Enforcement Directorate: आज कल प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी की बड़ी चर्चा है। यह एक ऐसी सरकारी एजेंसी है, जो भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाती है। लेकिन क्या यह एजेंसी अपने कार्य को पूरी निष्ठा और ईमानदारी से कर पा रही है? केंद्र सरकारों पर इसके दुरुपयोग के आरोप लगते रहे हैं। फिलहाल चर्चा है कि इस एजेंसी का दुरुपयोग प्रदेशों की गैरभाजपा सरकारों को गिराने में किया जा रहा है।
Enforcement Directorate: एक विशेष वित्तीय जांच एजेन्सी है ईडी
श्रीकांत सिंह
Enforcement Directorate: प्रवर्तन निदेशालय यानी डाइरेक्टर जनरल आफ इकोनॉमिक्स एनफोर्समेंट भारत सरकार के वित्त मंत्रालय के राजस्व विभाग के अधीन एक विशेष वित्तीय जांच एजेन्सी है। उसका मुख्यालय नई दिल्ली में है। एजेंसी के प्रमुख को प्रवर्तन निदेशक कहते हैं। इसके पांच क्षेत्रीय कार्यालय मुंबई, चेन्नई, चंडीगढ़, कोलकाता और दिल्ली में हैं। जहां पर विशेष निदेशक प्रवर्तन प्रमुख नियुक्त किए जाते हैं। निदेशालय में क्षेत्रीय कार्यालय की व्यवस्था होती है।
ये कार्यालय अहमदाबाद, बंगलौर, चंडीगढ़, चेन्नई, कोच्ची, दिल्ली, पणजी, गुवाहाटी, हैदराबाद, जयपुर, जालंधर, कोलकाता, लखनऊ, मुंबई, पटना और श्रीनगर में हैं। इन कार्यालयों का प्रमुख संयुक्त निदेशक होता है। निदेशालय में उप क्षेत्रीय कार्यालय की भी व्यवस्था है जो भुवनेश्वर, कोझीकोड, इंदौर, मदुरै, नागपुर, इलाहाबाद, रायपुर, देहरादून, रांची, सूरत और शिमला में हैं। इन कार्यालयों का प्रमुख उप निदेशक होता है।
अधिकारों और कर्तव्यों में संतुलन बना पाना ईडी की सबसे बड़ी चुनौती
Enforcement Directorate: विदेशी मुद्रा प्रबन्धन अधिनियम, 1999 यानी फेमा वर्ष 2000 में पहली जून को प्रभावी हुआ था। इसके प्रावधानों के उल्लंघन की जांच और निपटान प्रवर्तन निदेशालय के नामित प्राधिकारी करते हैं। इसके अंतर्गत अर्द्धन्यायिक जांच प्रक्रिया के दौरान उल्लंघन सिद्ध होने की स्थिति में संबंधित व्यक्ति/फर्म/ईकाई पर संलिप्तन राशि के तीन गुना तक का जुर्माना लगाया जा सकता है। लेकिन आरोप लगाए जा रहे हैं कि यह एजेंसी उन नेताओं को कार्रवाई से छूट दे रही है, जो अपनी पार्टी से बगावत कर सत्तासीन भाजपा का समर्थन करने लगते हैं।
धनशोधन निवारण अधिनियम, 2002 यानी पीएमएलए की बात करें तो इसके अन्तर्गत जांच की प्रक्रिया अन्य अपराधिक कानूनों की तरह ही की जाती है। जांच के दौरान या उपरान्त अगर पता चले कि संबंधित व्यंक्ति/इकाई की संपत्ति का शोधन या लांडरिंग किया गया है तो पीएमएलए में अधिसूचित 28 कानूनों की 156 धाराओं में सम्पत्ति को अन्तरिम रूप में जब्त किया जा सकता है। न्यायिक प्रक्रिया पूरी होने के बाद ऐसी संपत्ति को कुर्क भी किया जाता है।
आज जो सवाल उठाए जा रहे हैं, उनके मुताबिक क्या भाजपा के सभी नेता या उसे समर्थन देने वाले सभी नेता दूध के धुले हैं? क्या उनमें से किसी ने राजनीतिक जीवन में कभी भी अपने काले धन का प्रक्षालन नहीं किया है? कभी जिस एकनाथ शिंदे और उनके गुट के नेताओं को ईडी डरा रही थी, आज उनके खिलाफ जांच प्रक्रिया कहां लुप्त हो गई है?
क्या हमेशा उचित निर्णय ले पाते हैं निदेशालय के अधिकारी?
जिन मामलों में फेरा 1973 के प्रावधानों के उल्लंघन से सम्बंधित कारण बताओ नोटिस जारी किए गए थे, अर्द्ध न्यायिक प्रक्रिया के बाद निदेशालय के अधिकारी का कर्तव्य है कि उचित निर्णय ले। यदि उल्लंघन सिद्ध पाया जाता है, तो उचित जुर्माना लगाया जाए। इसी तरह के उन मामलों में, जिनमें अपराधिक केस 31 मई 2002 तक न्यायालय में दायर किया गया था, फैसले का अधिकार संबंधित अदालत के पास होता है।
विदेशी मुद्रा संरक्षण और तस्करी गतिविधि निवारण अधिनियम, 1974 यानी कोफेपोसा के प्रत्यायोजित मामलों में फेमा का उल्लंघन करने वाले सभी लोगों के खिलाफ क्या कार्रवाई हो पाती है? क्या पीएमएलए के प्रावधानों के अंतर्गत धनशोधन और परिसंपत्तियों के प्रत्ययन के संबंध में अन्य देशों को सहयोग उपलब्ध कराया जा रहा है और इन मुद्दों पर सहयोग लिया जा रहा है? देश की बैंकों से पैसा लेकर भागे लोगों की धर पकड़ के लिए ईडी के अधिकारी आखिर क्या कर रहे हैं? नेता पुत्रों की संपत्ति बेतहाशा बढ़ रही है, उनके खिलाफ ईडी क्या कर रही है?
प्रवर्तन निदेशालय की एक लंबी पृष्ठभूमि
दरअसल, प्रवर्तन निदेशालय की स्थापना पहली मई, 1956 को की गई थी। उस समय विदेशी मुद्रा विनियमन अधिनियम, 1947 यानी फेरा के अंतर्गत विनिमय नियंत्रण विधियों के उल्लंघन को रोकने के लिए आर्थिक कार्य विभाग के नियंत्रण में एक ‘प्रवर्तन इकाई’ गठित की गई थी। विधिक सेवा के एक अधिकारी प्रवर्तन निदेशक के रूप में इस इकाई के मुखिया थे।
उनके संरक्षण में यह इकाई भारतीय रिजर्व बैंक से प्रतिनियुक्ति के आधार पर एक अधिकारी और विशेष पुलिस स्थापना से तीन निरीक्षकों की सहायता से कार्य करती थी। शुरुआत में केवल मुम्बई और कोलकाता में इसकी शाखाएं थीं। वर्ष 1957 में इस इकाई का ‘प्रवर्तन निदेशालय’ के रूप में पुनः नामकरण कर दिया गया। मद्रास में इसकी एक और शाखा खोली गई।
वर्ष 1960 इस निदेशालय का प्रशासनिक नियंत्रण आर्थिक कार्य मंत्रालय से राजस्व विभाग में हस्तान्तरित कर दिया गया। समय बदलता गया और फेरा ’47 निरसित हो गया। इसके स्थान पर फेरा, 1973 आ गया। चार वर्ष की अवधि (1973-77) में निदेशालय को मंत्रिमंडल सचिवालय, कार्मिक और प्रशासनिक सुधार विभाग के प्रशासनिक अधिकार क्षेत्र में रखा गया।
विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम, 1999 यानी फेमा
आर्थिक उदारीकरण की प्रक्रिया के तहत नियामक कानून फेरा, 1973 को निरसित कर दिया गया और पहली जून, 2000 से इसके स्थान पर एक नई विधि विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम, 1999 यानी फेमा को लागू कर दिया गया। बाद में, अंतरराष्ट्रीय धन शोधन व्यवस्था के अनुरूप एक नया कानून धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002 यानी पीएमएलए बना और प्रवर्तन निदेशालय को पहली जुलाई 2005 से पीएमएलए को प्रवर्तित करने का दायित्व सौंप दिया गया।
गौर करने वाली बात यह है कि देश की राजनीतिक पार्टियों को कहां से चंदा आता है, इसकी जानकारी प्राप्त करने की कोई व्यवस्था नहीं है। ऐसे में हमारे नेताओं की दौलत दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ती रहती है। और देश का आम नागरिक पाई पाई को मोहताज रहता है। हमारी सरकारें धन की इस लूट को रोकने के लिए कोई व्यवस्था नहीं कर रही हैं। यहां तक कि शेल कंपनियां बना कर दोनों हाथों से धन उगाही की जा रही है। यह सब ईडी के रहते हो रहा है। पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट में ईडी को फटकार लगी तो उसकी शाख पर एक और बट्टा लग गया।
यहां कर सकते हैं सरकारी विभागों की शिकायत?
Enforcement Directorate: मंत्रिमंडल सचिवालय यानी कैबिनेट सेक्रेट्रिएट के तहत लोक शिकायत निदेशालय यानी डायरेक्ट्रेट पब्लिक ग्रीवेंसेज यानी डीपीजी बनाया गया है। निदेशालय का प्रमुख केंद्र सरकार के सचिव स्तर का अधिकारी होता है। यह निदेशालय केंद्र सरकार के मंत्रिमंडल सचिवालय का एक हिस्सा है।
रेल मंत्रालय, डाक विभाग, दूरसंचार विभाग, शहरी विकास मंत्रालय, पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय, नागर विमानन मंत्रालय, जल, भूतल एवं परिवहन मंत्रालय, पर्यटन मंत्रालय, पब्लिक सेक्टर के सभी बैंक और सरकारी इंश्योरेंस कंपनियां, वित्त मंत्रालय की नेशनल सेविंग स्कीम, क्षेत्रीय पासपोर्ट दफ्तर, ईपीएफ संगठन, केंदीय स्वास्थ्य योजना, सीबीएसई, नेशनल ओपन स्कूल, नवोदय विद्यालय समिति, सेंट्रल यूनिवर्सिटी के अलावा ईएसआई हॉस्पिटल और डिस्पेंसरी के कर्मचारी डीपीजी के तहत आते हैं, जहां शिकायत की जा सकती है।