
Economy conditions: पीएम मोदी ने 2019 में कहा था कि देश की अर्थव्यवस्था अगले पांच वर्षों में 5 ट्रिलियन डालर यानी 350 लाख करोड़ रुपये की हो जाएगी। लेकिन भाजपा के ही सांसद सुब्रमण्यम स्वामी कह रहे हैं कि 5 ट्रिलियन डालर की अर्थव्यवस्था संभव ही नहीं है। आज इसी पर चर्चा में जानते हैं देश की अर्थव्यवस्था के हालात।
Economy conditions: लचीली साबित हो सकती है अर्थव्यवस्था
इंफोपोस्ट न्यूज
Economy conditions: संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि कोविड-19 के प्रकोप के बाद दक्षिण और दक्षिण-पश्चिम एशिया के उप-भाग में भारतीय अर्थव्यवस्था सबसे अधिक लचीली साबित हो सकती है। लेकिन सकारात्मक आर्थिक वृद्धि और बड़े बाजार के कारण भारत निवेशकों के लिए आकर्षक गंतव्य बना रहेगा।
रिपोर्ट में कहा गया है कि 2019 में दक्षिण और दक्षिण पश्चिम एशिया में एफडीआई प्रवाह की आवक दो प्रतिशत घटी है और यह 2018 के 67 अरब डॉलर के मुकाबले 2019 में 66 अरब डॉलर रही। इस दौरान भारत में एफडीआई आवक सबसे अधिक रही। और इस उप-क्षेत्र में कुल एफडीआई में उसकी 77 प्रतिशत हिस्सेदारी रही। इस दौरान भारत में 51 अरब डॉलर बतौर एफडीआई आए, जो इससे पिछले साल के मुकाबले 20 प्रतिशत अधिक है।
If I say doubling GDP to $ 5 trillion from 2019-20 to 2024-25 means GDP growth rate of 14.8% per year, and If also I say present economic policy cannot achieve anywhere near that rate, does it mean I am attacking Modi? Do I have a Galileo problem?
— Subramanian Swamy (@Swamy39) July 23, 2021
सऊदी अरब को भारतीय अर्थव्यवस्था में भरोसा
सऊदी अरब ने भारतीय अर्थव्यवस्था की ताकत पर भरोसा जताया है। उसने कहा है कि भारत में निवेश की उसकी योजनाएं तय समय के अनुसार प्रगति पर रहेंगी। भारतीय अर्थव्यवस्था में कोरोना संक्रमण के झटकों से निकल कर आगे बढ़ने की पूरी ताकत और क्षमता है।
पिछले साल फरवरी में सऊदी अरब के युवराज मोहम्मद बिन सलमान ने भारत के पेट्रो-रसायन, तेल शोधन, बुनियादी ढांचा, खनन, विनिर्माण, कृषि और कई अन्य क्षेत्रों में कुल 100 अरब डालर (करीब 7,400 अरब रुपये) के बड़े निवेश की योजना की घोषणा की थी।
भारत में सऊदी अरब के राजदूत डॉक्टर सऊद बिन मोहम्मद अल साती कहा है कि भारत में निवेश की हमारी योजनाएं सही राह पर चल रही हैं। दोनों देश निवेश की प्राथमिकताएं तय करने में लगे हैं। उन्होंने कहा कि भारत विश्व की पांचवीं सबसे बड़ी और दक्षिण एशिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। इसमें महामारी के मौजूदा संकट के असर से उबरने की पूरी क्षमता है।
अर्थव्यवस्था पर मनमोहन ने क्या कहा
पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा है कि कोरोना महामारी के कारण पैदा हुए हालात के मद्देनजर आगे का रास्ता उस वक्त की तुलना में ज्यादा चुनौतीपूर्ण है। और ऐसे में एक राष्ट्र के तौर पर भारत को अपनी प्राथमिकताओं को फिर से निर्धारित करना होगा।
मनमोहन सिंह 1991 में नरसिंह राव की अगुवाई में बनी सरकार में वित्त मंत्री थे। और 24 जुलाई, 1991 को अपना पहला बजट पेश किया था। इस बजट को देश में आर्थिक उदारीकरण की बुनियाद माना जाता है।
उनके मुताबिक, कांग्रेस ने भारत की अर्थव्ध्यवस्था के महत्वपूर्ण सुधारों की शुरुआत की थी। और देश की आर्थिक नीति के लिए एक नया मार्ग प्रशस्त किया था। पिछले तीन दशकों के दौरान विभिन्न सरकारों ने इस मार्ग का अनुसरण किया। और देश की अर्थव्यवस्था तीन हजार अरब डॉलर की हो गई। यह दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में एक है।
तीस साल पहले कैसा था भारत?
तीस साल पहले यानी 1991 से पहले का भारत कैसा रहा होगा? इसका अंदाज़ा इस बात लगाया जा सकता है कि उस वक्त महज़ एक टीवी चैनल दूरदर्शन और एक ही घरेलू एयरलाइन सेवा थी। आर्थिक उदारवाद का दौर 1991 में शुरू हुआ था।
इसके बाद भारत में ढेरों बदलाव देखने को मिले। ये बदलाव इतने बड़े पैमाने पर हुए कि इसके बाद पैदा हुई पीढ़ी के लिए 30 साल पहले के भारत के बारे में अंदाज़ा लगाना भी मुश्किल है। आज ज़माना ओटीटी प्लेटफ़ॉर्म का है। सारी दुनिया मोबाइल में सिमटी हुई है। हम लोग टीवी चैनल भी मोबाइल पर ही देखने लगे हैं। इस समय भारत में क़रीब 800 टीवी चैनल उपलब्ध हैं।
कब रंगीन हो पाई थी टीवी?
वैसे तो भारत में रंगीन टेलीविज़न प्रसारण की शुरुआत 1982 से ही हो गई थी। लेकिन तब टीवी प्रसारण और उसकी तकनीक पर सरकार की कई तरह की पाबंदियां थीं। समाचार पत्रों का प्रकाशन कारोबारी घराने ज़रूर कर रहे थे, लेकिन ऑडियो प्रसारण के लिए सरकारी ऑल इंडिया रेडियो और टेलीविज़न के लिए दूरदर्शन ही इकलौता विकल्प था।
उस दौर में भारत के कई पत्रकार और प्रोड्यूसर सरकारी टीवी चैनल पर अपना कार्यक्रम ज़रूर पेश करते थे, लेकिन अपना चैनल शुरू करना तब सपना ही था। 1991 के आर्थिक उदारवाद के फ़ैसले के बाद ये पाबंदियां कम होती गईं और निजी टीवी चैनल का सपना साकार हो पाया।
यही वजह है कि केबल टीवी के ज़रिये 1991 के खाड़ी युद्ध की तस्वीरें कई घरों तक पहुंचीं थीं। केबल टीवी चैनलों ने भारत में विदेशी चैनलों के सैटेलाइट प्रसारण के रास्ते खोल दिए। कुछ ही सालों में भारत में प्राइवेट टीवी चैनलों की क्रांति देखने को मिली। 1991 में भारत में स्टार नेटवर्क ने क़दम रखा। इसके तुरंत बाद सुभाष चंद्रा के ज़ी नेटवर्क की शुरुआत हुई।
केबल टीवी से डीटीएच तक का सफर
जब भारत में सैटेलाइट के ज़रिये प्राइवेट चैनलों का प्रसारण शुरू हुआ, तो गांव-गांव तक केबल ऑपरेटरों के डिश एंटीना दिखने लगे। केबल नेटवर्क का जाल बिछने लगा। भारत के सुविधा संपन्न घरों के लिविंग रूम में दुनिया भर का सिनेमा, टीवी धारावाहिक और रियलिटी शोज़ छोटे पर्दे के ज़रिये पहुंचने लगे।
टीवी दर्शकों की संख्या करोड़ों में पहुंच गई। भारत में भी प्राइवेट टीवी चैनलों की संख्या बढ़ने लगी और तेज़ी से बड़ी अर्थव्यवस्था का उदय शुरू हो गया। इसके बाद डीटीएच का दौर आया और टीवी ज़्यादा से ज़्यादा लोगों तक पहुंचने लगा।
जब भारत पहुंची दूरसंचार क्रांति
Economy conditions: 1991 से पहले भारतीय घरों में टेलीफ़ोन का होना एक बड़ी संपन्नता मानी जाती थी। ऐसे में आज की पीढ़ी के लिए यह यक़ीन कर पाना असंभव होगा कि लोग फ़ोन करने या फ़ोन सुनने के लिए दूसरे के घरों में घंटों इंतज़ार किया करते थे। टेलीफ़ोन बूथ पर लाइन में लगते थे।
आज मोबाइल से आप दुनिया के किसी भी कोने में बात कर सकते हैं। और लैंडलाइन टेलीफ़ोन पर हमारी निर्भरता पूरी तरह ख़त्म हो चुकी है। मिलेनियल्स की पीढ़ी ने शायद ही चोगे वाले फ़ोन का उपयोग किया होगा।
1984 के बाद दूर दराज़ के हिस्सों में भी टेलीफ़ोन बूथ खुलने लगे थे। इस क्षेत्र में निजी उपक्रमों को भी शामिल किया जा चुका था। एमटीएनएल और वीएसएनएल का गठन हो चुका था। लेकिन 1991 में उदारवादी आर्थिक नीतियों ने पूरी तस्वीर को बदलकर रख दिया। चर्चा जारी रहेगी। आप कमेंट करके नया विषय सुझा सकते हैं।