दुनिया भर की महाशक्तियों का लक्ष्य शांति व्यवस्था बनाए रखना नहीं, सत्ता और संपत्ति पर हक जताना रह गया है। अमेरिका और चीन इसके सबसे बड़े उदाहरण हैं। इनकी तनातनी से दुनिया भर के देश प्रभावित हो रहे हैं। भारत भी उससे अछूता नहीं है।
अमेरिका और चीन के बीच जिस तरह से तनातनी बढ़ रही है, विश्व व्यवस्था पर इसके गंभीर परिणाम सामने आ सकते हैं। अमेरिका और चीन के रिश्तों में कटुता लंबे समय से बनी हुई है। वैचारिक दृष्टिकोण में अंतर और विश्व की महाशक्ति बनने की लालसा ने दोनों देशों में द्वंद को नया आकार दिया है।
दोनों देशों के नेतृत्व से एक दूसरे के खिलाफ प्रत्याशित और अप्रत्याशित निर्णयों के बीच भेद मिट गया है। अमेरिका और चीन के बीच शुरू हुए व्यापारिक युद्ध कोरोना काल में परिणति तक पहुंच रहे हैं। अमेरिका ने चीन सहित कई विकासशील देशों पर बौद्धिक संपदा अधिकारों की चोरी का आरोप लगाते हुए अपने द्विपक्षीय संबंधों को विनियमित किया है। व्यापार में टैरिफ अवरोधों को लेकर अमेरिका और चीन के बीच घमासान जारी रहा है।
अमेरिका ने कोरोना वायरस को लगातार चीनी वायरस कहकर यह सिद्ध करने की कोशिश की कि जिस वायरस ने अमेरिका सहित पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था और हेल्थकेयर सिस्टम की नींव हिला कर रख दी है, उसके लिए चीन जिम्मेदार है। उसका प्रतिकार किया जाना आवश्यक है। यही कारण है कि अमेरिका ने कोरोना वायरस की उत्पत्ति के स्नोतों और उसमें चीन की भूमिका की स्वतंत्र और पारदर्शी जांच पर बल दिया।
अमेरिका जिस सुरक्षित एशिया पैसिफिक और इंडो पैसिफिक की बात करता है, उसके लिए भी चीन सबसे बड़े खतरे के रूप में उभरा है। दक्षिण चीन सागर, पूर्वी चीन सागर के साथ ही हिंद महासागर के मलक्का और होरमुज जलडमरूमध्य तक अपने प्रभाव और वर्चस्व को बढ़ाने के लिए चीन सक्रिय हुआ है।
इसी क्रम में चीन ने अमेरिका के शत्रु देश ईरान के साथ हाल ही में एक बड़ा समझौता लॉयन ड्रैगन डील कर लिया है। उससे अमेरिका असहज हो गया है। इन कारणों ने अमेरिका चीन के बीच तनाव की पृष्ठभूमि को तैयार किया है।
चीन ने जिस प्रकार से भारत के गलवन घाटी, नेपाल के भू क्षेत्रों समेत भूटान और रूस के क्षेत्रों पर अपने दावे किए हैं, उससे अमेरिका को एक बड़ा संदेश मिला है कि चीन के ऊपर किसी भी विपरीत परिस्थिति का कोई असर नहीं है। वह विश्व व्यवस्था में अपनी मनमानी जारी रखेगा जो अमेरिका के लिए शुभ संकेत नहीं है।
इसलिए अमेरिका ने भारत, ऑस्ट्रेलिया और जापान समेत कई लोकतांत्रिक देशों को चीन का प्रतिकार करने के लिए एकजुट किया है। क्वाड ग्रुप के जरिये इस महामारी के दौर में अमेरिका ने महासागरीय सुरक्षा को एक प्रमुख मुद्दा बनाया है। मालाबार, अंडमान निकोबार और दक्षिण चीन सागर में युद्धाभ्यास के जरिये चीन को कठोर संदेश देने का प्रयास किया गया है।
इस महामारी के दौर में अफ्रीकी देशों को भी चीन अपने चंगुल में फंसा रहा है। उन देशों को चीन से बचाने के लिए उन्हें सतर्क करने की कोशिश अमेरिकी प्रशासन कर रहा है। अफ्रीकी महाद्वीप में भी चीन हाइड्रोकार्बन और अन्य ऊर्जा संसाधनों की तलाश में वहां अपने निवेश बढ़ा रहा है। जिबूती में उसने अपना सैन्य अड्डा खोला है।
जिबूती, रवांडा और बेनिन को चीन के नेतृत्व वाले एशियाई अवसंरचना निवेश बैंक का सदस्य भी बनाया गया है, लेकिन इन सब कार्यों के पीछे चीन की मंशा से भी सभी देश वाकिफ हैं। अमेरिका के सेक्रेटरी ऑफ स्टेट माइक पोंपियो ने चीन पर आरोप लगाया है कि चीन अफ्रीकी देशों को कोरोना वायरस से निपटने में मदद के नाम पर उन्हें ठगना चाहता है।
चीन ऐसे समय में अफ्रीकी देशों को एक गंभीर ऋण जाल में फंसा देगा। चीन ने कुछ ही समय पहले अफ्रीकी देशों को कोरोना काल में ब्याज मुक्त ऋण देने और कुछ अफ्रीकी देशों द्वारा पहले से लिए गए ऋण की वापसी को स्थगित करने की बात की थी।
अमेरिकी रक्षा मंत्री मार्क एस्पर ने हाल ही में कहा कि वास्तविक नियंत्रण रेखा पर भारत और चीन के बीच स्थिति की अमेरिका बहुत करीब से निगरानी कर रहा है। अमेरिका ने चीन सेना की आक्रामक गतिविधियों को क्षेत्र को अस्थिर करने वाला बताया है।
अमेरिका के रक्षा मंत्री ने अमेरिका और भारत सैन्य सहयोग का जिक्र करते हुए कहा है कि भारत के साथ अमेरिका का संबंध 21वीं सदी के सबसे महत्वपूर्ण रक्षा संबंधों में एक है। वर्ष 2016 में अमेरिका ने भारत को मेजर डिफेंस पार्टनर का दर्जा दिया था और 2018 में पहली टू प्लस टू वार्ता के तहत कॉमकेसा एग्रीमेंट किया गया।
यह दोनों देशों के मध्य सैन्य सूचना सटीक समय पर एक दूसरे को साझा करने का समझौता है। इससे भारत को सी17, सी 130 जे, पी 8 जैसे अमेरिकी सैन्य और समुद्री निगरानी एयरक्राफ्ट के जरिये सूचनाएं मिलने लगेंगी। इन सैन्य प्लेटफॉर्म का लाभ यह होगा कि यदि मलक्का जलडमरूमध्य में अमेरिका के जहाज ने चीन की किसी पनडुब्बी को आते जाते देखा, तो उस पनडुब्बी की विस्तृत जानकारी भारतीय नौसेना के मुख्यालय पर स्थापित कम्युनिकेशन सिस्टम तक रियल टाइम में पहुंचा दी जाएगी।
भारत भी ऐसी सूचना अमेरिकी सेंट्रल एंड पैसिफिक नेवल कमांड तक पहुंचा देगा। यदि दोनों देशों के लिए घातक कोई आतंकी किसी तीसरे देश में वार्ता कर रहा है या कोई साजिश रच रहा है तो इसकी भी सूचना मिनटों में पहुंचा दी जा सकेगी।
इसके साथ ही भारत व अमेरिका ने 2016 में लीमोआ समझौता यानी लॉजिस्टिक्स एक्सचेंज मेमोरेंडम ऑफ एसोसिएशन पर हस्ताक्षर किया जिसका मूल उद्देश्य दोनों देशों द्वारा एक दूसरे को सैन्य अभियानों के समय जरूरी उपकरण जैसे हथियार, ईंधन, दवाइयां, मशीनों के कल-पुर्जे आदि का विनिमय करना है।
इसके साथ ही दोनों देशों ने बेका यानी बेसिक एक्सचेंज एंड कॉपरेशन एग्रीमेंट किया है। इसके जरिये भारत अमेरिका के भूस्थानिक मानचित्रों का इस्तेमाल कर ऑटोमेटेड हार्डवेयर सिस्टम्स और क्रूज एवं बैलिस्टिक मिसाइलों की सटीक सैन्य जानकारी प्राप्त कर सकेगा। इस प्रकार ये प्रतिरक्षा समझौते भारत और नाटो के संबंधों को और मजबूती देने के लिए एक उत्प्रेरक की भूमिका निभा रहे हैं। इससे भारत का वैश्विक और क्षेत्रीय सुरक्षा परिदृश्य में बढ़ता महत्व साफ नजर आता है।