G20: जी20 की धूमधाम, भव्यता और आयोजन की गर्वानुभूति के नीचे मतलब की तमाम बातें दब कर रह गई हैं। कारण, मीडिया की घोर उपेक्षा हुई है। फिर भी जानने की कोशिश करते हैं कि गर्व पैदा करने वाले परिदृश्यों के अलावा भी क्या कुछ ठोस हासिल हुआ है।
G20: चीन को मिला है करारा जवाब!
इंफोपोस्ट डेस्क
G20: भारत, सऊदी अरब, अमेरिका और यूरोप को जोड़ने वाले रेल लिंक प्रोजेक्ट पर सहमति बनने को चीन के बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव का जवाब माना जा रहा है। जो दुनिया के विकासशील देशों को आधारभूत ढांचे के विकास के नाम पर चीन के कर्ज के जाल से बचाएगा। भारत की अध्यक्षता में आयोजित जी20 शिखर सम्मेलन के निष्कर्षों के प्रभाव तो भविष्य में सामने आ सकते हैं, लेकिन उसके संकेत जरूर मिल रहे हैं।
बड़ी बात यह है कि भारत ने एक निष्पक्ष वैश्विक वित्तीय प्रणाली स्थापित करने के लिए मौलिक सुधार किए जाने का मुद्दा उठाया है। अभी हालात ये हैं कि गरीब अफ्रीकी देशों को कर्ज पर विकसित देशों के मुकाबले चार से आठ गुना अधिक ब्याज चुकाना पड़ता है। तभी तो भारत ने कर्ज संकट प्रबंधन, विश्व बैंक और अन्य बहुपक्षीय विकास बैंकों के सुधार और अंतरराष्ट्रीय वित्त प्रणाली के बदलाव पर ठोस प्रस्ताव रखे हैं।
विकासशील और गरीब देशों को भी मिलेगा प्रतिनिधित्व
अफ्रीकी यूनियन को जी20 में शामिल किए जाने को एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। अफ्रीकी यूनियन में अफ्रीका महाद्वीप के 55 देश शामिल हैं। ऐसे में जी20 जैसे अहम समूह में अफ्रीकी यूनियन के शामिल होने से दुनिया में नई विश्व व्यवस्था लागू हो सकती है। इससे विकासशील और गरीब देशों को भी वैश्विक फैसले करने की व्यवस्था में प्रतिनिधित्व मिलेगा।
इसलिए शिखर सम्मेलन को देश के भीतर और बाहर समावेशिता के लिए याद किया जाएगा। वसुधैव कुटुंबकम यानी एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य की थीम के अनुरूप भारत ने अपने 28 प्रदेशों और आठ केंद्र शासित प्रदेशों के 60 शहरों में 220 से अधिक बैठकें आयोजित की हैं। जहां दुनिया के कोने कोने से आए लोग शामिल हुए। इस प्रकार भारत की विविधता और गतिशीलता दुनिया के सामने साफ नजर आई।
कार्बन उत्सर्जन को नेट जीरो करने में मिलेगी मदद
प्रधानमंत्री मोदी ने ग्लोबल बायोफ्यूल अलायंस बनाने की घोषण की है। इस गठबंधन में भारत, ब्राजील, अमेरिका जैसे देश शामिल हैं। इस गठबंधन के प्रयासों से अक्षय ऊर्जा को बढ़ावा मिलेगा और कार्बन उत्सर्जन को नेट जीरो करने में काफी मदद मिलेगी। भारत ने जलवायु पर जीवन शैली के प्रभावों को रेखांकित किया है।
क्योंकि दुनिया की एक प्रतिशत सबसे अमीर आबादी दुनिया के 50 प्रतिशत गरीबों की तुलना में दो गुना कार्बनडाईआक्साइड का उत्सर्जन करती है। इस असंतुलन को ठीक करने के लिए भारत ने बेशक दबाव डाला है। लेकिन लंबे समय से दुनिया भारत की इस फरियाद को नजर अंदाज कर रही है। शिखर सम्मेलन के बाद दुनिया के अमीर देशों की आदतों में कोई सुधार आएगा, इस बारे में अभी कुछ कहना कठिन है।
मीडिया की उपेक्षा से स्थितियां साफ नहीं
G20: अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन के साथ भारत आए पत्रकार अपने नेता से बातचीत करना चाहते थे। लेकिन भारत सरकार की ओर से इसकी अनुमति नहीं दी गई। जाहिर है कि भविष्य में प्रदूषण रोकने में अमेरिका का कितना सहयोग मिलेगा, यह स्पष्ट नहीं हो पाया। फिर भी भारत ने वैश्विक भविष्य को बेहतर बनाने के लिए दुनिया के समक्ष साहस तो दिखाया ही है।
उम्मीद की जानी चाहिए कि भारत के मार्गदर्शन में वित्तीय समानता, डिजिटल समावेशिता और पर्यावरण संतुलन को बेहतर बनाए जाने का माहौल जरूर बनेगा। क्योंकि जलवायु परिवर्तन के कारण आ रही आपदाओं से दुनिया के तमाम देशों की अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। भले ही प्रदूषण के लिए आर्थिक प्रगति की होड़ ही क्यों न जिम्मेदार हो। तभी तो यह अनिश्चितता बनी हुई है कि जी20 में एक सार्थक संयुक्त मसौदा तैयार हो पाएगा या नहीं।