
श्रीकांत सिंह
नई दिल्ली। अधिक विदेशी निवेश होगा तो देश आगे बढ़ेगा। लेकिन विदेशी निवेश को हासिल करने के लिए किसी भी देश को कुछ मानकों पर खरा उतरना पड़ता है। सबसे बड़ा मानक ईज ऑफ डूइंग बिजनेस यानी कारोबार करने में आसानी को माना जाता है। यानी कारोबारी नियमों और प्रशासनिक सरलताओं के मामले में जो देश बेहतर होता है उसी को विदेशी निवेश मिल पाता है। लेकिन इसके चक्कर में श्रमिकों के हित भी प्रभावित होते हैं।
वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय ने ईज ऑफ डूइंग में राज्यों की रैंकिंग जारी की है। आंध्र प्रदेश को एक बार फिर पहला स्थान मिला है। पिछली बार यह रैंकिंग 2018 में जारी की गई थी। इस बार रैंकिंग में उत्तर प्रदेश को दूसरा स्थान मिला है। तेलंगाना तीसरे और मध्य प्रदेश चौथे स्थान पर है। उत्तर प्रदेश ने 10 स्थानों की लंबी छलांग लगाई है। टॉप-10 में हरियाणा को स्थान नहीं मिला है, जबकि 2018 में जारी रैंकिंग में उसे दूसरा स्थान मिला था। गुजरात मॉडल सूची से गायब है।
इस बार बिजनेस रिफॉर्म एक्शन प्लान (बीआरएपी) की रैंकिंग में पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, असम और दिल्ली को भी स्थान दिया गया है। इसमें मध्य प्रदेश को रैंकिंग में तीसरा स्थान मिला है। पूर्वोत्तर राज्यों में बेहतर प्रदर्शन असम का रहा है।
रैंकिंग का उद्देश्य घरेलू और वैश्विक निवेशकों को आकर्षित करने के लिए कारोबारी माहौल में सुधार लाने के लिए राज्यों के बीच प्रतिस्पर्धा शुरू करना है। राज्यों की रैंकिंग को कंस्ट्रक्शन परमिट, श्रम कानून, पर्यावरण पंजीकरण, इन्फॉर्मेशन तक पहुंच, जमीन की उपलब्धता और सिंगल विंडो सिस्टम के आधार पर मापते हैं।
श्रम कानून की बात करें तो इस रैंकिंग के चक्कर में श्रमिकों के हित प्रभावित होते हैं। उत्तर प्रदेश में श्रम कानूनों को निष्क्रिय कर दिए जाने से उसका लाभ वे कारोबारी उठा रहे हैं, जो श्रमिकों का शोषण करने के लिए जाने जाते हैं। नियमों को ताक पर रख कर तमाम श्रमिकों को नौकरी से निकाल दिया गया है, जिससे उनके लिए रोजी रोटी का संकट पैदा हो गया है।
दरअसल, श्रमिक किसी भी बिजनेस की रीढ़ होते हैं। जब उन्हें आर्थिक सुरक्षा नहीं मिल पाएगी तो विकास का कोई अर्थ नहीं रह जाएगा। किसी देश के विकास का मतलब यह नहीं होता कि उसके उद्यमियों के हालात कितने अच्छे हैं। विकास सही मायने में अपना लक्ष्य तभी हासिल कर पाता है, जब उसके श्रमिकों के हालात अच्छे हों।
सरकारों का उद्यमियों की कुटिलता पर कोई नियंत्रण है। सरकार की ओर से उपलब्ध कराई गई सुविधाओं का उद्यमी दुरुपयोग करते हैं और श्रम शक्ति का शोषण करते हैं। यह वही श्रम शक्ति है जो उद्यमियों की मार्जिन बढ़ाती है। लेकिन उद्यमी शुद्ध मुनाफाखोरी पर उतर आते हैं। सरकार ने इस ओर ध्यान न दिया तो श्रमशक्ति अपनी शक्ति खो देगी और विदेशी निवेश का पूरा लाभ देश को नहीं मिल पाएगा।