Coal Crisis: देश को बताया जा रहा है कि कोयले की कमी हो गई है। बाहर से मंगाना होगा। कोयले की आपूर्ति न हुई तो बिजली संकट गहराएगा। क्या यही सच है या कुछ और?
Coal Crisis: ताकि अडानी की आस्ट्रेलियाई कंपनी से कोयला आयात किया जा सके
अंकित तिवारी
Coal Crisis: इकलहरा खदान के कोयला भंडार में डेढ़ महीने से आग लगी है। 25% कोयला जल चुका है। यूनियन एक्शन लेने के लिए आंदोलन कर रही है। और वेस्टर्न कोल फील्ड लिमिटेड के महाप्रबंधक कह रहे हैं कि सब ठीक है।
बाड़मेर की एक खबर के अनुसार, सोनडी और गिरल में लगातार कोयला उत्पादन हो रहा है। और ठेकेदार उसमें मुनाफाखोरी कर रहे हैं। फिर भी बताया जा रहा है कि देश में कोयले की कमी है? सच क्या है, इसी को समझते हैं।
सारे कांड सरकार की सहमति से
Coal Crisis: दरअसल, ये सारे कांड सरकार की सहमति से कराए जा रहे हैं। ताकि जनता को बताया जा सके कि देश में कोयले की कमी है। इसलिए विदेशों से आयात होगा, एक तरफ कोल इंडिया को प्राइवेटाइज करने का बहाना मिलेगा दूसरी तरफ प्राइवेट खनिकों को खनन करने के लिए सारे नियमों की ऐसी की तैसी करने की खुली छूट मिलेगी।
इस प्रकार अडानी की आस्ट्रेलिया वाली खदान का कोयला भारत आएगा। कमी है तो रेट बढ़ गए। इसलिए बिजली के रेट बढ़ेंगे। डीजल, पेट्रोल, रेल, एयर टिकट और एलपीजी गैस के बाद अगला नंबर बिजली का है।
बिजली प्री-पेड की जाएगी?
सूत्रों की खबर है कि इसके साथ ही बिजली प्री-पेड की जाएगी। अर्थात गरीब आदमी अब जितने दिन बिल जमा नहीं कर पाएगा, उतने दिन उसे अंधेरे में रहना होगा।
सूत्रों की मानें तो जब मोदी जी की सरकार बनी थी तब 2015 में कोल इंडिया लिमिटेड के पास कोयले का जो रिजर्व था, घट कर चौथाई रह गया है। 2016 में कोल इंडिया का 400 पे ट्रेड हो रहा था जो फ़िलहाल 200 से भी नीचे है।
कोल इंडिया का चीफ मैनेजिंग डाइरेक्टर
मोदी सरकार ने एक साल तक कोल इंडिया का चीफ मैनेजिंग डाइरेक्टर नियुक्त नहीं किया। इस वजह से महत्वपूर्ण फैसले लिए ही नहीं गए। जानबूझ कर कोल इंडिया के हर बड़े फैसले को लटका के रखा गया। मोदी सरकार ने कोल इंडिया का पैसा जबरन फर्टिलाइजर प्लांट्स में लगवाया ताकि वो आर्थिक रूप से कमजोर हो जाए।
मोदी सरकार ने कोल इंडिया के मैनेजर्स की ड्यूटी स्कूल के टॉयलेट्स का निरीक्षण करने में भी लगा रखी थी। क्या यही उनका काम था? जो 40 हज़ार करोड़ टन का रिजर्व 10 हजार करोड़ टन रह गया है वो कहां गया?
सारा पैसा मोदी सरकार ने डिविडेंड के रूप में ले लिया
क्या कोल इंडिया ने इससे नए कोल फील्ड, नई खदाने बना कर क्षमता बढ़ाई? जवाब है, सारा पैसा मोदी सरकार ने डिविडेंड के रूप में ले लिया। अपने बजट की कमी पूरी करने के लिए, अपने लिए आठ हज़ार करोड़ का उड़न खटोला खरीदने के लिए।
अपने लिए नई संसद बनाने और उसमें प्राइवेट मेट्रो रेल बनवाने के लिए जो बजट बनाया उसमें जो कमी आई, उसमें कोल इंडिया और इस जैसे अन्य पीएसयू का रिजर्व झोंक दिया। कोल इंडिया का चीफ आवाज न उठाए, उसके लिए साल भर तक सीएमडी नियुक्त ही नहीं किया।
गलती कोल इंडिया की या मोदी सरकार की?
अब इसमें गलती कोल इंडिया की है या मोदी सरकार की ? मोदी जी के शौक का पैसा पीएसयू और आरबीआई के रिजर्व को खर्च करके पूरा किया जा रहा है। और लोग कहते हैं उन्होंने अपने लिए किया ही क्या है।
फ़क़ीर के शौक के साइड इफेक्ट अब आने शुरू हुए हैं। ध्यान रहे, रिजर्व बैंक की हालत भी कुछ ठीक नहीं है। उसके रिजर्व से भी जबरिया पैसा ले चुके हैं। आने वाले समय में इस तरह के संकट आएंगे और तब मोदी जी उन पीएसयू को बेच कर पीछा छुड़ा लेंगे।
बिहार में गहराया बिजली संकट
देश में बिजली का उत्पादन जिस तरह प्रभावित हुआ, उसका असर बिहार में दिखा है। बिहार को केंद्रीय कोटे से मिलने वाली बिजली में भारी कटौती की गई है। इसकी वजह से राज्य के छोटे शहरों और ग्रामीण इलाकों में आठ से 10 घंटे तक बिजली की कटौती हो रही है।
सबसे ज्यादा असर उत्तर बिहार के जिलों पर पड़ा है। दक्षिण बिहार में बिजली कटौती का असर थोड़ा कम है। बिहार को अभी 6500 मेगावाट बिजली की जरूरत है। और 5700 मेगावाट बिजली की आपूर्ति की जा सकी है। 3200 मेगावाट केंद्रीय कोटे से मिली और 1500 मेगावाट राज्य सरकार ने खुले बाजार से खरीद कर आपूर्ति की है।
बिजली की खपत में इजाफा भी हुआ है। दुर्गा पूजा के कारण डिमांड बढ़कर 6000 मेगावाट से अधिक हो गई। बिहार सरकार खुले बाजार से 20 रुपये प्रति यूनिट की दर से 1000 मेगावाट से अधिक बिजली खरीद चुकी है। बावजूद इसके, मांग को पूरा नहीं किया जा सका है।
क्या हम बिजली के लिए सिर्फ कोयले पर आश्रित?
इस प्रकार देश भर में बिजली आपूर्ति की स्थिति चरमरा रही है। कहा जा रहा है कोयले की आपूर्ति में बाधा है इसलिए समस्या हो रही है। लेकिन बाधा हो क्यों रही है? क्या हम बिजली के लिए सिर्फ कोयले पर इतना आश्रित हैं? बिल्कुल नहीं।
देश की औसत पॉवर कंजम्पशन 180 गेगावाट के आसपास है। ऑल टाइम पीक डिमांड 7 जुलाई को 200 गेगावाट से अधिक हो गई थी। देश के हाइड्रोइलेक्ट्रिक पॉवर प्लांट्स की कैपिसिटी 50 गेगावाट है। अभी तुरंत बरसात ख़त्म हुई है। सारे रिज़र्वेयर में पानी भरा है। हाइड्रोइलेक्ट्रिक प्लांट अधिकतम क्षमता से उत्पादन कर रहे हैं।
रिन्युएबल एनर्जी श्रोतों की कुल क्षमता 100.68 गेगावाट है। इसमें भी कोई बरसात या कोहरा कुहासा का समय है नहीं कि उत्पादन पर कोई प्रतिकूल प्रभाव पड़े। न्यूक्लियर एनर्जी 6.78 गेगावाट। कुल हो गए 155 गेगावाट।
124 गेगावाट बिजली तो नॉन-कोल संयंत्र से
मान लिया जाए कि सारे फेवरेबल माहौल होने के बावजूद सभी संयंत्र 80% उत्पादन क्षमता पर ही काम कर रहे हैं। फिर भी 124 गेगावाट हुआ। इसके अतिरिक्त गैस, डीज़ल आदि से जो होते हैं उनको छोड़ दीजिए। 180 से 124 गेगावाट बिजली तो नॉन-कोल संयंत्र से आ रही है। बाकी 56 गेगावाट कोयला से उत्पादन होना है।
मान लीजिए 60 गेगावाट बिजली का उत्पादन कोयले से करना है। देश में कोयला आधारित संयंत्रों की क्षमता 202 गेगावाट है। मतलब 202 गेगावाट की क्षमता और उसको आप 60 गेगावाट उत्पादन के लायक़ कोयला सप्लाई भी नहीं दे पा रहे हैं? 30% से भी कम!
कोयला उत्पादन में 11.83% की वृद्धि
Coal Crisis: अब रही कोयला की बात। कोयला मंत्रालय की वेबसाइट के मुताबिक, सितंबर 2021 तक पिछले साल की तुलना में कोयला उत्पादन में 11.83% की वृद्धि हुई है। पिछले साल इसी अवधि में 282.307 मीट्रिक टन कोयले का उत्पादन हुआ था। वहीं इस साल 315.718 मीट्रिक टन उत्पादन हो चुका है।
साल दर साल बिजली के लिए कोयला पर निर्भरता कम हो रही है। और कोयला का भी उत्पादन बढ़ रहा है। फिर यह किल्लत क्यों? या तो जो उत्पादन हो रहा है, उसका सही से आवंटन नहीं किया जा रहा है ऊर्जा संयंत्रों को या फिर…! अगर आप इन तथ्यों से सहमत नहीं हैं तो अपने स्रोतों का उल्लेख करते हुए कमेंट बॉक्स में अपना अपडेट भेज सकते हैं।