
Environmental Imbalance: प्रकृति से छेड़छाड़ और बेतहाशा अवैज्ञानिक गतिविधियों पर लगाम न कसी गई तो पर्यावरण असंतुलन को संभालना कठिन हो जाएगा। पर्यावरण विज्ञानी इसी की आशंका जता रहे हैं। क्योंकि मानसून की विदाई के बावजूद मूसलाधार बारिश से भी आशंका को बल मिल रहा है।
Environmental Imbalance: कहीं सब कुछ तबाह न कर दे प्रकृति की बेकद्री!
चरण सिंह राजपूत
नई दिल्ली। Environmental Imbalance: भारत को प्रकृति के मामले में एक बेहतर देश माना जाता है। इस देश में एक समय में हर मौसम का आनंद लिया जा सकता है। पहाड़, नदी, नाले, वन, खेत-खलिहान प्रकृति के सौंदर्य को चार चांद लगाते प्रतीत होते हैं।
इसे वैज्ञानिक दौर कहें या फिर आधुनिकता की चमक, हम लोग भी यूरोप की चकाचौंध में खोकर प्रकृति को तहस नहस करने में लगे हैं। देश की सेवा करने का दावा करने वाले राजनीतिक दल किसी भी तरह से सत्ता कब्जाकर बस हनक की जिंदगी जीना चाहते हैं।
इन लोगों को न जीवनदायिनी प्रकृति से कोई मतलब है और न ही मानवता से। बस हर कुछ ताक पर रखकर सब कुछ हथियाना चाहते हैं। आज का बुद्धिजीवी वर्ग भी उदासीन नजर आ रहा है। सरकारें हैं कि हर काम वोटबैंक को ध्यान में रखते हुए करती हैं।
देश क्यों झेल रहा है बार-बार विपदा और आपदा ?
इन सबका का नतीजा है कि देश बार-बार विपदा और आपदा झेल रहा है। देश के लिए ढाल का काम करने वाले पर्वत और जीवन देने वाली नदियां तबाही ला रहे हैं। इसे प्रकृति से खिलवाड़ ही कहा जाएगा कि मानसून खत्म होने के बाद भी बारिश कहर बरपा रही है।
पहाड़ी स्थानों पर नदियों ने विकराल रूप ले लिया है। ये नदियां सब कुछ बहाकर ले जाने का रौद्र रूप धारण किए हुए हैं। प्रभावशाली लोगों पर अय्याशी और एशोआराम की जिंदगी का खुमार इतना चढ़ा हुआ है कि प्रकृति की अनदेखी कर पहाड़ों पर मनमानी कर रहे हैं।
देवभूमि के नाम से प्रसिद्ध प्रकृति के सौंदर्य को अपने में समेटे उत्तराखंड में बिन मौसम के मूसलाधार बारिश हो रही है। जन-जीवन अस्त-व्यस्त हो गया है। बारिश और लैंड स्लाइड के कारण कई लोगों की जान भी जा चुकी हैं।
भूस्खलन के बाद ढहे घर, आपदा से शुरू हुआ मौतों का सिलसिला
स्टेट इमरजेंसी ऑपरेशन सेंटर ने बताया कि चंपावत जिले के सेलखोला में भूस्खलन के बाद घर ढह जाने से दो की मौत हो गई। कोसी नदी में जलस्तर के इजाफे से कई रिसॉर्ट में पानी भर गया है। कारें पूरी तरह से पानी में डूब गई हैं।
यहां करीब 150 से ज्यादा पर्यटक फंसे हुए हैं। इन्हें निकालने के लिए रेस्क्यू टीम भेज दी गई है। इसके अलावा नैनीताल में लैंड स्लाइड होने से 15 लोगों की मौत हो गई है। रामगढ़ के तल्ला का पूरा इलाका बारिश के पानी में डूब गया है। लोग अपनी छत पर बैठे हैं और मदद की गुहार लगा रहे हैं।
अधिकारियों ने चार धाम तीर्थयात्रियों को मौसम में सुधार होने तक हिमालय के मंदिरों में न जाने की सलाह दी है। रविवार तक हरिद्वार और ऋषिकेश पहुंचे चारधाम तीर्थयात्रियों को मौसम में सुधार होने तक आगे नहीं जाने दिया गया। हिमालय के मंदिरों को जाने वाले वाहनों को अस्थायी रूप से बंद कर दिया गया है।
बड़े बर्तन में सवार होकर मैरिज हॉल पहुंचे दूल्हा-दुल्हन
हालत यह हो गई है कि एक शादी में दूल्हा-दुल्हन को एक बर्तन में बैठा कर मैरिज हाल पहुंचाया गया। इस घटना को लोगों ने नाम दिया मानसून वेडिंग। ऋषिकेश में यात्री वाहनों को चंद्रभागा पुल, तपोवन, लक्ष्मण झूला और मुनि-की-रेती भद्रकाली बैरियर पार नहीं करने दिया जा रहा है। चंपावत में नदी पर एक निर्माणाधीन पुल जल स्तर में वृद्धि के कारण बह गया।
केदारनाथ मंदिर से लौटते समय भारी बारिश के बीच जंगल चट्टी में फंसे करीब 22 श्रद्धालुओं को बचाकर एसडीआरएफ और पुलिस ने सुरक्षित निकाल लिया है। इन्हें गौरी कुंड में शिफ्ट कर दिया गया। हालांकि अब प्रदेश के मुख्यमंत्री से लेकर गृह मंत्री और प्रधानमंत्री तक मामले में सक्रिय देखे जा रहे हैं। पर क्या सरकारें ऐसा भी प्रयास कर ही हैं कि इस तरह की नौबत न आए।
विपदा और आपदा की घटनाएं बढ़ क्यों रही हैं?
ऐसे में प्रश्न उठता है कि देश में विपदा और आपदा की घटनाएं बढ़ क्यों रही हैं? मानसून के विदाई के बावजूद मूसलधार बारिश अध्ययन का विषय बन गई है। मौसम के पल-पल बदलते मिजाज और उसकी तीव्रता पर लगातार अध्ययन में जुटे विज्ञानियों ने इसे जलवायु परिवर्तन का असर बताया है।
वर्षा के व्यवहार में आ रहे बदलाव से चिंतित विज्ञानी आगाह करते हैं कि प्रकृति से अवैज्ञानिक व्यवहार और नकारात्मक मानवीय गतिविधियों पर लगाम न कसी गई तो पर्यावरण असंतुलन और बढ़ सकता है। हिमालयी राज्य में भारी बारिश के मद्देनजर अलर्ट जारी किया गया है।
मानसून के लौटने के बाद बरसात सरीखे हालात बनने से विज्ञानी भी गंभीर मुद्रा में आ गए हैं। अपने शोध एवं अध्ययन का हवाला देते हुए जीबी पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण शोध संस्थान कोसी कटारमल में वरिष्ठ विज्ञानी प्रो. जगदीश चंद्र कुनियाल मौसम के साथ बारिश की प्रकृति में आए बदलाव को जलवायु परिवर्तन से जोड़ते हैं।
उत्तराखंड ही नहीं, पूरे उत्तर भारत में चौंकाने वाला बदलाव
Environmental Imbalance: वह कहते हैं कि अक्टूबर के दूसरे पखवाड़े में मानूसन जैसी अनुभूति करा रही बरसात मौसम में हो रहे वैश्विक तापवृद्धि जनित जलवायु परिवर्तन का ही नतीजा है। केवल उत्तराखंड ही नहीं बल्कि पूरे उत्तर भारत में यह बदलाव चौंकाने वाला है। अचानक बरसात और वह भी मूसलधार असामान्य मौसमी घटना कही जा सकती है।
प्रो. कुनियाल के अनुसार यह पर्यावरण असंतुलन के संकेत भी हैं। दिल्ली में एसी चल रहे हैं। पहाड़ में अचानक बारिश। वह भी मसूलधार, तापमान का एकदम गिरना और स्वेटर निकल आना यह सब असामान्य है।
पूरे उत्तर भारत में यह बदलाव दिखा है। जैसे इंसान चिड़चिड़ा हो जाता है, कह सकते हैं कि मौसम भी ऐसा ही व्यवहार करने लगा है। दिसंबर के पहले सप्ताह में ऐसी बारिश होती तो सामान्य बात थी और उसके लाभ भी होते। इस बढ़ते पर्यावरणीय असंतुलन से बचना है तो प्रकृति से बेवजह दखलंदाजी बंद करनी ही होगी।