GODI media: पिछले दिनों राहुल गांधी के एक बयान को कुछ इस तरह से पेश किया गया, जैसे वह कह रहे हों कि उदयपुर हत्याकांड के गुनहगार बच्चे हैं। यह गोदी मीडिया का एक शर्मनाक कारनामा था। इससे तो मेरे पढ़े लिखे मित्र भी भ्रमित होकर पूछ रहे थे, क्या राहुल गांधी सही हैं? अगर उन्होंने यह पूछा होता कि क्या राहुल का बयान सही है तो मैं कुछ जवाब भी देता, लेकिन उन्होंने संपूर्ण राहुल गांधी पर सवाल पूछ लिया। इसलिए मैंने जवाब में सवाल ही पूछ लिया, राहुल गांधी क्या हैं? आज समय मिला है कि विस्तार से बता सकूं कि राहुल गांधी क्या हैं और गोदी मीडिया उनके साथ क्या कुछ कर रहा है।
GODI media: जब राहुल के आगाज से ही हो गया था धमाका
श्रीकांत सिंह
नई दिल्ली। GODI media: राजनीति में राहुल गांधी की एंट्री धमाकेदार ढंग से हुई थी। वह लोकसभा में केरल स्थित वायनाड चुनाव क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं। उन्हें 2009 के आम चुनावों में कांग्रेस को मिली बड़ी राजनैतिक जीत का श्रेय दिया जाता है। उनकी राजनैतिक रणनीतियों में जमीनी स्तर की सक्रियता पर बल देना, ग्रामीण जनता के साथ गहरे संबंध स्थापित करना और कांग्रेस में आंतरिक लोकतंत्र को मजबूत करना प्रमुख हैं।
मार्च 2004 में, मई 2004 का चुनाव लड़ने की घोषणा के साथ राहुल गांधी ने राजनीति में प्रवेश करने की घोषणा की थी। वह अपने पिता के पूर्व निर्वाचन क्षेत्र उत्तर प्रदेश के अमेठी से लोकसभा चुनाव के लिए खड़े हुए थे। चुनाव विशाल बहुमत से जीते। वोटों में एक लाख के अंतर के साथ उन्होंने अपने चुनाव क्षेत्र को परिवार का गढ़ बनाए रखा था।
इस प्रकार कांग्रेस ने सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी को अप्रत्याशित रूप से हरा दिया था। भाजपा की बेपनाह दौलत और ताकत भी राहुल गांधी से भयभीत रहती है। शायद इसलिए कि कांग्रेस ने कई बार जीरो से हीरो बन कर दिखाया है। और राहुल बनाम मोदी के राजनीतिक किस्से हम सुनते रहते हैं। भाजपा, उसका आईटी सेल और गोदी मीडिया मिल कर राहुल गांधी की छवि बिगाड़ने पर इतना पैसा खर्च करते हैं कि उससे एक परियोजना चलाई जा सकती है।
सत्ता की बेपनाह ताकत से नहीं घबराते राहुल गांधी
GODI media: राहुल गांधी ने राफेल विमान तो खरीदा नहीं था कि उन पर राफेल घोटाले का आरोप लगाया जाता। इसलिए भाजपा में तय पाया गया कि राहुल गांधी को पप्पू साबित किया जाए। इस पर बहुत पैसा भी खर्च किया गया। लेकिन परिणाम यह हुआ कि मोदी जी गप्पू साबित हो गए। जी न्यूज का गोदी पत्रकार भी राहुल गांधी को पप्पू ही समझ रहा था। उसने जिस शर्मनाक तरीके से राहुल गांधी के वीडियो को गलत संदर्भ में दिखाया, उसे लेने के देने पड़ गए।
जी न्यूज को माफी मांगनी पड़ी। फिर भी कांग्रेस ने सख्ती दिखाई और गोदी पत्रकार को अदालत तक घसीट ले गई। लेकिन कुछ भी हो, राहुल गांधी इन सब बातों से कभी घबराते नहीं। मात्र 50 सांसदों के बल पर उन्होंने भाजपा सरकार को भूमि अधिग्रहण कानून नहीं बनाने दिया। आंदोलनकारी किसानों का साथ देकर केंद्र की मजबूत सत्ता को बैकफुट पर ला दिया।
प्रवर्तन निदेशालय के अधिकारी लगातार पसीना बहाते रहे, लेकिन राहुल गांधी ने उनका डट कर सामना किया। कितना हास्यास्पद है कि संसद का मोदी जी से भी अधिक अनुभव रखने वाले नेता को पप्पू साबित करने के प्रयास हमेशा फेल होते रहते हैं। और गोदी मीडिया भी समय समय पर मुंह की खाता रहता है। जानते हैं कि गोदी मीडिया क्यों सत्ता के तलवे चाटने को मजबूर है?
बड़े बड़े न्यूज चैनलों और अखबारों को क्यों कहा जाता है गोदी मीडिया?
वैसे, अस्सी के दशक में पत्रकारों का एक तबका था जो पैसे लेकर खबरें चलाता था। लेकिन उनकी संख्या आज के मुकाबले बहुत कम थी। तब आज की तरह बहुत कम मीडिया मालिक रैकेटिंग में लिप्त थे। पैसा लेकर खबरें चलाने वाले पत्रकारों को रैकेटियर या जगलर कह कर बहुत ही हेय दृष्टि से देखा जाता था। कुछ अखबारों पर तो पेड न्यूज के मामले भी दर्ज किए गए थे। लेकिन अब तो खुला खेल फरुखाबादी चल रहा है।
वर्तमान संदर्भों में चर्चा बेनेट कोलमैन के चेयरमैन विनीत जैन से शुरू करते हैं। इन्हीं के छोटे भाई समीर जैन हैं, जो कंपनी के वाइस चेयरमैन हैं। बेनेट कोलमैन देश की मीडिया की सबसे बड़ी कंपनी मानी जाती रही है। इसके पास टाइम्स आफ इंडिया जैसा अखबार है। हिंदी में नवभारत टाइम्स या एनबीटी है। न्यूज चैनल की बात करें तो इसके पास टाइम्स नाउ भी है। इकोनामिक्स टाइम्स बिजनेस अखबार भी है।
जब मीडिया के क्षेत्र में कूद पड़े थे मुकेश अंबानी
27 जून 2014 की बात है, जब मोदी जी ने पहली बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी। उस समय मुकेश अंबानी मीडिया के क्षेत्र में कूद पड़े और न्यूज 18 ग्रुप को खरीद लिया। इस समय मीडिया के 70 फीसदी हिस्से पर उन्हीं का कब्जा है। इनसे पहले विनीत जैन और समीर जैन देश के सबसे बड़े मीडिया मुगल कहलाते थे। इनकी ताकत इतनी ज्यादा थी कि इन्हें प्रधानमंत्री सलाम करते थे। मुख्यमंत्री तो सजदा करते थे।
मुकेश अंबानी के आने से जैन बंधुओं की ताकत को चुनौती मिलने लगी। फिर भी टाइम्स ग्रुप आज भी बड़ा मीडिया ग्रुप माना जाता है। राहुल शिव शंकर और नविका कुमार ऐसे एंकर हैं, जो चर्चा का विषय बने रहे हैं। इसके अलावा जैन बंधुओं की मुट्ठी में देश के सैकड़ों जाने माने संपादक, रिपोर्टर और एंकर हैं। बावजूद इसके, इनकी दुखती रग भी है, जिस पर सरकार का हाथ है। तभी तो प्रवर्तन निदेशालय विनीत जैन के दरवाजे तक पहुंच गया।
पहले ब्रिटिश वर्जिन आईलैंड के गोरखधंधे को समझ लीजिए
ब्रिटिश वर्जिन आईलैंड के बारे में बताया जाता है कि दुनिया भर का काला धन यहीं पर खपाया जाता है। और यहीं पर विनीत जैन की एक कंपनी है। कंपनी का नाम एमएक्स मीडिया कंपनी है। आरोप है कि बेनेट कोलमैन और एमएक्स मीडिया कंपनी के बीच 900 करोड़ रुपये के ट्रांजेक्शन हुए हैं। इसी सिलसिले में प्रवर्तन निदेशालय ने जांच शुरू कर दी है। कंपनी के संबंधित प्रबंधकों को प्रवर्तन निदेशालय ने पूछताछ के लिए बुलाया है।
अगर ये नौ सौ करोड़ रुपये का घपला किसी संपादक ने किया होता तो अब तक कंपनी बंद हो गई होती और संपादक जेल में होता। लेकिन ये गोदी मीडिया बन जाने की ही महिमा है कि जो जांच विनीत जैन से शुरू होनी थी, वही जांच प्रबंधकों से पूछताछ के जरिये की जा रही है। तभी तो इनके एंकर मोदी शाह पर लगने वाले हर आरोप का जवाब लेकर चैनल पर बैठ जाते हैं। कह सकते हैं कि इतने बड़े संगीन मामले को दबाया जा रहा है।
यही हाल जी न्यूज समेत तमाम मीडिया हाउसों का है। जी न्यूज के तो दो संपादक तिहाड़ जेल भेज दिए गए थे। यही वह बड़ा कारण है कि गोदी मीडिया सरकार से सवाल नहीं पूछता और विपक्षियों खास तौर पर राहुल गांधी के पीछे पड़ा रहता है। ताकि जनता भ्रमित होती रहे और भाजपा चुनाव जीतती रहे।
संपादक की नजर में क्या हो सकता है मीडिया का समाधान?
GODI media: आपने देखा कि देश के मोटे लालाओं ने मीडिया को अपनी मुट्ठी में कर रखा है। उसी के बल पर वे सरकार से सौदेबाजी करते हैं। ताकि वे आम आदमी का हक आसानी से हड़प सकें। किसान आंदोलन इसकी सबसे बड़ी मिसाल है। लेकिन इस समस्या का समाधान क्या है?
वैसे, समस्या बहुत जटिल है। आम आदमी के वश में नहीं है कि वह कोई मीडिया हाउस खड़ा कर सके। सोशल मीडिया पर सरकार अपने तरीके नियंत्रण कर लेती है। मेरी समझ में जो बात आ रही है, उसके अनुसार एक फार्मूले के तहत काम किया जा सकता है।
छोटे छोटे पूंजीपति मिलकर हर जिले से एक अखबार शुरू करा सकते हैं। इन अखबारों का आपस में कोआर्डिनेशन स्थापित किया जा सकता है। ऐसा करना अगर संभव हुआ तो मीडिया के क्षेत्र में क्रांति लाई जा सकती है। अगर आपके पास भी कोई सुझाव हो तो उसे कमेंट बॉक्स में शेयर कर सकते हैं। फिर मिलेंगे, एक नए विषय के साथ।