
BJP Central Leadership: गैरों की कुछ मत पूछो, अपनों से कयामत आई है…। भाजपा पर यह लाइन फिट बैठ रही है। पीएम मोदी के सामने नीतीश कुमार तन कर खड़े हो गए हैं। कभी वह अपने हुआ करते थे। शायद इसीलिए भाजपा केंद्रीय नेतृत्व के कान खड़े हो गए हैं और पार्टी के काबिल नेताओं के पर कतरे जा रहे हैं। भाजपा संसदीय बोर्ड और चुनाव समिति में बदलाव से यही संकेत मिल रहे हैं। तभी तो नितिन गडकरी और शिवराज सिंह चौहान को बोर्ड और समिति से हटा दिया गया है।
BJP Central Leadership: नए संसदीय बोर्ड से गडकरी और शिवराज गायब क्यों?
श्रीकांत सिंह
BJP Central Leadership: संसदीय बोर्ड और चुनाव समिति का गठन करके भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने बड़ा संदेश दिया है। केंद्रीय मंत्री और पार्टी के पूर्व अध्यक्ष नितिन गडकरी और मध्य प्रदेश के सीएम शिवराज सिंह चौहान को दोनों ही टीमों में जगह नहीं दी गई है। इससे पहले 2014 में लालकृष्ण आडवाणी को संसदीय बोर्ड से बाहर कर दिया गया था।
जाहिर है कि भाजपा में शीर्ष नेतृत्व की हां में हां न मिलाने वाले नेताओं की अब खैर नहीं। भले ही वे कितने ही काबिल क्यों न हों। तभी तो बीजेपी ने बुधवार को संसदीय बोर्ड से मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी को हटा दिया और कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा को नए संसदीय बोर्ड में शामिल कर लिया गया।
संसदीय बोर्ड बीजेपी में नीति निर्धारण करने वाली सर्वोच्च इकाई
संसदीय बोर्ड बीजेपी में नीति निर्धारण करने वाली सर्वोच्च इकाई है। मुख्यमंत्रियों, राज्य पार्टी प्रमुख और दूसरी अहम जिम्मेदारियों पर कौन रहेगा, इसका फैसला संसदीय बोर्ड ही करता है।
नए संसदीय बोर्ड में बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा समेत 11 लोग हैं। इस टीम में नरेंद्र मोदी, राजनाथ सिंह, अमित शाह, बीएस येदियुरप्पा, सर्बानंद सोनोवाल, के लक्ष्मण, इकबाल सिंह लालपुरा, सुधा यादव, सत्यनारायण जटिया और बीएल संतोष शामिल हैं।
केंद्रीय चुनाव समिति की बात करें तो इसके सदस्यों का भी एलान कर दिया गया है। संसदीय बोर्ड के सभी 11 चेहरे 15 सदस्यों की इस टीम में शामिल हैं। चार अन्य सदस्यों में भूपेन्द्र यादव, देवेन्द्र फडणवीस, ओम माथुर और वनथी श्रीनिवास शामिल हैं।
लोकसभा चुनावों के मद्देनजर किया गया बदलाव
बीजेपी के सर्वोच्च स्तर पर हुआ ताज़ा बदलाव डेढ़ साल बाद होने वाले लोकसभा चुनावों के मद्देनजर किया गया है। ये बदलाव पीएम मोदी के बाद नंबर दो पर अमित शाह को ले जाने की एक कोशिश बताई जा रही है। ताज़ा फैसले से संकेत मिलता है कि बीजेपी और आरएसएस, पार्टी और सरकार दोनों जगहों पर अमित शाह को नंबर दो तक ले जाया जा रहा है।
पार्टी की इन दोनों सर्वोच्च संस्थाओं से नितिन गडकरी और शिवराज सिंह चौहान को बाहर किए जाने की चर्चा से राजनीति गरमा रही है। गडकरी का बाहर किया जाना गले से नीचे इसलिए नहीं उतर रहा है कि वह आरएसएस के काफी करीब माने जाते हैं और केंद्रीय मंत्री के तौर पर उनका कामकाज भी शानदार माना जाता रहा है।
पार्टी गडकरी के बयानों से काफी नाराज़
पार्टी के दोनों ही सर्वोच्च संस्थाओं से इन्हें बाहर किया जाना और केंद्रीय चुनाव समिति में उन्हीं के राज्य और ब्राह्मण जाति के ही देवेंद्र फड़नवीस का शामिल किया जाना कई संकेत देता है। इससे पता चलता है कि पार्टी अमित शाह को आगे ले जाने का प्रयास कर रही है। इससे यह भी पता चलता है कि पार्टी गडकरी के बयानों से काफी नाराज़ है।
गडकरी लंबे समय से पार्टी और सरकार के शीर्ष नेतृत्व के खिलाफ मुखर रहे हैं। तभी तो विपक्ष को भी पार्टी की आलोचना करने का सुनहरा मौका मिल गया था। शिवराज सिंह चौहान को बाहर किए जाने पर बताया जा रहा है कि वह पार्टी के प्रमुख ओबीसी चेहरा रहे हैं। लेकिन ऐसा लगता है कि 2018 के विधानसभा चुनावों में मिली हार के बाद पार्टी में उनका असर कम हो गया है।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को भी टीम में शामिल न किए जाने से उनके प्रशंसकों को निराशा जरूर हुई होगी, लेकिन कहीं न कहीं यह फैसला अमित शाह को आगे बढ़ाने से भी जुड़ा माना जा रहा है।
छह नए चेहरों को संसदीय बोर्ड में मिली जगह
भाजपा ने छह नए चेहरों को संसदीय बोर्ड में जगह दी है। इनमें पूर्व आईपीएस अफसर इक़बाल सिंह लालपुरा भी शामिल हैं। इस प्रकार पार्टी के इतिहास में किसी सिख को पहली बार संसदीय बोर्ड में जगह मिली है। सुधा यादव और के लक्ष्मण के पहली बार चयन से संकेत मिलता है कि तेलंगाना में भाजपा को मजबूत किया जा रहा है। क्योंकि दोनों ही तेलंगाना के ही रहने वाले हैं।
सुधा यादव इस संस्था की अकेली महिला सदस्य होंगी तो के लक्ष्मण फ़िलहाल पार्टी के ओबीसी मोर्चा के प्रमुख हैं। कर्नाटक के पूर्व सीएम बीएस येदियुरप्पा, पूर्व केंद्रीय मंत्री सत्यनारायण जटिया और असम के पूर्व सीएम केंद्रीय मंत्री सर्बानंद सोनोवाल को भी पहली बार संसदीय बोर्ड में जगह मिली है। बीएस येदियुरप्पा को संसदीय बोर्ड में शामिल करने का फैसला 2023 के कर्नाटक विधानसभा चुनावों के मद्देनजर किया गया होगा। येदियुरप्पा प्रभावी लिंगायत समुदाय से हैं।
सोनोवाल भारत के उत्तर पूर्वी राज्य के एसटी समुदाय से के ऐसे पहले नेता बन गए हैं, जिन्हें पार्टी के संसदीय बोर्ड में जगह मिली। सत्यनारायण जटिया इस सर्वोच्च नीति इकाई के दलित चेहरा होंगे। जाहिर है कि भाजपा का यह फैसला समाज के सभी वर्गों के बीच तालमेल बिठाने का एक प्रयास है। ताकि 2024 की चुनौतियों से निपटा जा सके। यह देखना दिलचस्प रहेगा कि भाजपा अपने काबिल नेताओं के बगैर चुनाव मैदान में कैसे कमाल दिखाती है।