
Chaudhary Charan Singh: आज चौधरी चरण सिंह जैसे जमीनी किसान नेता की जरूरत महसूस की जा रही है। वैसे तो किसानों के नाम पर कई नेताओं ने राजनीति की है और कर भी रहे हैं। पर किसानों के लिए यदि किसी ने सच्चे मन से काम किया है तो वह चौधरी चरण सिंह ही थे। चरण सिंह किसानों के नेता ही नहीं, खांटी समाजवादी भी थे।
Chaudhary Charan Singh: चौधरी चरण सिंह की पुण्यतिथि 29 मई पर विशेष
चरण सिंह राजपूत
Chaudhary Charan Singh: मोदी सरकार ने पूंजीपतियों के लिए खेती पर कब्जा करने की साजिश के तहत खेती कानून पास किया है। जाहिर है कि इससे देश की संपूर्ण जनता को बर्बाद किया जा रहा है। छह महीने से किसान देश की राजधानी के चारों ओर डेरा डाले बैठे हैं। पर मोदी सरकार उनकी मांग की अनदेखी कर रही है।
उल्टे उन्हें ही गलत साबित कराने के लिए गोदी मीडिया को लगा रखा है। कृषि प्रधान देश में किसानों को नक्सली, आतंकवादी, डकैत, देशद्रोही आदि आदि बताया जा रहा है। ऐसे में चौधरी चरण सिंह जैसे जमीनी किसान नेता की जरूरत महसूस की जा रही है।
खांटी समाजवादी भी थे चौधरी चरण सिंह
Chaudhary Charan Singh: वैसे तो किसानों के नाम पर कई नेताओं ने राजनीति की है। और कर भी रहे हैं। पर किसानों के लिए यदि किसी ने सच्चे मन से काम किया है तो वह चौधरी चरण सिंह ही थे। चरण सिंह किसानों के नेता ही नहीं खांटी समाजवादी भी थे।
समाजवादी सत्ता के लिए डॉ. राममनोहर लोहिया ने खाद पानी की व्यवस्था की तो पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह का जाति तोड़ो सिद्धांत और उनकी स्वीकार्यता कहीं अधिक महत्वपूर्ण है। चौधरी चरण सिंह की पुण्यतिथि पर समाजवाद सरोकार में उनके जैसे खांटी नेताओं की याद आना लाजमी है।
सपा की राजनीतिक पाठशाला के आचार्य
Chaudhary Charan Singh: स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद देश की सत्ता पर काबिज रही कांग्रेस के विरुद्ध सशक्त समाजवादी विचारधारा की स्थापना का श्रेय भले ही डॉ. राममनोहर लोहिया और जयप्रकाश नारायण को जाता हो। पर उत्तर प्रदेश की सत्ता पर लम्बे समय तक काबिज रहने वाली समाजवादी पार्टी के रहनुमा जिस पाठशाला में राजनीति का ककहरा सीख कर आए, उसके आचार्य चरण सिंह ही रहे हैं।
यहां तक कि हरियाणा और बिहार के समाजवादियों को भी चरण सिंह ने राजनीतिक पाठ पढ़ाया। चरण सिंह का किसानों के प्रति समर्पण ही था कि समाजवादी नेताओं ने किसानों के लिए कुछ न कुछ जरूर किया।
पूंजीवाद और परिवारवाद के घोर विरोधी
आज भले ही उनके शिष्यों पर परिवाद और पूंजीवाद के आरोप लग रहे हों पर चौधरी चरण सिंह पूंजीवाद और परिवारवाद के घोर विरोधी थे। और गांव, गरीब तथा किसान उनकी नीति में सर्वोपरि थे। हां, अजित सिंह को विदेश से बुलाकर पार्टी की बागडोर सौंपने पर उन पर पुत्रमोह का आरोप जरूर लगा था।
तबके कम्युनिस्ट नेता चौ. चरण सिंह को कुलक नेता जमींदार कहते थे। जबकि सच्चाई यह भी है कि चौ. चरण सिंह के पास भदौरा (गाजियाबाद) गांव में मात्र 27 बीघा जमीन थी। इस जमीन को भी उन्होंने जरूरत पर बेच दी थी। यह उनकी ईमानदारी का प्रमाण है कि मुख्यमंत्री, गृहमंत्री और प्रधानमंत्री बनने के बावजूद निधन के समय उनके नाम न कोई जमीन थी और न ही कोई मकान ही था।
महर्षि दयानंद का अमिट प्रभाव
चरण सिंह ने अपने करियर की शुरुआत मेरठ से वकालत के रूप में की थी। चरण सिंह का व्यक्तित्व और कृतित्व विलक्षण था। गांव और किसान के मुद्दे पर बहुत संवेदनशील हो जाते थे। आर्य समाज के कट्टर अनुयायी रहे चरण सिंह पर महर्षि दयानंद का अमिट प्रभाव था।
चरण सिंह मूर्ति पूजा, पाखंड और आडम्बर में कतई विश्वास नहीं करते थे। यहां तक कि उन्होंने जीवन में न किसी मजार पर जाकर चादर चढ़ाई और न ही मूर्ति पूजा की। चौधरी चरण सिंह की नस-नस में सादगी और सरलता थी। वह किसानों की पीड़ा से द्रवित हो उठते थे।
जब उत्तर प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री बने
उन्होंने कांग्रेस के गढ़ को ध्वस्त करने का जो संकल्प लिया, उसे पूरा भी किया। शून्य से शिखर पर पहुंचकर भी उन्होंने कभी सिद्धांतों से समझौता नहीं किया। चरण सिंह ने कहा था कि भ्रष्टाचार की कोई सीमा नहीं है। जिस देश के लोग भ्रष्ट होंगे, चाहे कोई भी लीडर आ जाए, चाहे कितना ही अच्छा कार्यक्रम चलाओ, वह देश तरक्की नहीं कर सकता।
वैसे तो चौधरी चरण सिंह छात्र जीवन से ही विभिन्न सामाजिक और राजनीतिक कार्यक्रमों में भाग लेने लगे थे। पर उनकी राजनीतिक पहचान 1951 में उस समय बनी जब उन्हें उत्तर प्रदेश में कैबिनेट मंत्री का पद प्राप्त हुआ। उन्होंने न्याय एवं सूचना विभाग संभाला।
और किसानों के मसीहा बन गए
चरण सिंह स्वभाव से ही किसान थे। यह उनका किसानों के प्रति लगाव ही था कि उनके हितों के लिए अनवरत प्रयास करते रहे। 1960 में चंद्रभानु गुप्ता की सरकार में उन्हें गृह और कृषि मंत्रालय दिया गया। उस समय तक वह उत्तर प्रदेश की जनता के मध्य अत्यंत लोकप्रिय हो चुके थे। उत्तर प्रदेश के किसान चरण सिंह को अपना मसीहा मानते थे।
उन्होंने किसान नेता की हैसियत से उत्तर प्रदेश में भ्रमण करते हुए किसानों की समस्याओं का समाधान करने का प्रयास किया। किसानों में सम्मान होने के कारण चरण सिंह को किसी भी चुनाव में हार का मुंह नहीं देखना पड़ा।
जनसभाओं में जुट जाती थी भारी भीड़
उनकी ईमानदाराना कोशिशों की सदैव सराहना हुई। वह लोगों के लिए एक राजनीतिज्ञ से ज्यादा सामाजिक कार्यकर्ता थे। उन्हें भाषण देने में महारत हासिल थी। यही कारण था कि उनकी जनसभाओं में भारी भीड़ जुट जाती थी।
यह उनकी भाषा शैली ही थी कि लोग उन्हें सुनने को लालयित रहते थे। 1969 में कांग्रेस का विघटन हुआ तो चौधरी चरण सिंह कांग्रेस (ओ) के साथ जुड़ गए। इनकी निष्ठा कांग्रेस सिंडिकेट के प्रति रही। वह कांग्रेस (ओ) के समर्थन से उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री तो बने पर बहुत समय तक इस पद पर न रह सके।
इंदिरा गांधी के सहज विरोधी
कांग्रेस विभाजन का प्रभाव उत्तर प्रदेश राज्य की कांग्रेस पर भी पड़ा था। केंद्रीय स्तर पर हुआ विभाजन राज्य स्तर पर भी लागू हुआ। चरण सिंह इंदिरा गांधी के सहज विरोधी थे। इस कारण वह कांग्रेस (ओ) के कृपापात्र बने रहे।
जिस समय इंदिरा गांधी देश की प्रधानमंत्री थीं, उस समय भी उत्तर प्रदेश संसदीय सीटों के मामले में बड़ा और महत्वपूर्ण राज्य था। इंदिरा गांधी का गृह प्रदेश होना इसकी एक वजह थी। इस कारण उन्हें यह स्वीकार न था कि कांग्रेस (ओ) का कोई व्यक्ति उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री रहे। इंदिरा गांधी ने दो अक्टूबर 1970 को उत्तर प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया था।
भूमि सुधार के अग्रणी नेता
चौधरी चरण सिंह का मुख्यमंत्रित्व काल जाता रहा। इससे इंदिरा के प्रति चौधरी चरण सिंह का रोष और बढ़ गया था। हालांकि उत्तर प्रदेश की जमीनी राजनीति से चरण सिंह को बेदखल करना संभव न था। चरण सिंह उत्तर प्रदेश में भूमि सुधार के लिए अग्रणी नेता माने जाते हैं। 1960 में उन्होंने भूमि हदबंदी कानून लागू कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
इमरजेंसी लगने के बाद 1977 में हुए चुनाव में जब जनता पार्टी जीती तो आंदोलन के अगुआ जयप्रकाश नारायण के सहयोग से मोरारजी देसाई देश के प्रधानमंत्री बने। और चरण सिंह को गृहमंत्री बनाया गया। सरकार बनने के बाद से ही मोरारजी देसाई और चरण सिंह के मतभेद खुलकर सामने आने लगे थे।
और देश के प्रधानमंत्री बन गए
और 28 जुलाई, 1979 को चौधरी चरण सिंह समाजवादी पार्टियों और कांग्रेस (यू) के सहयोग से प्रधानमंत्री बनने में सफल हो गए। कांग्रेस और सीपीआई ने उन्हें बाहर से समर्थन दिया। प्रधानमंत्री बनने में इंदिरा गांंधी का समर्थन लेना राजनीतिक पंडित चरण सिंह की पहली और आखिरी गलती मानते हैं।
दरअसल, इंदिरा गांधी जानती थीं कि मोरारजी देसाई और चौधरी चरण सिंह के रिश्ते खराब हो चुके हैं। यदि चरण सिंह को समर्थन देने की बात कहकर बगावत के लिए मना लिया जाए तो जनता पार्टी में बिखराव शुरू हो जाएगा। इंदिरा गांधी ने ही चौधरी चरण सिंह की प्रधानमंत्री बनने की भावना को हवा दी थी।
जब इंदिरा गांधी ने वापस ले लिया समर्थन
चरण सिंह ने इंदिरा गांधी की बात मान ली और प्रधानमंत्री बन गए। हालांकि तत्कालीन राष्ट्रपति नीलम संजीव रेड्डी ने 20 अगस्त 1979 तक लोकसभा में बहुमत सिद्ध करने को कहा। इस प्रकार विश्वास मत प्राप्त करने के लिए उन्हें मात्र 13 दिन ही मिले। इसे चरण सिंह का दुर्भाग्य कहें या फिर समय की नजाकत, इंदिरा गांधी ने 19 अगस्त, 1979 को समर्थन वापस ले लिया।
चरण सिंह जानते थे कि विश्वास मत प्राप्त करना असंभव ही है। यहां पर यह बताना जरूरी होगा कि इंदिरा गांधी ने समर्थन के लिए शर्त लगा दी थी। उसके अनुसार जनता पार्टी सरकार ने इंदिरा गांधी के विरुद्ध जो मुकदमे कायम किए हैं, उन्हें वापस ले लिया जाए। चौधरी साहब इसके लिए तैयार न थे। इसलिए उनकी प्रधानमंत्री की कुर्सी चली गई।
सिद्धांतों के लिए त्याग दिया प्रधानमंत्री पद
वह जानते थे कि जो उन्होंने ईमानदार और सिद्धांतवादी नेता की छवि बना रखी है। वह सदैव के लिए खंडित हो जाएगी। अत: संसद का एक बार भी सामना किए बिना चौधरी चरण सिंह ने प्रधानमंत्री पद से त्यागपत्र दे दिया।
प्रधानमंत्री पद से त्यागपत्र देने के साथ-साथ चौधरी चरण सिंह ने राष्ट्रपति नीलम संजीव रेड्डी से मध्यावधि चुनाव की सिफारिश भी की ताकि किसी अन्य द्वारा प्रधानमंत्री का दावा न किया जा सके। राष्ट्रपति ने इनकी अनुशंसा पर लोकसभा भंग कर दी। चौधरी चरण सिंह को लगता था कि इंदिरा गांधी की तरह जनता पार्टी भी अलोकप्रिय हो चुकी है।
मध्यावधि चुनाव में किसान राजा का चुनावी नारा
अत: वह अपनी लोकदल पार्टी और समाजवादियों से यह उम्मीद लगा बैठे कि मध्यावधि चुनाव में उन्हें बहुमत प्राप्त हो जाएगा। इसके अलावा चरण सिंह को यह आशा भी थी कि उनके द्वारा त्यागपत्र दिए जाने के कारण उन्हें जनता की सहानुभूति मिलेगी। किसानों में उनकी जो लोकप्रियता थी, वह असंदिग्ध थी। वह मध्यावधि चुनाव में किसान राजा के चुनावी नारे के साथ उतरे।
तब कार्यवाहक प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह ही थे, जब मध्यावधि चुनाव सम्पन्न हुए। वह 14 जनवरी 1980 तक ही प्रधानमंत्री रहे। इस प्रकार उनका कार्यकाल लगभग नौ माह का रहा। चौधरी चरण सिंह की व्यक्तिगत छवि एक ऐसे देहाती पुरुष की थी जो सादा जीवन और उच्च विचार में विश्वास रखता था।
पहनावा भी किसान की सादगी का प्रतीक
उनका पहनावा एक किसान की सादगी का ही प्रतीक था। एक प्रशासक के तौर पर उन्हें बेहद सिद्धांतवादी और अनुशासनप्रिय माना जाता था। वह सरकारी अधिकारियों की लाल फीताशाही और भ्रष्टाचार के प्रबल विरोधी थे। प्रत्येक राजनीतिज्ञ की यह स्वभाविक इच्छा होती है कि वह राजनीति के शीर्ष पद पहुंचे।
इसमें कुछ भी अनैतिक नहीं है। चरण सिंह अच्छे वक्ता थे और बेहतरीन सांसद भी। वह जिस कार्य को करने का मन बना लेते तो फिर उसे पूरा करके ही दम लेते थे। चौधरी चरण सिंह राजनीति में स्वच्छ छवि रखने वाले इंसान थे।
जीवन पर्यंत गांधी टोपी
Chaudhary Charan Singh: वह अपने समकालीन लोगों के समान गांधीवादी विचारधारा में यकीन रखते थे। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद गांधी टोपी को कई दिग्गज नेताओं ने त्याग दिया था पर चौधरी चरण सिंह ने इसे जीवन पर्यंत धारण किए रखा।
बहुत कम लोगों को इस बात की जानकारी होगी कि चरण सिंह एक कुशल लेखक की आत्मा भी रखते थे। उनका अंग्रेजी भाषा पर अच्छा अधिकार था। उन्होंने ‘आबॉलिशन ऑफ जमींदारी, लिजेंड प्रोपराटरशिप और इंडियाज पॉवर्टी एंड सोल्यूशंस नामक पुस्तकों का लेखन भी किया। जनवरी 1980 में इंदिरा गांधी का पुरागमन चरण सिंह की राजनीतिक विदाई का कारण बना।