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Consignment of Medical Goods: जो लोग विमानों में भर भर कर चिकित्सा राहत सामग्री विदेशों से भारत आने का श्रेय लूट रहे थे, आज वही सवालों के घेरे में हैं। क्योंकि मेडिकल सामानों की खेप कई दिनों तक दिल्ली में एयरपोर्ट पर रखी रही और लोग उसके अभाव में मरते रहे। यह महज एक लापरवाही है या कुछ और, जानते हैं इसी सच के बारे में।
Consignment of Medical Goods: आखिर क्यों जान गंवाते रहे कोरोना मरीज?
इंफोपोस्ट न्यूज
Consignment of Medical Goods: संक्रमण की दूसरी घातक लहर के बढ़ने के साथ ही दुनिया भर के तमाम देशों से भारत को भेजी जाने वाली इमरजेंसी मेडिकल सप्लाई की रफ़्तार बढ़ने के बावजूद आखिर कोरोना मरीजों को राहत क्यों नहीं मिल पाई? व्यापक विदेशी मदद के बावजूद क्यों चिकित्सा सुविधा के अभाव में जान गंवाते रहे लोग ? यह सवाल हर किसी के जेहन में उठ रहा है।
दरअसल, विदेशी मदद की पहली खेप एक सप्ताह से ज्यादा दिनों तक दिल्ली में एयरपोर्ट पर रखी रही। उसे जिंदगी और मौत से जूझ रहे कोरोना मरीजों तक नहीं पहुंचाया जा सका। मेडिकल सामानों को कोरोना मरीजों तक पहुंचाना आखिर किसकी जिम्मेदारी थी?
अमेरिका में गूंज रहा है पारदर्शिता का मामला
इन्हीं सवालों से पैदा हुई एक खबर अमेरिका से आई है। राष्ट्रपति जो वाइडन के प्रवक्ता से वहां के पत्रकारों ने सवाल किया है कि अमेरिका के कर दाताओं के पैसे से भारत भेजी जा रही मदद आखिर कहां जा रही है? क्या अमेरिका इसकी कोई जांच कर रहा है कि भारत में अमेरिकी मदद का वितरण कैसे किया जा रहा है? क्योंकि हमारे 10 करोड़ डालर का सवाल है।
दरअसल, कोरोना महामारी के प्रति मोदी सरकार के ढीले रवैये पर अभी तक जो देश में ही सवाल किए जा रहे थे, अब दुनिया भर के पत्रकार उसी सवाल को उठाने लगे हैं। विदेशी न्यूज चैनल सीएनएन ने कहा था कि मेडिकल सामग्री बजाय जरूरतमंद लोगों तक पहुंचने के, कस्टम में ही रुकी रह गई।
मदद का न तो कोई लेखाजोखा, न ही कोई रिकार्ड
बताते चलें कि भारत को अलग अलग देशों और अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं से काफी मदद मिल रही है। लेकिन इस मदद का न तो कोई लेखाजोखा उपलब्ध कराया जा रहा है और न ही कोई रिकार्ड। जिससे पारदर्शिता पर भी सवाल उठने लगे हैं।
अकेले दिल्ली के अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट पर पहुंची 300 टन राहत सामग्री की एक खेप कहां कहां गई, जानते हैं उसके बारे में। एक टीवी चैनल ने दावा किया था कि इस खेप की राहत सामग्री उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और कर्नाटक के अलावा किसी भी गैर भाजपा शासित राज्य को नहीं दी गई। तो फिर ये मेडिकल सामग्री आखिर जा कहां रही है?
डॉक्टर हर्ष महाजन ने क्या कहा?
विवाद का विषय भी यही है कि मेडिकल सामग्री के बारे में कोई पारदर्शिता नहीं है। इस बारे में किसी को भी कोई जानकारी नहीं दी जा रही है। हेल्थ केयर फेडरेशन आफ इंडिया के अध्यक्ष डॉक्टर हर्ष महाजन का कहना है कि विदेशी मदद कहां बांटी जा रही है, इसकी उन्हें कोई सूचना नहीं है।
बताना जरूरी है कि हेल्थ केयर फेडरेशन आफ इंडिया देश के कुछ शीर्ष अस्पतालों का प्रतिनिधित्व करता है। जब उसे ही कोई जानकारी नहीं दी गई तो सवाल उठना लाजिमी है। यही नहीं, आश्चर्य तो इस बात का भी है कि मदद करने वाले उन तमाम देशों को भी यह पता नहीं है कि मदद जरूरतमंदों तक पहुंच भी रही है या नहीं।
अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने क्या कहा?
अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने तो यहां तक कह दिया है कि ऐसी कोई वेबसाइट नहीं है, जहां से यह जानकारी मिल सके कि भारत में विदेशी मदद का वितरण हो भी रहा है या नहीं। इन सवालों से एक ओर मोदी सरकार को घेरा जा रहा है तो दूसरी ओर देश की छवि भी खराब हो रही है। जाहिर है कि इससे केंद्र सरकार और भारतीय जनता पार्टी की छवि जरूर खराब होगी।
ब्रिटेन और अमेरिका से विमानों में भर कर वेंटिलेटर, दवाइयां और ऑक्सीजन उपकरण भारत पहुंचने लगे, लेकिन अस्पताल लगातार ज़्यादा मदद की गुहार लगाते रहे। मेडिकल सामानों की खेप हवाईअड्डों पर पड़ी रही।
निष्कर्ष
Consignment of Medical Goods: दिल्ली के अधिकारियों ने स्थानीय मीडिया को बताया था कि आपातकालीन मदद की पहली खेप एक सप्ताह से ज़्यादा समय तक ज़रूरतमंदों तक नहीं पहुंच सकी थी। इस पर कुछ गोदी टाइप के पत्रकार हायतोबा मचा रहे हैं कि मोदी को न घेरा जाए। क्योंकि मोदी ही देश हैं। और मोदी विरोध के नाम पर देश को बदनाम न किया जाए। इस संदर्भ में आप क्या सोचते हैं, कमेंट करके बता सकते हैं। हम आपके कमेंट को कहते हैं लोग कॉलम में प्रकाशित भी करेंगे। धन्यवाद।