सत्य ऋषि
मध्व (1197 ई.) ने द्वैत वेदान्त का प्रचार किया। इसमें पांच भेदों को आधार माना जाता है- जीव ईश्वर, जीव जीव, जीव जगत, ईश्वर जगत्, जगत जगत। इनमें भेद स्वत: सिद्ध है। भेद के बिना वस्तु की स्थिति असंभव है। जगत और जीव ईश्वर से पृथक् हैं। लेकिन ईश्वर द्वारा नियंत्रित हैं। सगुण ईश्वर जगत का स्रष्टा, पालक और संहारक है।
भक्ति से प्रसन्न होने वाले ईश्वर के इशारे पर ही सृष्टि का खेल चलता है। यद्यपि जीव स्वभावत: ज्ञानमय और आनंदमय है। परंतु शरीर, मन आदि के संसर्ग से इसे दु:ख भोगना पड़ता है। यह संसर्ग कर्मों के परिणामस्वरूप होता है।
जीव ईश्वरनियंत्रित होने पर भी कर्ता और फलभोक्ता है। ईश्वर में नित्य प्रेम ही भक्ति है। जिससे जीव मुक्त होकर, ईश्वर के समीप स्थित होकर, आनंदभोग करता है। भौतिक जगत ईश्वर के अधीन है और ईश्वर की इच्छा से ही सृष्टि और प्रलय में यह क्रमश: स्थूल और सूक्ष्म अवस्था में स्थित होता है। रामानुज की तरह मध्व जीव और जगत् को ब्रह्म का शरीर नहीं मानते।