Ganga and Bihar: गंगा के लिए सरकार ही नहीं, व्यक्तिगत तौर पर भी लोग कार्य कर रहे हैं। तभी तो नमामि गंगे से लेकर गंगा और बिहार तक का सफर तय किया गया है। जो लोग व्यक्तिगत तौर पर गंगा के लिए काम कर रहे हैं, उनमें एक जाना माना नाम है पंकज मालवीय।
Ganga and Bihar: वह तो गंगा की गोद में ही पैदा हुए
अंकित तिवारी
Ganga and Bihar: पंकज मालवीय को गंगा ने कहीं से बुलाया नहीं, वह तो गंगा की गोद में ही पैदा हुए। उनका जन्म स्थान बिहार राज्य के वैशाली जिले के राघोपुर दियारा प्रखंड के फतेहपुर गांव में हुआ। यह इलाका चारों ओर से गंगा नदी से घिरा है।
1966 में होलिका दहन की रात्रि में पैदा हुए पंकज मालवीय ने अपना जीवन ही गंगा को समर्पित कर दिया है। उनकी शिक्षा और परवरिश गंगा नदी के किनारे बिहार के सारण जिले के दिघवारा कस्बे में हुई। 1991 से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय हुए और नवभारत टाइम्स, दैनिक जागरण, प्रभात खबर, नई दुनिया, आज हिन्दी दैनिक आदि अखबारों में नौकरी की।
सामाजिक और राजनैतिक मसलों पर आलेख
उन्होंने विभिन्न सामाजिक और राजनैतिक मसलों पर आलेखों के अतिरिक्त अपने लेखों के जरिये गंगा जी की समस्याओं और पानी के प्राकृतिक संसाधनों के प्रति समाज को जागरूक करने के लिए लगातार कार्य किया।
सनातन धर्मगुरु स्वामीश्रि अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती की प्रेरणा से 2014 में गंगा और पानी के प्राकृतिक संसाधनों के लिए सक्रिय कार्य प्रारंभ किया। उन्होंने गंगा की समस्याओं को लेकर राज्यभर में अभियान के तहत ‘गंगा और बिहार’ नाम से संवाद कार्यक्रम का आयोजन किया।
भूजल और जंगलों के प्रति लोक चेतना
पानी के प्राकृतिक संसाधनों के अलावा भूजल और जंगलों के प्रति लोक चेतना के लिए आयोजित कार्यक्रमों में उनकी सक्रिय हिस्सेदारी रही। गंगा की समस्याओं को समझने के लिए बक्सर जिले के चौसा से फरक्का तक की यात्रा और पश्चिम बंगाल के कई जिलों में गंगा की हालत को लेकर अध्ययन किया। गंगा की अविरलता के लिए उनका कार्य सतत जारी है।
पंकज मालवीय पानी रे पानी अभियान के संयोजक हैं। उन्होंने कहा है कि पानी, वन, पर्यावरण और जैव विविधता आदि प्रकृति के उपहार को समाज अच्छी तरह से जानता और समझता जरूर है, लेकिन वह कागजी ज्ञान तक सीमित होकर रह गया है।
आधुनिकता के प्रभाव में परंपराओं को भुलाया
क्योंकि इनके साथ हमारा व्यवहार प्रतिकूल हो रहा है। और उसका परिणाम भी हम भुगत रहे हैं। हमारे पूर्वज भले ही कम पढ़े-लिखे थे, लेकिन इनके महत्व को समझते थे। और इनकी पूजा तक करते थे। आज आधुनिकता के प्रभाव में अपनी परंपराओं को हम भूल गए।
और उसी के बाद विनाश का नज़ारा एक के बाद एक सामने है। पूर्वजों ने जिसकी पूजा की, उस नदी, तालाब आदि को हम समाप्त कर चुके हैं।
दरअसल, अब पृथ्वी पर ग्लोबल वार्मिंग से लेकर पानी की कमी तक का कारण अपनी परंपराओं को भूल जाना है। यह स्पष्ट है कि लोक चेतना ही इस संकट से हमें बचा सकती है। इसके प्रति सरकार की ही नहीं, हमारी भी जवाबदेही बनती है।
आम लोगों की भागीदारी जरूर हो
तालाबों और अन्य पारम्परिक जलस्रोतों को संरक्षित रखना बेहद जरूरी है। इसलिए हमें पारम्परिक जलस्रोतों के बारे में गंभीरता से विचार करना होगा। क्योंकि इससे ही भूजल का संवर्धन संभव है। लेकिन पारंपरिक जल श्रोतों के पुनर्जीवन की योजना बनाते समय इस बात का ध्यान रखना होगा कि उसमें आम लोगों की भागीदारी जरूर हो।
हमारी समझ है कि इससे पूर्व ऐसे कई प्रयास इसलिए सफल नहीं हो सके, क्योंकि इसमें लोगों की हिस्सेदारी या भागीदारी नहीं थी। और सबको लगा कि ये तो सरकार का काम है।
जल संस्कृति और इससे जुड़ी परंपरा
जल संस्कृति और इससे जुड़ी परंपरा को जानने समझने की कोशिश में एक और बात समझ में आती है कि 40-50 साल पहले बिना किसी फंडिंग, प्रोजेक्ट या एक्शन प्लान के हमारे तालाब, कुएं, नदियां आदि परंपरागत जल स्रोत स्वच्छ और निर्मल थे।
गांव के किसान अपनी जिम्मेदारी को अपने कंधो पर लेकर पानी का काम करते रहे। ऐसी सोच है कि नदियों के किनारे बसे गांव का समाज अपने सामुदायिक जल प्रबंधन में लग जाए तो भविष्य बेहतर हो सकता है।
नाटी नदी के रिवाइबल के लिए काम
इंफोपोस्ट से बातचीत में वह अपनी पुस्तकों गंगा और बिहार व पानी रे पानी के बारे में बताते हैं। उनका कहना है कि गंगा जब बिहार पहुंचती हैं तो उनके पानी की क्या हालत होती है, उसी के बारे में पुस्तक लिखी गई है।
गंगा और बिहार पुस्तक में वह गंगा जी की बिहार यात्रा के स्वर्णिम अतीत और वर्तमान दशा के साथ समस्या और उसके समाधान की दिशा में बिहार के राज और समाज के प्रयास को समझने की कोशिश करते हैं।
हाल फिलहाल वह नाटी नदी के रिवाइबल के लिए काम कर रहे हैं। यह नदी नवादा में है। उनकी नजर में हर नदी गंगा माई है। इसलिए हर नदी की सेवा होनी चाहिए। इस नदी के लिए वह समाज के हर वर्ग को प्रेरित कर रहे हैं।
बिना किसी सरकारी या निजी खर्च के भूजल रिचार्ज
Ganga and Bihar: नवादा कछार के गांवों में उन्होंने आदिवासियों को कुछ इस तरह प्रेरित किया कि वहां बिना किसी सरकारी या निजी खर्च के भूजल को रिचार्ज करने की व्यवस्था कर दी गई। इसी क्रम में 2019 में सरकार की ओर से एक परामर्श बैठक का भी आयोजन किया गया था। जिसमें देश भर के विशेषज्ञों को बुलाया गया था।
निष्कर्ष यह है कि पंकज मालवीय प्राचीन परंपराओं की ओर लौटने का आग्रह करते हैं। उनके मुताबिक पानी की हर समस्या का समाधान हमारे देश और समाज की प्राचीन परंपराओं में निहित है। क्योंकि हमारे पूर्वज कभी भी समस्याओं के समाधान के लिए सरकार की ओर नहीं देखते थे।