सत्य ऋषि
वेदांत दर्शन को सर्वश्रेष्ठ और अत्याधुनिक माना जाता है। क्योंकि विचारों के स्तर पर वेदांत दर्शन ठीक उसी तरह से है, जैसे एक बच्चा खिलौने वाली कार से संतुष्ट हो जाता है। लेकिन जब वही बच्चा बड़ा हो जाता है तो उसमें खिलौने वाली कार के प्रति कोई रुचि नहीं रह जाती। तब उसे असली कार की जरूरत होती है। वेदांत दर्शन उसी असली कार की तरह है।
दरअसल, वेदांत दर्शन ज्ञानयोग का एक स्रोत है जो व्यक्ति को ज्ञान प्राप्ति की दिशा में उत्प्रेरित करता है। इसका मुख्य स्रोत उपनिषद हैं, जो वेद ग्रंथों और वैदिक साहित्य का सार समझे जाते हैं। उपनिषद वैदिक साहित्य का अंतिम भाग है। इसीलिए इसको वेदान्त कहते हैं। कर्मकांड और उपासना का मुख्यत: वर्णन मंत्र और ब्राह्मणों में है। ज्ञान का विवेचन उपनिषदों में। ‘वेदान्त’ का शाब्दिक अर्थ है-‘वेदों का अंत’ अथवा सार।
अद्वैत वेदांत, विशिष्ट अद्वैत और द्वैत
वेदान्त की तीन शाखाएं जो सबसे ज्यादा जानी जाती हैं वे हैं: अद्वैत वेदान्त, विशिष्ट अद्वैत और द्वैत। आदि शंकराचार्य, रामानुज और श्री मध्वाचार्य जिनको क्रमश: इन तीनों शाखाओं का प्रवर्तक माना जाता है। इनके अलावा भी ज्ञानयोग की अन्य शाखाएं हैं। ये शाखाएं अपने प्रवर्तकों के नाम से जानी जाती हैं।
उनमें भास्कर, वल्लभ, चैतन्य, निम्बार्क, वाचस्पति मिश्र, सुरेश्वर और विज्ञान भिक्षु। आधुनिक काल में जो प्रमुख वेदान्ती हुए हैं, उनमें रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद, अरविंद घोष, स्वामी शिवानंद स्वामी करपात्री और रमण महर्षि उल्लेखनीय हैं।
संत पुरुषों ने वेदांत दर्शन को आगे बढ़ाया
ये आधुनिक विचारक अद्वैत वेदान्त शाखा का प्रतिनिधित्व करते हैं। दूसरे वेदान्तों के प्रवर्तकों ने भी अपने विचारों को भारत में भलीभांति प्रचारित किया, लेकिन भारत के बाहर उन्हें बहुत कम जाना जाता है। संतों में भी ज्ञानेश्वर महाराज, तुकाराम महाराज आदि विचारक आते हैं।
संत पुरुषों ने वेदांत पर बहुत ग्रंथ लिखे हैं। आज भी लोग संतो के उपदेशों का अनुकरण करते हैं। वेदांत दर्शन भारत ही नहीं, विदेशों में भी काफी प्रचलित हुआ। सत्य को समझने में उसके सिद्धांत काफी कारगर साबित हुए। वेदांत पर चर्चा जारी रहेगी। आज इतना ही। तब तक के लिए सत्य को प्रणाम।