आर के तिवारी
नई दिल्ली। आज हम संविधान की बात करते हैं, जिसके प्रावधानों के तहत सत्ता की सियासत नहीं चलती। चलती है तो संविधान की व्यवस्था। संविधान में ऐसी व्यवस्था है कि सरकारें चाहे केंद्र की सरकार हो अथवा राज्य की, संसद सत्र बुलाने के लिए बाधित होती हैं। दो सत्रों के बीच छह माह से अधिक का अंतर नहीं होना चाहिए। ऐसा हुआ, तो संविधान का उल्लंघन माना जाएगा।
देश के संसदीय इतिहास की बात करें तो कभी ऐसा नहीं हुआ है, जब सत्र को छह माह के अंदर न बुलाया गया हो। इस बार कोविड-19 की वजह से सत्र बुलाए जाने में काफी विलंब हुआ है। जबकि आपात स्थिति में भी सदन के सत्र को छह माह से अधिक नहीं टाला जा सकता।
आपात काल के दौरान भी यही व्यवस्था लागू होती है। लेकिन उस समय सदन को भंग कर दिया जाता है तो उस वक्त सत्ता का केंद्र राष्ट्रपति होता है। अन्यथा सरकार को सत्र बुलाना ही होता है। सदन के सत्र की अवधि को कम या ज्यादा किया जा सकता है, लेकिन इसको छह माह से अधिक टाला नहीं जा सकता। किसी राज्य में लगे आपातकाल की अवधि को भी छह माह से अधिक बढ़ाने के लिए सदन की मंजूरी लेनी होती है।
शायद यही वजह है कि कोविड-19 महामारी के प्रकोप के बावजूद राज्यों की विधानसभा और केंद्र में संसद सत्र बुलाने की गतिविधियां तेज हो गई हैं। पिछले माह ही उत्तर प्रदेश की विधानसभा में मानसून सत्र बुलाया गया था। अब केंद्र में भी 14 सितंबर से मानसून सत्र शुरू होने वाला है। जहां विधानसभा सत्र बुलाया गया, वहां पर कोविड-19 को ध्यान में रख कर एहतियात के उपाय किए गए थे।
संसद के मानसून सत्र की बात करें तो 14 सितंबर को ही लोकसभा यानी निचले सदन और राज्य सभा यानी उच्च सदन की बैठक बुलाई गई है। कोविड-19 दिशा-निर्देशों के तहत दोनों सदनों की अलग-अलग बैठक करने का फैसला किया गया है। संसदीय मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति ने मानसून सत्र 14 सितंबर से पहली अक्टूबर तक आयोजित करने की सिफारिश की थी।
बिना किसी अवकाश अथवा सप्ताहांत की छुट्टी के लगातार कुल 18 बैठकें होंगी। कोविड-19 के मद्देनजर सत्र में शामिल होने वाले सभी सदस्यों को जांच के बाद ही सदन में प्रवेश करने की इजाजत दी जाएगी। एक दूसरे से उचित दूरी बनाए रखने के अलावा इस बार सभी चैंबर्स और गैलरी का उपयोग सदस्यों के बैठने के लिए किया जाएगा।
इस सत्र में सरकार की तरफ से कुछ विधेयकों को पास करवाना प्राथमिकता होगी। इसके अलावा अध्यादेश के स्थान पर लाए जाने वाले प्रस्तावित कानूनों को मंजूरी दिलाना भी प्राथमिकताओं में शामिल हो सकता है। संसदीय कार्य राज्य मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने कहा है कि पहली बार इस तरह की महामारी के बीच संसद का मानसून सत्र बुलाया गया है।
आपको याद दिला दें कि पिछले दिनों अध्यादेश के जरिये काम चलाया जा रहा था। सरकार पर अध्यादेश जारी कर सदन का अपमान किए जाने के आरोप लगते रहे हैं। यहां तक कहा जा रहा था कि इस सरकार में लोकतंत्र का कोई मतलब ही नहीं रह गया है। देश के शासन पर तान%