Dead line: भारत में ऐसी नाकारा सरकार है, जो जीने की बात तो दूर मरने तक की व्यवस्था नहीं कर पा रही है। दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि कुछ लोग इसी सरकार को देश मान चुके हैं। ऐसा देश जो इतना चुनावजीवी हो गया है कि उसे महामारी की गंभीरता की भी परवाह नहीं।
हमें यह समझना होगा कि देश किसी भी पार्टी, व्यक्ति और सरकार से कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण होता है। देश के लिए अगर किसी सरकार, पार्टी या व्यक्ति की छवि पर हमला करने की जरूरत हो, तो जरूर करना चाहिए। क्योंकि यही सही मायने में देशभक्ति है। देश को खोखला कर रही सरकार की तारीफ करना भी देशद्रोह से कम नहीं है।
Dead line: दिल्ली के सुभाषनगर में शवदाहगृह की विचलित कर देने वाली तस्वीर
मुकेश श्रीराम
Dead line: दिल्ली के सुभाषनगर में शवदाहगृह की यह तस्वीर विचलित कर देने वाली है। कोरोना से मौत के शिकार लोगों के पार्थिव शरीर बारी के इंतजार में कतार में रखवा दिए गए हैं। हम इस तरह के खौफनाक और दिल दहला देने वाले अनेक मंजरों के गवाह बन रहे हैं।
बारह मार्च 2020 को देश के केरल राज्य में कोरोना से पहली मौत हो हुई थी। करीब तेरह माह बाद अप्रैल 2021 में मौत का यह आकंड़ा दो लाख को भी पार कर गया है। इनमें हजारों ऐसे लोग होंगे, जिनकी जान को बचाया जा सकता था। इन मौतों पर कोई अफसोस नहीं।
हरियाणा के मुख्यमंत्री का शर्मनाक बयान
उलटे हरियाणा के मुख्यमंत्री का शर्मनाक बयान सामने आया है कि आंकड़ों को क्या करोगे, मरने वाले वापस थोड़े आ जाएंगे”। यह हमारे सिस्टम का नहीं नेतृत्व की बड़ी और अक्षम्य अक्षमता है। कब तक आखिर चुनाव की जीत से हम किसी के नेतृत्व का आकलन करते रहेंगे?
क्या हम वाकई मुर्दों की तरह अपनी संवेदनाएं घृणित राजनीति के कफन में दफन कर चुके हैं? मौतों के इस दर्द से मेरी नींद रात में बार-बार उचट जाती है। मन कचोटने लगता है। मैं निहायत मामूली आदमी हूं…लिखकर ही अपना दर्द आपके सामने व्यक्त कर लेता हूं।
लोकतंत्र के “मालिक और स्वामी”
लोकतंत्र में जिन्हें हम अपना नायक बना लेते हैं…डींगे हाकते हैं कि सिस्टम जनता का सेवक है।…असलियत में यही लोकतंत्र के “मालिक और स्वामी” हैं। आम लोग महज एक “मोहरा” हैं। जिसे शतरंज के खेल की तरह राजा के सामने लड़ने के लिए खड़़ा कर दिया जाता है।
वह राशन से लेकर नोटबंदी काल में बैंकों की लाइनों में और कोरोना काल में अस्पताल में भर्ती होने के लिए छटपटाता हुआ मर जाता है। और मरने के बाद भी लाइन में लगने के लिए “मजबूर” है।
क्या खत्म हो गया लाइनों में लगने का दौर?
आप अपनी स्मृति पर जोर डालेंगे तो शायद आपको याद आ जाएगा कि हमारे प्रधानमंत्री ने बड़े गर्वोक्ति के भाव में कहा था…अब लाइनों में लगने का दौर खत्म हुआ।….लेकिन तब शायद उन्हें नहीं मालूम था कि अब लाशों को भी लाइन में लगना पड़ेगा।
आपको यह आलेख कैसा लगा? कमेंट करके जरूर बताएं। हम आपसे जानना चाहते हैं कि अगर कोई प्रधानमंत्री देश को खोखला करने लगे तो उसका विरोध करना चाहिए कि नहीं करना चाहिए। क्या कोई पीएम कभी देश से ज्यादा महत्वपूर्ण हो सकता है?