कायस्थ शिरोमणि मुंशी प्रेमचंद ऐसे कालजयी उपन्यासकार थे, जिन्होंने अपनी लेखनी के दम पर पूरे विश्व में अपनी पहचान बनायी. मुंशी प्रेमचंद का व्यक्तित्व बड़ा ही साधारण था तभी तो उनके निधन के 81 वर्ष बाद भी उनकी कालजयी रचना कफन, गबन, गोदान, ईदगाह व नमक का दारोगा हर किसी को बचपन की यादों में ले जाती है। मुंशी प्रेमचंद जी ने अपनी कलम की ताकत से पुरे समाज को एक नयी दिशा दी है, हमेशा समाज में चल रही कुप्रथाओं के बारे में लिखा। इन्होने भारत की स्वत्रन्त्रता की लड़ाई में भी अपने लेखन के द्वारा योगदान दिया और एक नयी क्रांति फैलाई ।इनकी रचनाओं ने भारतवासियों को एक नये जोश से भर दिया।
31 जुलाई 1880 को बनारस से लगभग छह मील दूर लमही नामक गांव में कायस्थ परिवार में उनका जन्म हुआ था। प्रेमचंद के दादाजी गुरु सहाय सराय पटवारी और पिता अजायब राय डाकखाने में क्लर्क थे ।उनकी माता का नाम आनंदी देवी था। मुंशी प्रेमचंन्द्र का वास्तविक नाम धनपत राय था। वो जब बहुत ही कम उम्र मात्र 8 वर्ष के थे तब उनकी माता जी का निधन हो गया था जिस वजह से इनके पिता जी ने दुबारा शादी करना पड़ी। ऐसा कहा जाता है कि मुंशी जी की और उनकी सौतेली माँ के बीच में सम्बन्ध कुछ खास अच्छे नहीं थे। माँ की कमी का असर उनकी रचनाओं में स्पष्ठ झलकता है।
पिता जी के देहांत के बाद परिवार की जिम्मेदारी और विश्वविध्यालय में दाखिला न होने के कारण मुंशी जी को पढाई बीच में ही छोड़ना पड़ी।लेकिन उनका किताबों, उपन्यास आदि को पढने और लिखने का शौक जारी रहा। मुंशी प्रेमचंन्द्र का विवाह भी सन 1895 में मात्र 15 वर्ष की आयु में कर दिया गया था लेकिन पारिवारिक मतभेद और कलह के कारण उनकी पत्नी जल्दी ही अपने मायके चली गयी जो बाद में कभी लौट के वापस नहीं आई । बाद में उन्होंने 1906 में दूसरा विवाह एक बाल विधवा से किया जिनका नाम शिवरानी देवी था, उस ज़माने के हिसाब से विधवा से विवाह करना बहुत बड़ी बात थी ।
मुंशी प्रेमचंद जी गाँधी जी से भी प्रभावित थे इसी के चलते 1920 में उन्होंने “असहयोग आन्दोलन “ के तहत अपनी नौकरी छोड़ दी . जिसमे सभी विदेशी वास्तु एवं सेवाओं का त्याग करने को कहा गया था। लेकिन 1922 में इस अभियान को वापस ले लिया गया और इसके बाद मुंशी जी ने अपना पूरा ध्यान अपने साहित्यिक करियर पर कर लिया ।
1934 में मुंशी जी ने मुंबई आकर बॉलीवुड में भी अपना हाथ आजमाया ।इनकी पहली फिल्म थी मजदुर जिसकी स्क्रिप्ट मुंशी जी ने लिखी . जिसकी पूरी कहानी मजदूरों के हक़ से सम्बंधित थी जिसके चलते इसे कई जगहो पर प्रतिबंधित किया गया जिसके बाद वे 1935 में वापस बनारस आ गये। मुंबई से वापस आने के बाद धीरे धीरे उनकी सेहत गिरने लगी . 8 अक्टूबर 1936 को मुंशी जी का निधन हो गया . उनके देहांत साथ ही एक साहित्यिक युग का अंत हुआ ।
मुंशी प्रेमचंद की कहानियों के पात्र अक्सर काल्पनिक ना होकर वास्तविक होते थे। क्योंकि मुंशी जी असली जिन्दगी में या समाज में जो देखते थे उन्ही पर कहानियाँ लिखते थे। मुंशी प्रेमचंद जी ने कई विधाओं में अपना लेखन किया जैसे उपन्यास, कहानियां, नाटक इत्यादि . मुंशी जी को “उपन्यास सम्राट” की उपाधि से सम्मानित किया गया . मुंशी प्रेमचंद जी की कई रचनाओं को बड़े पर्दे पर भी उतारा गया , बहुत सारी ऐसी फिल्मे है जो मुंशी प्रेम चंद जी की रचनाओं पर आधारित है , जैसे – शतरंज के खिलाडी आदि
गोदान (1936), कफन (1936), ईदगाह (1933), निर्मला (1927), गबन (1928), मानसरोवर (1936), बड़े घर की बेटी, कर्मभूमि (1932), पूस की रात , नमक का दरोगा (1925), दो बैलो की कथा (1931), सेवासदन (1919), रंगभूमि (1924), पञ्च परमेश्वर, प्रेमाश्रम (1922), शतरंज के खिलाडी (1924), बड़े भाई साहब, प्रतिज्ञा , वरदान, इनकी प्रमुख रचनाये है ।