
Dock media: सूचना के संसार में आपका स्वागत है। आज हम बात करेंगे कि किस प्रकार गोदी मीडिया और उससे जुड़े जाने माने पत्रकार किसान आंदोलन के संदर्भ में सरकार से सुर में सुर मिला रहे हैं।
Dock media: पीएम मोदी का प्रवक्ता बना हुआ है गोदी मीडिया
चरण सिंह राजपूत
नई दिल्ली। Dock media: देश में किसान अपनी जमीन बचाने के लिए आंदोलन पर हैं। और गोदी मीडिया सरकार के सुर में सुर मिला रहा है। सरकार को सही साबित करने में लगा है। रिपब्लिक भारत अर्नब गोस्वामी, जी न्यूज के सुधीर चौधरी, इंडिया टीवी के रजत शर्मा के साथ न जाने कितने धुरंधर पत्रकार माने जाने वाले लोग मोदी सरकार के प्रवक्ता बना हुए हैं।
अर्नब गोस्वामी ने तो हद ही कर दी। वह कह रहे हैं कि किसान आंदोलन की वजह से हमारे बच्चों को दूध न मिले तो बर्दाश्त नहीं होगा। अरे भाई आप दूध की ङ्क्षचता कर रहे हैं किसान तो आपके बच्चों के लिए रोटी की चिंता कर रहे हैं।
ये कानून तो लोगों के साथ से रोटी ही उतार लेंगे। अंधभक्ति, स्वार्थपन, जातिवाद और धर्मवाद की भी हद होती है। यह लोग सत्ता में इतने मदमस्त हो चुके हैं कि उन्हें देश बर्बादी नहीं दिखाई दे रहे हैं। देश के प्रधानमंत्री हर सरकार के अधिकार पूंजीपतियों को देने में लगे हैं।
निजीकरण को बढ़ावा
Dock media: एक ओर जहां निजीकरण को बढ़ावा दे रहे हैं वहीं निजी संस्थाओं में श्रमिकों के शोषण और दमन पर चुप्पी साधे बैठे हैं। साथ ही कॉरपोरेट घरानों के पक्ष में श्रम कानून में संशोधन भी कर दिया है। अब तो अंधा और अनपढ़ आदमी भी बता देगा कि ये कानून किसान की बर्बादी और पूंजीपतियों के फायदे के लिए बनाए गये हैं।
जिन लोगों को अभी भी ये कानून किसानों के फायदे के दिखाई दे रहे हैं। वे या तो मोदी सरकार के अंधभक्क्त हैं या फिर समर्थक। इन कानूनों के माध्यम से कॉरपोरेट घरानों को फायदा पहुंचाने के लिए आवश्यक वस्तु अधिनियम में परिवर्तन कर आवश्यक खाद्य पदार्थांे को उसके दायरे से बाहर कर दिया गया है।
मतलब पूंजीपति मर्जीमाफिक आवश्यक खाद्य पदार्थांे की जमाखोरी कर सकते हैं। ऐसे में ये लोग नकली कमी पैदा करके महंगाई बढ़ाए जाने की पूरी आशंका होती है। यह सब मोटा मुनाफा लेने के चक्कर में होता है।
अब तक की व्यवस्था
अब तक ऐसी व्यवस्था रही है कि सरकार फूड कॉर्पोेरेशन ऑफ इंडिया के जरिये अनाज खरीदकर उसका भंडारण करती है ताकि जब अनाज की कमी बताकर महंगाई बढ़ाई जाती है तब बाजार में अनाज को उतारकर उससे सस्ता कर दिया जाता है। इस अनाज को राशन वितरण के तहत सस्ती दरों पर लोगों में बांटा जाता है।
इन कानूनों में सरकार एफसीआई द्वारा अनाज की खरीद खत्म करके इन दोनों भूमिकाओं से मुकर रही है। इस व्यवस्था से जहां महंगाई बढ़ेगी वहीं जमाखोरी करने वाले कॉरपोरेट घराने तथा बड़े व्यापारियों को फायदा होगा और जिस राशन प्रणाली पर प्रधानमंत्री इतरा रहे हैं वह राशन प्रणाली लगभग खत्म ही हो जाएगी। मतलब मेहनतकश लोगों को सस्ता राशन मिलना बंद हो जाएगा।
इन कानूनों में सरकार ने पूंजपीतियों को प्राइवेट मंडियां स्थापित करके अनाज की खरीद और स्टॉक करने की छूट दे दी है। ऐसे में अनाज की सरकारी खरीद बंद होकर मौजूदा मंडियां खत्म होने की पूरी आशंका है।
औने-पौने दाम पर फसल बेचना मजबूरी होगी
ऐसे में किसानों का इन पूंजीपतियों को औने-पौने दाम पर फसल बेचना मजबूरी बन जाएगा। बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश में मंडी व्यवस्था पहले ही ध्वस्त की जा चुकी है। छोटे से लेकर बड़े किसान व्यापारियों के रहमोकरम पर छोड़ दिये गये हैं।
किसानों को सरकारी न्यूनतम समर्थन मूल्य से आधे तक पर अपनी फसल बेचनी पड़ रही है। सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य को खत्म न करने की बात कह रही है और किसान न्यूनतम समर्थन मूल्य पर कानून चाह रहा है। कानून बनने से किसान की फसल को एमएसपी से कम पर नहीं खरीदा जा सकेगा।
मतलब किसान को एमएसपी पर फसल बेचने की गारंटी मिल जाएगी। एमएसपी कानून के लिए सरकार न होना सरकार की पूंजीपतियों से मिलीभगत दर्शाता है। वैसे भी कानून बनने से पहले ही गौतम अडानी ने बड़े स्तर पर जमीन खरीद करके फसल भंडारण के गोदाम बनाने शुरू कर दिये थे। पानीपत में सौ एकड़ जमीन की खरीद और उस पर बिछाई जा रही रेलवे लाइन और बनाये गये गोदाम इसके बड़े उदाहरण हैं।
पूंजीपतियों के कृषि क्षेत्र में हस्तक्षेप का रास्ता
दरअसल, इन कानूनों के माध्यम से पूंजीपतियों के कृषि क्षेत्र में हस्तक्षेप करने का पूरा रास्ता खोल दिया गया है। अब ये ही कंपनियां तय करेंगी कि किसान की जमीन से क्या और किस नस्ल की उपज करवाएं। जैसे किसान पेप्सी कंपनी के लिए खास किस्म के आलू उपाजाने का एग्रीमेंट करता है तो कंपनी ही उसे बीज, खाद और कीटनाशक दवाएं उपलब्ध कराएगी तथा वही उसकी फसल खरीदेगी।
ऐसे में कंपनी आलू की क्वालिटी के नाम पर कीमत कम कर सकती है या उसे खरदने से भी इनकार भी सकती है। कंपनी को किसान से हर्जाना वसूलने का भी अधिकार इन कानूनों में दिया गया है। मतलब किसान फसल उगाएगा और कंपनी उस पर नखरे दिखाएगी किसानों को ठगेगी। कंपनी और किसान में किसी बात को लेकर विवाद होने पर किसान एसडीएम के ही पास ही जा सकता है। उससे कोर्ट जाने का भी अधिकार छीन लिया गया है।
निष्कर्ष
क्या एसडीएम की औकात है कि अडानी और अंबानी जैसे कारोबारियों के खिलाफ जाकर किसान की मदद कर दे। अब किसान आंदोलन के दबाव में मोदी सरकार 15 प्वाइंट में से 12 में संशोधन करने को तैयार है।
मतलब सरकार की नीयत में खोट था। ऐसे में किसानों को आशंका है कि हर बार की तरह यह सरकार भी किसानों को बहकाकर बेवकूफ ही बनाएगी। वैसे भी जब किसान इन कानूनों के माध्यम से कोई फायदा नहीं चाह रहा है तो फिर सरकार क्यों अड़ी है। इसका मतलब साफ है कि सरकार की निजी कंपनियों से बड़ी डील हुई है।