
वैज्ञानिक तथ्य है कि चावल में जल तत्व की मात्रा अधिक होती है। जल पर चंद्रमा का प्रभाव अधिक पड़ता है। चावल खाने से शरीर में जल की मात्रा बढ़ती है और मन विचलित व चंचल हो जाता है। मन के चंचल होने से व्रत के नियमों का पालन करने में बाधा आती है।
एकादशी व्रत में मन का निग्रह और सात्विक भाव का पालन आवश्यक होता है। इसलिए एकादशी के दिन चावल या उससे बनी चीजें खाना वर्जित है।
धार्मिक दृष्टि की बात करें तो पुराणों में लिखा है कि एकादशी के दिन चावल खाने से अखाद्य पदार्थ अर्थात नहीं खाने योग्य पदार्थ खाने का फल मिलता है।
पौराणिक कथा के अनुसार माता शक्ति के क्रोध से बचने के लिए महर्षि मेधा ने शरीर का त्याग कर दिया और उनका अंश पृथ्वी में समा गया। चावल और जौ के रूप में महर्षि मेधा उत्पन्न हुए। इसलिए चावल और जौ को जीव माना जाता है।
जिस दिन महर्षि मेधा का अंश पृथ्वी में समाया, उस दिन एकादशी तिथि थी। इसलिए एकादशी के दिन चावल खाना वर्जित माना गया। मान्यता है कि एकादशी के दिन चावल खाना महर्षि मेधा के मांस और रक्त का सेवन करने जैसा है।