Brahmacharini maa: नवरात्र के दूसरे दिन यानी 18 अक्टूबर को मां ब्रह्मचारिणी की उपासना की जाएगी। यह देवी साधक को कुंडलिनी जागरण में मदद करती हैं। क्यों मां दुर्गाजी का यह दूसरा स्वरूप भक्तों को अनन्तफल देने वाला है?
Brahmacharini maa: नवरात्र के दूसरे दिन ब्रह्मचारिणी मां की करते हैं उपासना?
उपासना शक्ति
Brahmacharini maa: ब्रह्मचारिणी मां की नवरात्र पर्व के दूसरे दिन पूजा-अर्चना की जाती है। क्यों साधक इस दिन अपने मन को मां के चरणों में लगाते हैं? ब्रह्म का क्या अर्थ है? तपस्या और चारिणी यानी आचरण करने वाली। ब्रह्मचारिणी का अर्थ हुआ तप का आचरण करने वाली।
भविष्य पुराण के मुताबिक क्यों इनके दाहिने हाथ में जप की माला और बाएं हाथ में कमण्डल रहता है?
दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलु। देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।।
इस दिन साधक कुंडलिनी शक्ति को जागृत करने के लिए भी साधना करते हैं। ताकि उनका जीवन सफल हो सके। और अपने सामने आने वाली किसी भी प्रकार की बाधा का सामना आसानी से कर सकें।
साधक का मन ‘स्वाधिष्ठान’ चक्र में
मां दुर्गाजी का यह दूसरा स्वरूप भक्तों और सिद्धों को अनन्तफल देने वाला है। इनकी उपासना से मनुष्य में तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार और संयम की वृद्धि होती है। जीवन के कठिन संघर्षों में भी उसका मन कर्तव्य-पथ से विचलित नहीं होता।
मां ब्रह्मचारिणी देवी की कृपा से उसे सर्वत्र सिद्धि और विजय की प्राप्ति होती है। दुर्गा पूजा के दूसरे दिन इन्हीं के स्वरूप की उपासना की जाती है। इस दिन साधक का मन ‘स्वाधिष्ठान’ चक्र में शिथिल होता है। इस चक्र में अवस्थित मनवाला योगी उनकी कृपा और भक्ति प्राप्त करता है।
इस दिन ऐसी कन्याओं का पूजन किया जाता है, जिनका विवाह तय हो गया है। लेकिन अभी शादी नहीं हुई है। इन्हें अपने घर बुला कर पूजन के पश्चात भोजन कराकर वस्त्र, पात्र आदि भेंट किए जाते हैं।
आराधना के लिए सरल श्लोक
सर्वसाधारण के लिए आराधना योग्य यह श्लोक सरल और स्पष्ट है। मां जगदम्बे की भक्ति पाने के लिए इसे कंठस्थ कर नवरात्रि में द्वितीय दिन इसका जाप करना चाहिए।
या देवी सर्वभूतेषु मां ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
अर्थात, हे मां! सर्वत्र विराजमान और ब्रह्मचारिणी के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है। या मैं आपको बारंबार प्रणाम करता हूं।
‘विष्णुधर्मोत्तर पुराण’ के अनुसार जो धूप और आरती को देखता है, वह अपनी कई पीढ़ियों का उद्धार करता है। आरती को ‘आरात्रिक’ अथवा ‘नीराजन’ के नाम से भी पुकारा गया है। आराध्य के पूजन में जो कुछ भी त्रुटि या कमी रह जाती है, उसकी पूर्ति आरती करने से हो जाती है।
साधारणतया 5 बत्तियों वाले दीप से आरती की जाती है जिसे ‘पंचप्रदीप’ कहा जाता है। इसके अलावा 1, 7 अथवा विषम संख्या के अधिक दीप जला कर भी आरती करने का विधान है। आपकी सुविधा के लिए ब्रह्माचारिणी माता की आरती यहां दे रहे हैं।
ब्रह्मचारिणी मां की आरती
जय अंबे ब्रह्माचारिणी माता।
जय चतुरानन प्रिय सुख दाता।
ब्रह्मा जी के मन भाती हो।
ज्ञान सभी को सिखलाती हो।
ब्रह्मा मंत्र है जाप तुम्हारा।
जिसको जपे सकल संसारा।
जय गायत्री वेद की माता।
जो मन निस दिन तुम्हें ध्याता।
कमी कोई रहने न पाए।
कोई भी दुख सहने न पाए।
उसकी विरति रहे ठिकाने।
जो तेरी महिमा को जाने।
रुद्राक्ष की माला ले कर।
जपे जो मंत्र श्रद्धा दे कर।
आलस छोड़ करे गुणगाना।
मां तुम उसको सुख पहुंचाना।
ब्रह्माचारिणी तेरो नाम।
पूर्ण करो सब मेरे काम।
भक्त तेरे चरणों का पुजारी।
रखना लाज मेरी महतारी।