Foundation stone of Jewar Airport: जेवर एयरपोर्ट का आज शिलान्यास कर दिया गया। बनने से पहले ही तय कर दिया गया है कि यह दुनिया का चौथा सबसे बड़ा एयरपोर्ट होगा। गर्व के इसी अनुभव साथ हम 2022 के विधानसभा चुनाव में प्रवेश करेंगे।
Foundation stone of Jewar Airport: हवाई चप्पल और हवाई अड्डा
श्रीकांत सिंह
Foundation stone of Jewar Airport: सुनने में कितना खूबसूरत लगता है कि हवाई चप्पल पहनकर चलने वाला भारतीय भी हवाई जहाज से चल सकेगा। वैसे, हवाई चप्पल को बाथरूम चप्पल भी कहते हैं। अभिजात्य वर्ग के लोग इसे बाथरूम में ही पहनते हैं। हो सकता है कि यह उन्हीं लोगों के लिए कहा गया हो। फिर भी खुश रहने के लिए खयाल अच्छा है।
एयरपोर्ट का शिलान्यास अभी क्यों किया गया? क्या यह चुनावी रणनीति का एक हिस्सा तो नहीं? इसकी सफाई में पीएम मोदी ने कहा कि मोदी-योगी भी चाहते तो 2017 में सरकार बनते ही यहां आकर भूमि पूजन कर देते। फोटो खिंचवा देते। अखबार में प्रेस नोट भी छप जाते। और अगर ऐसा हम करते तो पहले की सरकारों की आदत होने के कारण हम कुछ गलत कर रहे हैं, ऐसा भी नहीं लगता।
पहले आनन-फानन में रेवड़ियों की तरह प्रोजेक्ट की घोषणाएं होती थीं, लेकिन प्रोजेक्ट जमीन पर कैसे उतरेंगे? अड़चनों को दूर कैसे करेंगे? धन का प्रबंध कहां से करेंगे? इस पर विचार ही नहीं होता था। इस कारण प्रोजेक्ट दशकों तक तैयार नहीं होते थे।
घोषणा हो जाती थी, लेकिन हमने ऐसा नहीं किया। इन्फ्रास्ट्रक्चर हमारे लिए राजनीति नहीं, राष्ट्रनीति का हिस्सा है। हम सुनिश्चित कर रहे हैं कि तय समय पर ही काम पूरा हो जाए। देरी होने पर हमने जुर्माने का प्रवधान किया है। इस प्रकार इसी एयरपोर्ट से विपक्ष पर एयरस्ट्राइक कर दी गई।
चुनावी चक्र या कुचक्र
शिलान्यास के मौके पर आयोजित जनसभा को संबोधित करते हुए पीएम मोदी ने कहा कि पहले की सरकारें सिर्फ घोषणाएं करती थीं, लेकिन हम ऐसा नहीं करते। पहले दिल्ली और लखनऊ में खींचतान चलती रहती थी। पिछली सरकारों ने लोगों को अंधेरे में रखा। लेकिन विपक्ष पलटवार करने में कहां पीछे रहने वाला है?
विपक्ष की ओर से कहा गया, क्या भरोसा एयरपोर्ट बनाकर उसे कब बेच दिया जाए? कहा तो यह भी जा रहा है कि किसानों ने अपनी जमीन पर हाथ नहीं रखने दिया तो खेती कानून वापस लेने की घोषणा कर दी गई। और अब एयरपोर्ट के नाम पर किसानों की जमीन पर कब्जा करने का कुचक्र रचा जा रहा है।
उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कहा है कि अगर सपा सरकार के समय फ़िरोज़ाबाद में प्रस्तावित एयरपोर्ट बनने की अनुमति केंद्र की भाजपा सरकार ने रोकी न होती तो इस समय ‘जेवर’ के साथ ‘चूड़ियों’ को भी जुड़ने का मौका मिलता और उत्तर प्रदेश का वैकासिक शृंगार पूर्णता की ओर बढ़ता।
वह तो यह कहने से भी नहीं चूके कि जितने भी प्राइवेट एयरपोर्ट हैं, सब के सब घाटे में चल रहे हैं। जितनी भी प्राइवेट एयर लाइंस चल रही हैं, वे भी घाटे में हैं। फिर क्यों सरकार 10 हजार करोड़ रुपये डुबाने पर तुली है? यहां तक कि किसानों को भूमि का मुआवजा तक नहीं दिया गया है। कहीं ऐसा तो नहीं कि इस एयरपोर्ट को बना कर बेच दिया जाएगा?
क्या एयरपोर्ट से हो जाएगा समस्याओं का समाधान?
उत्तर प्रदेश के किसानों की समस्याओं की बात करें तो पूर्वी उत्तर प्रदेश में हालात ये हैं कि जंगली और छुट्टा जानवर किसानों की फसलों को उजाड़ देते हैं। उनके पास इतना भी बजट नहीं होता कि वे अपने खेत की घेरेबंदी कर सकें। जो लोग खेत की घेरेबंदी करते भी हैं, उनकी भी फसल नहीं बच पाती। क्योंकि जंगली जानवर घेरे को भी फांदकर खेत में घुस जाते हैं। हालांकि सरकार की ओर से गोशालाओं की व्यवस्था की गई है, लेकिन वह पर्याप्त नहीं है।
इसी प्रकार किसान महंगी बिजली, महंगे ईंधन, महंगी गैस और बेरोजगारी से परेशान हैं। जब तक किसान परिवार में कोई एक सदस्य नौकरी करने वाला नहीं होता, वे खेती के लिए पूंजी की व्यवस्था नहीं कर पाते। और निरंतर कर्ज में डूबते चले जाते हैं। जो उनकी आत्महत्या का सबब बनता है। कोरोना महामारी के कालखंड ने तो इस समस्या को जटिल बना दिया है। जो लोग घर से बाहर निकल कर नौकरी कर रहे थे और अपने परिवार के लिए एक एसेट बने थे, अब नौकरी चली जाने से परिवार पर बोझ बन गए हैं।
यही नहीं, सरकार पूंजीपतियों पर इतना नरम रुख अपनाती है कि वे मुनाफाखोरी के चक्कर में श्रमिकों का बेतहाशा शोषण करते हैं। मजीठिया वेजबोर्ड इसका ज्वलंत उदाहरण है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद प्रिंट मीडियाकर्मी अपना हक पाने के लिए दर दर की ठोकरें खा रहे हैं। नए श्रम कानून का झांसा देकर मीडिया मालिक धड़ल्ले से सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवमानना कर रहे हैं। सरकार इन हालात से बेखबर है।
निष्कर्ष
एक चुटकुला याद आ रहा है। एक परिवार आर्थिक संकट और भुखमरी से जूझ रहा था। परिवार के मुखिया के पास पर्याप्त धन नहीं था कि अपने आश्रितों को कुछ खाने के लिए लाकर दे सके। फिर भी वह बाजार गया। लेकिन बाजार से कुछ खरीद नहीं पाया। बाजार के अंत में एक दुकान थी, जहां लक्कड़ हजम पत्थर हजम चूरन मिल रहा था। उसने वही लाकर परिवार को दे दिया।
कुछ इसी तरह सरकार हास्यास्पद हालात से गुजर रही है। जिनके लिए हवाई चप्पल खरीदना कठिन हो गया है, उन्हीं को हवाई जहाज से चलने के लिए एयरपोर्ट की सौगात दी जा रही है। लेकिन जनता तो उस गृहिणी की तरह है जो कहती है, भलहूं ना लागे पियवा घर में केवाड़ी हमके साड़ी चाही। यानी, घर में दरवाजा लगे न लगे उसे तो साड़ी चाहिए।