Charanjit Singh Channi: चरणजीत सिंह चन्नी ने पंजाब के नए मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ले ली है। मीडिया से बातचीत में उन्होंने अपने परिवार की गरीबी का जिक्र किया। उनके साथ दो डिप्टी चीफ मिनिस्टर सुखजिंदर सिंह रंधावा और ओपी सोनी ने भी शपथ ली। इस घटनाक्रम के राजनीतिक और चुनावी मायने क्या हैं, आज चर्चा इसी पर।
Charanjit Singh Channi: यह कांग्रेस का मास्टर स्ट्रोक है या कुछ और?
श्रीकांत सिंह
नई दिल्ली। Charanjit Singh Channi: चन्नी को पंजाब का मुख्यमंत्री बनाए जाने पर दो विपरीत प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं। पहली यह कि पंजाब में कांग्रेस चुनावी संकट में आ गई है। और अब पंजाब में आम आदमी पार्टी को खेला करने का मौका मिल गया है। लेकिन पत्रकारों के एक धड़े का मानना है कि कांग्रेस ने एक ही पत्ते से तमाम लोगों को शह और मात की स्थिति में ला खड़ा किया है।
कांग्रेस ने अपनी इस अजूबी चाल से पंजाब के सारे समीकरण धराशायी कर दिए हैं। दरअसल, पंजाब में मजदूरी करने वालों का प्रतिशत सबसे ज्यादा है। और उसी वर्ग के व्यक्ति को कांग्रेस ने मुख्यमंत्री बना दिया है। तभी तो शपथ लेते ही चन्नी ने कहा, किसानों पर आंच आई तो अपना गला सामने कर दूंगा। यही नहीं, इस मौके पर उन्होंने गरीबों के बिजली बिल माफ करने की घोषणा भी कर दी।
चमकौर का युद्ध इतिहास
चरणजीत सिंह चन्नी दलित समुदाय से आते हैं। और चमकौर साहिब से वह तीन बार विधायक रह चुके हैं। वह निर्दलीय चुनाव जीते थे। चमकौर साहिब उस युद्ध के लिए जाना जाता है जो 1704 में हुआ था। यह युद्ध 21, 22, और 23 दिसम्बर को गुरु गोविंद सिंह और मुगलों की सेना के बीच पंजाब के चमकौर में लड़ा गया था।
गुरु गोबिंद सिंह 20 दिसम्बर की रात आनंद पुर साहिब छोड़ कर 21 दिसम्बर की शाम को चमकौर पहुंचे थे। और उनके पीछे मुगलों की एक विशाल सेना भी 22 दिसम्बर की सुबह तक चमकौर पहुंच गई थी। सेना का नेतृत्व कर रहा वजीर खां गुरु गोबिंद सिंह को जीवित या मृत पकड़ना चाहता था।
चमकौर के इस युद्ध में गुरु गोबिंद सिंह की सेना में केवल उनके दो बड़े साहिबजादे अजीत सिंह, जुझार सिंह और 40 सिंह थे। इन 43 लोगों ने मिल कर वजीर खां की आधी से ज्यादा सेना का विनाश कर दिया था। लेकिन इस युद्ध में गुरु गोविंद के दो पुत्रों साहिबज़ादा अजीत सिंह, साहिबज़ादा जुझार सिंह और 40 सिंह भी शहीद हो गए।
क्या कांग्रेस की आंतरिक कलह का लाभ चन्नी को मिला?
दरअसल, पंजाब कांग्रेस में मुख्यमंत्री पद के लिए किसी एक नाम पर सहमति नहीं बन पा रही थी। क्योंकि किसी एक नाम पर सहमति बनने पर उसका विरोध खुद सिद्धू कर रहे थे। ऐसे में उन्होंने एक आवाज उठाई कि यदि किसी दलित को मुख्यमंत्री बना दिया जाए तो पंजाब में सियासी समीकरण अनुकूल हो जाएगा।
ऐसा इसलिए है कि पंजाब में दलित समुदाय की मौजूदगी इतनी पर्याप्त है कि वह चुनावी समीकरण को बनाने और बिगाड़ने में सक्षम है। 2017 के विधानसभा चुनाव में पंजाब की 117 सीटों में 34 सुरक्षित हैं। कांग्रेस ने इनमें 22 सीटों पर कब्जा किया था। इस स्थिति के सामने आम आदमी पार्टी और अकाली दल कहीं टिक नहीं पाए थे।
दलितों को पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं मिला
फिर भी पंजाब विधानसभा में दलितों को पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं मिला था। और चन्नी ने ही आवाज बुलंद की थी कि मंत्रिमंडल में दलितों को पर्याप्त स्थान क्यों नहीं दिया गया? अब चन्नी के मुख्यमंत्री बन जाने पर क्या दलितों के लिए चुनाव से पहले कोई बड़ी घोषणा हो पाएगी? ऐसा लगता नहीं है।
लेकिन इस आंकड़े को भी नजर अंदाज नहीं किया जा सकता। क्योंकि पूरे देश में दलित 15 प्रतिशत हैं और उनके पास भूमि मात्र साढ़े आठ प्रतिशत। पंजाब की बात करें, तो वहां दलित 32 प्रतिशत हैं, लेकिन उनके पास भूमि मात्र साढ़े तीन प्रतिशत। ऐसे में गौरतलब यह है कि पंजाब में 15 मुख्यमंत्री बने, लेकिन उनमें कोई भी दलित समुदाय से नहीं था।
क्या कांग्रेस को चुनावी लाभ मिल पाएगा?
दलित को मुख्यमंत्री बनाने की किसी ने हिम्मत तक नहीं दिखाई। अब कांग्रेस ने यह हिम्मत दिखाई है तो क्या उसे इसका चुनावी लाभ मिल पाएगा? दरअसल, कांग्रेस ने वोटबैंक की राजनीति को एक नई हवा दे दी है। इसका दबाव देश की सभी पार्टियों पर है। तभी तो ये पार्टियां चन्नी को सीएम बनाए जाने के खिलाफ बयान दे रही हैं।
गौरतलब है कि पंजाब के साथ यूपी और उत्तराखंड में भी विधानसभा चुनाव होने हैं। इन राज्यों में दलित मतदाता प्रभावशाली भूमिका में है। ऐसे में पार्टी चुनाव में दलित, मुस्लिम और सवर्ण को जोड़ने में कामयाब रहती है, तो यह फैसला उसके लिए संजीवनी साबित हो सकता है।