Chanting rosary: मंत्र जब के लिए माला का उपयोग होता है। यह माला रुद्राक्ष, तुलसी, वैजयंती, स्फटिक, मोतियों या नगों से बनी हो सकती है। क्या आप इसके रहस्य जानते हैं?
Chanting rosary: किस जप की माला को माना जाता है सर्वश्रेष्ठ
सत्य ऋषि
Chanting rosary: पूजा और उपासना में जप का विशेष महत्व है। प्राचीनकाल से ही यह भारतीय पूजा-उपासना पद्धति का अभिन्न अंग रहा है। जप के लिए माला की जरूरत होती है। यह माला रुद्राक्ष, तुलसी, वैजयंती, स्फटिक, मोतियों या नगों से बनी हो सकती है।
रुद्राक्ष की माला को जप के लिए सर्वश्रेष्ठ माना गया है। क्योंकि इसमें कीटाणुनाशक शक्ति होती है। इसके अलावा इसमें चुंबकीय शक्ति भी पाई जाती है। अंगिरा स्मृति में जप की माला के महत्त्व की विस्तार से चर्चा है।
विना दमैश्चयकृत्यं सच्चदानं विनोदकम्।
असंख्यता तु यजप्तं तत्सर्व निष्फल भवेत्।।
अर्थात बिना कुश के अनुष्ठान, बिना माला के संख्याहीन जप निष्फल होता है। माला में 108 ही दाने क्यों होते हैं? इस विषय में योगचूड़ामणि उपनिषद में विस्तार से बताया गया है।
पद्शतानि दिवारात्रि सहस्त्राण्येकं विंशति।
एतत् संख्यान्तिंत मंत्र जीवो जपति सर्वदा।।
हमारी सांसों की संख्या के आधार पर 108 दानों की माला स्वीकृत की गई है। 24 घंटों में एक व्यक्ति 21,600 बार सांस लेता है। इसमें 12 घंटे दिनचर्या में निकल जाते हैं। तो शेष 12 घंटे देव-आराधना के लिए बचते हैं। अर्थात 10,800 सांसों का उपयोग अपने इष्टदेव को स्मरण करने में व्यतीत करना चाहिए।
इतना समय देना हर किसी के लिए संभव नहीं होता। इसलिए इस संख्या में अंतिम 2 शून्य हटा कर शेष 108 सांस में ही प्रभु-स्मरण की मान्यता प्रदान की गई।
नक्षत्रों की खोज पर आधारित मान्यता
दूसरी मान्यता भारतीय ऋषियों की कुल 27 नक्षत्रों की खोज पर आधारित है। प्रत्येक नक्षत्र के 4 चरण होते हैं। अत: इनके गुणफल की संख्या 108 आती है। जो परम पवित्र मानी जाती है। इसमें श्री लगाकर ‘श्री 108’ हिन्दू धर्म में धर्माचार्यों, जगद्गुरुओं के नाम के आगे लगाना अति सम्मान प्रदान करने का सूचक माना जाता है।
माला के 108 दानों से यह पता चल जाता है कि जप कितनी संख्या में हुआ। दूसरे माला के ऊपरी भाग में एक बड़ा दाना होता है जिसे ‘सुमेरु’ कहते हैं। इसका विशेष महत्व है। माला की गिनती सुमेरु से शुरू कर माला समाप्ति पर इसे उलटकर फिर शुरू से 108 का चक्र प्रारंभ किया जाने का विधान है। इसलिए सुमेरु को लांघा नहीं जाता।
एक बार माला जब पूर्ण हो जाती है तो अपने इष्टदेव का स्मरण करते हुए सुमेरु को मस्तक से स्पर्श किया जाता है। माना जाता है कि ब्रह्मांड में सुमेरु की स्थिति सर्वोच्च होती है। माला में दानों की संख्या पर शिवपुराण में विशेष विवेचना की गई है।
अष्टोत्तरशतं माला तत्र स्यावृत्तमोत्तमम्।
शतसंख्योत्तमा माला पञ्चाशद् मध्यमा।।
अर्थात 108 दानों की माला सर्वश्रेष्ठ, 100-100 की श्रेष्ठ और 50 दानों की मध्यम होती है।शिवपुराण में ही इसके पूर्व श्लोक 28 में माला जप के संबंध में बताया गया है। अंगूठे से जप करें तो मोक्ष, तर्जनी से शत्रुनाश, मध्यमा से धन प्राप्ति और अनामिका से शांति मिलती है।
ज्योतिष शास्त्र की मान्यता
तीसरी मान्यता ज्योतिष शास्त्र की है। उसके अनुसार, समस्त ब्रह्मांड को 12 भागों में बांटने पर आधारित है। इन 12 भागों को ‘राशि’ की संख्या दी गई है। हमारे शास्त्रों में प्रमुख रूप से 9 ग्रह (नवग्रह) माने जाते हैं। इस तरह 12 राशियों और 9 ग्रहों का गुणनफल 108 आता है। यह संख्या संपूर्ण विश्व का प्रतिनिधित्व करने वाली सिद्ध हुई है।
चौथी मान्यता सूर्य पर आधारित है। एक वर्ष में सूर्य 21,600 (2 लाख 12 हजार) कलाएं बदलता है। सूर्य हर 6 महीने में उत्तरायण और दक्षिणायन रहता है। तो इस प्रकार 6 महीने में सूर्य की कुल कलाएं 1,08,000 (1 लाख 8 हजार) होती हैं।
अंतिम 3 शून्य हटाने पर 108 अंकों की संख्या मिलती है। इसलिए माला जप में 108 दाने सूर्य की 1-1 कलाओं के प्रतीक हैं। एक और गणितीय विवेचन मिलता है। अगर 108 के अंकों को आपस में जोड़ें तो 9 आता है। और 9 सत्य का प्रतीक है। इसमें किसी भी संख्या से गुणा करें तो गुणनफल की संख्या का जोड़ हमेशा 9 ही आएगा अर्थात अपरिवर्तनशील परमात्मा।
कबीरदास का जप माला के विरोध में तर्क
वैसे, कबीरदास ने जप माला के विरोध में तर्क दिया था। उनके एक दोहे में इसी के बारे में कहा गया है—
माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर।
तन का मनका डारि दे, मन का मनका फेर।।
अर्थात, माला फेरते फेरते युग बीत गया, लेकिन उसका मन पर कोई असर नहीं हुआ। इसलिए हाथ में ली हुई माला को फेंक देना चाहिए और मन में ही परमात्मा का स्मरण करना चाहिए। लेकिन जब तक माला को पकड़ा नहीं जाएगा, तब तक माला छूटेगी कैसे? दरअसल, वह यांत्रिक पूजा के विरोध में थे। पूजा यंत्रवत नहीं, मंत्रवत होनी चाहिए। सत्य को प्रणाम।