
Brand Modi: स्वागत है आपका। इंफोपोस्ट न्यूज में आज चर्चा करेंगे कि किस प्रकार किसान आंदोलन के संदर्भ में ब्रांड मोदी अपने ही जाल में उलझ कर रह गया है। हम यह भी जानेंगे कि ब्रांड मोदी आखिर है क्या? तो शुरू करते हैं खास चर्चा-उलझ गया है ब्रांड मोदी।
Brand Modi: भारतीय चुनावी राजनीति की खासियत
श्रीकांत सिंह
नई दिल्ली। Brand Modi: भारतीय चुनावी राजनीति की यह खासियत रही है कि जब भी किसी पार्टी को प्रचंड बहुमत मिला तो सरकार निरंकुश, लोकतंत्र विरोधी और जनविरोधी फैसले करने लगी। आरोप लगाए जा रहे हैं कि तीनों कृषि कानून इसी का परिणाम हैं।
दरअसल, कभी लोकसभा में मात्र दो सदस्यों वाली भारतीय जनता पार्टी जिन लोकतांत्रिक मूल्यों की वकालत करती रही है, आज उन्हीं मूल्यों को कुचलने लगी है। ऐसा किसान आंदोलन के संदर्भ में लोग महसूस कर रहे हैं। किसानों की मौत के मामलों ने अर्धशतक का आंकड़ा पार कर लिया है। लेकिन सरकार अपनी जिद पर अड़ी है।
सरकार की किसान संगठनों के नेताओं के साथ नौ दौर की वार्ता बेनतीजा रही है। अब सरकार सुप्रीम कोर्ट के जरिये कुछ खेल करना चाहती है। सुनवाई 11 जनवरी को होनी है। कानूनी पहलुओं की बात करें, तो विधि विशेषज्ञ कह रहे हैं कि कृषि क्षेत्र के लिए कानून बनाना केंद्र सरकार के अधिकार क्षेत्र में ही नहीं था।
फिर भी सरकार ने बिना किसी चर्चा के जबरन कानून पास करा दिया। यह भी संभावना जताई जा रही है कि सुप्रीम कोर्ट में कानून को निरस्त कर दिया जाएगा या उसे स्थगित करने का आदेश दिया जा सकता है।
सुप्रीम कोर्ट में क्या होगा?
Brand Modi: वरिष्ठ अधिवक्ता विराग गुप्ता ने कहा है कि वैसे तो यह कहा नहीं जा सकता कि सुप्रीम कोर्ट में क्या होगा, लेकिन सुप्रीम कोर्ट में जिन मामलों की सुनवाई होनी है उनमें पहला मामला है कि तीनों कृषि कानूनों की वैधानिकता की जांच की जाए। दूसरा मामला है किसानों को दिल्ली में प्रदर्शन की आजादी दी जाए।
तीसरा मामला है किसानों के आंदोलन से लोगों को असुविधा हो रही है। इसलिए आंदोलनकारी किसानों को प्रदर्शन करने से रोका जाए। चौथा मामला है कोरोना के प्रसार को देखते हुए सुरक्षा के इंतजाम किए जाएं।
न्यायिक सक्रियता को हवा क्यों ?
उन्होंने कहा कि हमारे चुने हुए नेता ही न्यायिक सक्रियता को हवा दे रहे हैं, जो कि लोकतांत्रिक व्यवस्था में उचित नहीं माना जाता। वैसे भी न्यायिक प्रक्रिया में बहुत समय लग जाता है। सबसे बड़ी बात यह है कि जिन आंदोलनकारी किसानों पर फैसला होना है, वे सुप्रीम कोर्ट में पक्षकार ही नहीं हैं। सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका किसी और ने लगाई है। आंदोलनकारी किसान भी सरकार के आग्रह के बावजूद सुप्रीम कोर्ट जाने को तैयार नहीं हैं।
सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या केंद्र सरकार को क़षि पर कानून बनाने का अधिकार है? यह तो राज्य का विषय है। इसलिए सुप्रीम कोर्ट में कृषि कानूनों की वैधता पर सवाल उठ सकते हैं। यही नहीं, सुप्रीम कोर्ट में आंदोलनकारी किसानों के पक्षकार के रूप में उपस्थित न होने की वजह से इस संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भी सवाल उठ सकते हैं।
राजनीतिक पेंच क्या है ?

सबसे बड़ा राजनीतिक पेंच ब्रांड मोदी है। जब से नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बने हैं, उन्हें एक ब्रांड के रूप में पेश किया जा रहा है। आज वह देश के प्रधानमंत्री ही नहीं, दुनिया भर में मशहूर ब्रांड बन चुके हैं। चाहे जियो के विज्ञापन पर उनकी फोटो छपने का मामला हो या डोनॉल्ड ट्रंप के चुनाव प्रचार का मामला, मोदी एक ब्रांड के रूप में ही नजर आते हैं। उनकी वेशभूषा एक प्रधानमंत्री की कम मॉडल की ज्यादा लगती है। शायद यही वजह है कि उनके महंगे सूट समय समय पर चर्चा का विषय बनते रहे हैं।
किसान आंदोलन के संदर्भ में जिस ब्रांड मोदी की चर्चा हम कर रहे हैं, वह एक ऐसा ब्रांड है जो सख्त फैसलों के लिए जाना जाता है और उसका भाजपा को राजनीतिक लाभ भी मिलता है। भाजपा और मोदी के जो समर्थक हैं वे यह कहते पाए जाते हैं कि मोदी जो ठान लेते हैं वह करके ही दम लेते हैं। उसके कई उदाहरण भी सामने आए।
मजबूत होता गया राजनीतिक ब्रांड मोदी
चाहे अनुच्छेद 370 को हटाने की बात हो या अयोध्या में राम मंदिर का मुद्दा, राजनीतिक ब्रांड मोदी दिनोदिन मजबूत होता गया। हालांकि ज्यादातर फैसलों को सुप्रीम कोर्ट के सहारे अंजाम तक पहुंचाया गया। लेकिन भाजपा ने बड़ी ही तत्परता से उनका श्रेय ले लिया।
इसी ने सरकार को उद्दंड बना दिया। टीवी न्यूज चैनलों पर डिवेट में भाजपा नेता यह जरूर कहते हैं कि सरकार के फैसले इसलिए ठीक हैं क्योंकि हम लगातार चुनाव जीत रहे हैं। हालांकि इसका प्रतिवाद यह कह कर किया जा रहा है कि यह ईवीएम की सरकार है। बैलेट पेपर से चुनाव करा दिए जाएं तो भाजपा का सारा भांडा फूट जाएगा।
किसान आंदोलन के संदर्भ में ब्रांड मोदी अपने ही बुने जाल में उलझ कर रह गया है। सरकार के तमाम फैसलों नोटबंदी, जीएसटी, तीन तलाक और सीएए-एनआरसी आदि का इतना प्रखर विरोध नहीं हुआ। अब प्रचंड किसान आंदोलन से सरकार बैकफुट पर आने लगी है। अगर कृषि कानून सरकार वापस ले लेती है तो राजनीतिक ब्रांड मोदी की छवि धूमिल हो जाएगी।
लेकिन कृषि कानून वापस नहीं लिए जाते तो ब्रांड मोदी पर अलोकप्रिय सरकार होने का धब्बा लग जाएगा। आपको याद होगा कि नोटबंदी फेल होने लगी थी तो मोदी जी ने रोकर पचास दिन का समय मांगा था। इसलिए सरकार अलोकप्रियता का कलंक नहीं लेना चाहती।
निष्कर्ष क्या है ?
केंद्र सरकार फिर सुप्रीम कोर्ट के सहारे किसान आंदोलन के दलदल से बाहर निकलने के प्रयास में लगी है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट में इतने पेंच है कि इस बार उसके लिए सुप्रीम कोर्ट का रास्ता आसान न होगा। अब यह सरकार पर निर्भर करेगा कि वह ब्रांड मोदी को बचाती है या तीनों कृषि कानून वापस लेकर अलोकप्रियता के कलंक का शमन करती है।