
free animal: मुक्त विचरण करने वाले गोवंश से किसान ही नहीं, शहर के लोग भी परेशान हैं। लेकिन किसी भी पार्टी या सरकार ने कभी भी समस्या को गंभीरता से नहीं लिया। शायद यही वजह है कि न तो गोवंश की ठीक से रक्षा हो पा रही है और न ही गोवंश की समस्या से लोगों को बचाया जा सका है।
श्रीकांत सिंह
free animal: उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के दौरान इन मुक्त विचरण करने वाले गोवंश के कारण उत्पन्न समस्याओं को जोर शोर से उठाया गया था। आश्वासन भी दिया गया था कि 10 मार्च को ही समस्या का समाधान कर दिया जाएगा। लेकिन इस संदर्भ में कोई पहल सामने नहीं आ पाई है।
वैसे, गोवंश की समस्या के समाधान के लिए जगह जगह गोशालाएं बनाई गई हैं। फिर भी समस्या जस की तस है। क्योंकि सरकार ने भले ही गोशालाओं की व्यवस्था कर दी है, लेकिन गोशाला में पशुओं को रखने के लिए पैसे मांगे जाते हैंं। गोशाला वाले भी अगर पशुओं को रख भी लेते हैं, तो एक दो दिन में उन्हें छोड़ देते हैं।
उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने 9 जून 2020 को गोहत्या से संबंधित कानून को कड़े कर दिए थे। गोवध निवारण संशोधन अध्यादेश के मुताबिक, प्रदेश में गोवध करने वालों के लिए 10 साल की सजा और पांच लाख रुपये तक के जुर्माने का प्रावधान है। लेकिन क्या गोवंश की रक्षा करने में यह कानून पर्याप्त है?
क्या कहता है कानून?
भारत के संविधान का अनुच्छेद 48 कहता है कि राज्य, कृषि और पशुपालन को आधुनिक और वैज्ञानिक प्रणालियों से बेहतर करने की कोशिश की जाएगी। राज्य खास तौर पर गायों, बछड़ों और दूसरे दुधारू पशुओं के सुधार के लिए उनकी हत्या को रोकने के लिए कानून बनाएगा। लेकिन इस अनुच्छेद में किसी भी राज्य के लिए इस कानून को बनाने की बाध्यता नहीं रखी गई थी।
शायद यही वजह है कि कुछ राज्यों में तो गोवंश की हत्या प्रतिबंधित है, लेकिन कुछ राज्यों में गोवंश की हत्या पर कोई प्रतिबंध नहीं है। पूरे देश में कुल 11 ऐसे राज्य हैं, जहां गोवंश की हत्या पर पूरी तरह से प्रतिबंध है। वहीं 10 ऐसे राज्य हैं, जहां कोई प्रतिबंध नहीं है।
आठ ऐसे राज्य हैं, जहां पर गोवंश की हत्या पर आंशिक प्रतिबंध है। केंद्रीय पशुपालन और डेयरी विभाग की आधिकारिक वेबसाइट के मुताबिक, अलग-अलग राज्यों ने अपने यहां अलग-अलग कानून बनाए हैं।
गोवध निवारण अधिनियम का इतिहास
उत्तर प्रदेश गोवध निवारण अधिनियम, 1955 में बना था। लेकिन, इसको 6 जनवरी, 1956 को पहली बार प्रदेश में लागू किया गया था। इसकी नियमावली बनायी गयी। फिर 1958, 1961, 1979 और 2002 में इस अधिनियम में संशोधन किया गया।
नियमावली में भी 1964 और 1979 में संशोधन हुआ था। लेकिन, इसके बाद भी अधिनियम में कुछ ऐसी कमियां थीं जिनका लाभ उठाकर गोवंश तस्कर अवैध रूप से बूचड़ख़ानों को इन्हें बेचते रहे। अवैध गोवध और गोवंशीय पशुओं के अनियमित परिवहन की शिकायतों के बाद योगी आदित्यनाथ सरकार ने इस एक्ट में व्यापक बदलाव किया।
निष्कर्ष
गोवंश की रक्षा के लिए भले ही कानून बना दिए गए हैं और उन्हें सख्त भी कर दिया गया है। लेकिन जमीनीं स्तर पर उससे जो समस्याएं पैदा हुई हैं, उन्हें कभी भी संबोधित नहीं किया गया। समस्या की तह तक जाने के लिए राजनीतिक इच्छा शक्ति दिखानी होगी। तकनीक का इस्तेमाल करके भी समस्या का समाधान किया जा सकता है।