे-सीधे चीन को ही जिम्मेदार ठहराया था। पर विश्व स्वास्थ्य संगठन इस मामले में कुछ ठोस जवाब नहीं दे पाया था। रूस भी चीन के पक्ष में खड़ा हो गया था।
पर हाल ही में मीडिया में आए 6 साल पुराने एक दस्तावेज ने चीन को फिर से कटघरे में खड़ा कर दिया है। इस दस्तावेज के मुताबिक चीनी वैज्ञानिक कोरोना वायरस की मदद से जैव हथियार तैयार कर रहे थे।
जैविक हथियारों के बल पर तीसरे विश्व युद्ध की तैयारी
इन दस्तावेज में बताया जा रहा है कि चीन जैविक हथियारों के बल पर तीसरे विश्व युद्ध की तैयारी कर रहा था। इस दस्तावेज में 6 साल से जैव और जेनेटिक हथियार तैयार करने की बात कही जा रही है। हालांकि अमेरिका की ओर से ही वुहान की लैब में चीनी शोध के लिए फंडिंग किए जाने की बातें सामने आती रही हैं।
अमेरिकी विदेश मंत्रालय को मिले इन दस्तावेज के दावे में कहा गया है कि ऐसे युद्ध में जीत के लिए जैव हथियार अहम होंगे। विश्वेषकों के मुताबिक, कम से कम 18 वैज्ञानिक हाई-रिस्क लैब में इस पर काम कर रहे हैं।
जैव हथियारों से होगा अगला विश्व युद्ध
इस दस्तावेज के लेखकों की बात पर विश्वास किया जाए तो अगला विश्व युद्ध जैव हथियारों से ही होगा। रिसर्च में कहा गया है कि इस हमले से दुश्मन की स्वास्थ्य व्यवस्था चरमरा जाएगी।
ऑस्ट्रेलियन स्ट्रेटजिक पॉलिसी इंस्टिट्यूट के एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर पीटर जेनिंग्स के मुताबिक, यह हथियार भले ही आत्मरक्षा के लिए तैयार किए गए हों, लेकिन इनके इस्तेमाल का फैसला वैज्ञानिकों के हाथ में नहीं होगा।
मतलब दुनिया के शासक अपना दबदबा बनाने के लिए मानव जाति पर इनका भरपूर इस्तेमाल करेंगे। ऐसे में प्रश्न उठता है कि चीन ही क्यों, अब तो लगभग पूरी दुनिया के पास जैविक हथियार हैं।
मानव जाति के लिए कितना खतरा?
ये सब तो अंतरराष्ट्रीय बहस के मुद्दे पर कोरोना कहर को हथियारों की बढ़ती होड़ के दुष्परिणाम के रूप में तो देखा जा सकता है। यदि यह जैविक हथियार है और तीसरा विश्व युद्ध जैव हथियारों से होगा तो कल्पना कीजिए कि मानव जाति के लिए कितना खतरा पैदा किया जा रहा है।
वैसे भी दुनिया में लगभग हर देश के पास जैविक हथियार हैं। ऐसे में दुनिया की शांति के लिए बने हुए यूएन जैसे संगठन क्या कर रहे हैं? डब्ल्यूएचओ क्या कर रहा है? तो क्या अब जनता को ही इन सबके खिलाफ मोर्चा खोलना होगा?
क्या दुनिया में रोजी-रोटी और स्वास्थ्य को छोड़कर हथियारों की होड़ की ओर जो विभिन्न देशों के शासक आकर्षित हुए हैं, उसके खिलाफ अब आवाज उठाने की जरूरत नहीं है? जब एक वायरस के सामने पूरी दुनिया विवश नजर आ रही है तो दुनिया में बने रखे दूसरे जैविक हथियार कितना कहर बरपाएंगे, इस पर विश्व जगत को मंथन की जरूरत है।
क्या पूरी दुनिया के शासक कर रहे हैं हथियारों का धंधा?
आज की तारीख में तो दुनिया पर नजर डालें तो एक भी अंतरराष्ट्रीय शख्सियत हथियारों की होड़ के विरोध में खड़ी नहीं हो पाई है। क्या पूरी दुनिया के शासक धंधा करते रहें और उसका खामियाजा जनता भुगतती रहे?
क्या दुनिया में सबसे बड़ा धंधा हथियारों की खरीद-फरोख्त नहीं बन चुका है? क्या जैविक हथियार भी इनमें शामिल नहीं हैं? क्या जैविक हथियारों के युद्ध में मानव जाति के स्वस्थ रहने की कल्पना भी की जा सकती है?
मतलब दुनिया बर्बादी की ओर जा रही है और हम तमाशबीन बने हुए हैं। जब हम ही नहीं रहेंगे तो कहां के संसाधन? कहां की धन दौलत? कहां का रुतबा? कहां की सत्ता? यह अब मानव जाति को समझना चाहिए।
भारत शांति का अग्रदूत
Biological Weapons: भारत हमेशा शांति का अग्रदूत रहा है। महात्मा बुद्ध, स्वामी विवेकानंद, स्वामी दयानंद, महात्मा गांधी विश्व स्तर पर शांति के अग्रदूत रहे। इन महापुरुषों ने अहिंसा की बात की। हथियारों का विरोध किया।
समाजवाद के प्रणेता डॉ. राम मनोहर लोहिया ने तो हथियारों की होड़ का जमकर विरोध किया था। दूसरी सरकारों में हथियारों की होड़ पर इतना ध्यान नहीं दिया जाता था पर मोदी सरकार ने तो सबसे अधिक बजट ही हथियारों की खरीद पर खर्च किया। क्या आज फिर से भारत को शांति के अग्रदूत की भूमिका नहीं निभानी चाहिए? कमेंट करके जरूर बताएं।