BJP politics: भाजपा जिस तरह से विपक्ष को समाप्त करने के लिए जुल्म और जोर का इस्तेमाल कर रही है, उससे पार्टी डैमेज भी हो रही है। संजय राउत की बात करें, तो भाजपा ने ही उन्हें राजनीति का हीरो बना दिया है। जाहिर है कि जब कोई पक्ष हीरो बनता है तो जुल्म करने वाला दूसरा पक्ष चरित्र नायक तो नहीं न बनेगा। उसकी इमेज स्वत: खलनायक की बन जाएगी। देश की राजनीति में कुछ यही हो रहा है। इसे ठीक से समझते हैं।
BJP politics: बिना खिड़की वाले कमरे में बंद हैं संजय राउत
श्रीकांत सिंह
BJP politics: भाजपा ने अपने खिलाफ तन कर खड़े नेताओं पर जुल्म की इंतहा कर दी है। तभी तो शिवसेना सांसद संजय राउत की मुश्किलें कम होने का नाम नहीं ले रही हैं। क्योंकि कोर्ट ने प्रवर्तन निदेशालय की हिरासत को 8 अगस्त तक के लिए बढ़ा दिया है। उधर, कोर्ट में पेशी के दौरान राउत ने हिरासत में रखे जाने के तरीके पर सवाल उठा दिया है। उन्होंने कोर्ट में बगैर खिड़की वाले कमरे में रखे जाने की बात कही तो कोर्ट ने एजेंसी जवाब तलब कर दिया।
कोर्ट ने ईडी से स्पष्टिकरण मांगा तो लोक अभियोजक ने जवाब दिया कि उस कमरे में एयर कंडिशनर होने से खिड़की की जरूरत नहीं महसूस की गई। लेकिन राउत ने कहा कि वह स्वास्थ्य कारणों से एसी का इस्तेमाल नहीं कर सकते। इस पर एजेंसी ने उन्हें बेहतर वेंटिलेशन के साथ दूसरे कमरे में रखने का भरोसा दिया है। तभी तो कहा जा रहा है कि भाजपा की जुल्म की राजनीति ने संजय राउत को राजनीतिक संजीवनी दे दी है।
शिवसेना के चुनाव चिह्न पर अभी फैसला न करे चुनाव आयोग
सुप्रीम कोर्ट ने उद्धव ठाकरे गुट को बड़ी राहत दी है। अदालत ने कहा है कि अभी शिवसेना के चुनाव चिह्न पर कोई फैसला नहीं किया जाएगा। अदालत ने चुनाव आयोग से भी इस संदर्भ में कोई फैसला न करने को कहा है। अदालत के मुताबिक, सभी पक्ष हलफनामा दायर कर सकते है। क्योंकि इस संदर्भ में 8 अगस्त को चुनाव आयोग के समक्ष जवाब दाखिल करना है।
अगर पक्षकार जवाब दाखिल करने के लिए समय मांगते हैं तो चुनाव आयोग समय देने पर विचार कर सकता है। सुप्रीम कोर्ट भी इस मामले की सुनवाई 8 अगस्त को ही होनी है। मामले को संवैधानिक पीठ भेजे जाने पर सुप्रीम कोर्ट 8 अगस्त को विचार करेगा। इस प्रकार शिवसेना को अदालत ने एक तरह से संबल दे दिया है, जिसका उन्हें आगे फायदा मिल सकता है।
क्या यह लोकतंत्र के लिए खतरा नहीं?
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने शिंदे गुटे से सवाल किया कि अगर आप चुने जाने के बाद राजनीतिक दल को पूरी तरह से नजरअंदाज कर रहे हैं तो क्या यह लोकतंत्र के लिए खतरा नहीं है? इसके जवाब में शिंदे गुट की ओर से पेश हुए वकील हरीश साल्वे ने कहा कि नहीं, मैं ऐसा नहीं कह रहा हूं। हमने राजनीतिक दल नहीं छोड़ा है। दलबदल विरोधी कानून असहमति विरोधी कानून है। अयोग्यता तब आती है जब आप किसी निर्देश के खिलाफ मतदान करते हैं या किसी पार्टी को छोड़ देते हैं।
उधर, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने कहा है कि उन्हें चुनाव चिह्न की आवश्यकता नहीं है। उन्होंने शिवसेना का एक प्राकृतिक गठबंधन बनाया है। किसने धोखा दिया? हमने या किसी और ने? हमने एक बार फिर शिवसेना का प्राकृतिक गठबंधन बनाया और यह सरकार लोगों की सरकार है। दरअसल, शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे की गठबंधन सरकार शिंदे और उनके समर्थक विधायकों की बगावत के बाद जून में गिर गई थी। उसके बाद से ठाकरे नीत शिवसेना की ओर से शिंदे और अन्य को गद्दार या विश्वासघाती कह कर निशाना साधा जाता है।
बजाय समस्याएं सुलझाने के, मुसीबतें बढ़ा रही है भाजपा
वास्तव में, देश तमाम समस्याओं से जूझ रहा है। ऐसे में गैरभाजपा सरकारों को गिराने की जो चेष्टा की जा रही है, उससे भाजपा के प्रति लोगों में गुस्सा बढ़ता जा रहा है। क्योंकि केंद्र सरकार का काम राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उत्पन्न समस्याओं का समाधान करना है और राज्यों से बेहतर संबंध बनाए रखना है। लेकिन भाजपा के शीर्ष नेता सारे कार्य इसके उलट कर रहे हैं।
तभी तो ओवैसी बेरोजगारी, महंगाई और भ्रष्टाचार जैसी समस्याएं ले कर केंद्र सरकार को आइना दिखाते रहते हैं। वास्तव में यह बात स्थापित हो चुकी है कि केंद्र सरकार जमीनी समस्याओं से मुंह चुराने के लिए तरह तरह के शिगूफे छोड़ती रहती है। चाहे वह तिरंगा यात्रा का मामला हो या अलग अलग प्रदेशों में सरकार गिराने का मामला। भारी भरकम नकदी के साथ कांग्रेस के तीन विधायक गिरफ्तार हुए तो कहा गया कि किसी प्रदेश की सरकार गिराने की साजिश का इससे बड़ा प्रमाण और क्या हो सकता है?