ऋषि तिवारी
आज भले ही तरह तरह बर्तन प्रचलन में आ गए हैं, लेकिन पीतल के बर्तनों की बात ही कुछ और है। पीतल धातु के गुण की जानकारी के बाद आपका भी मन करेगा कि पीतल के ही बर्तनों का उपयोग किया जाए। इसके पीछे धार्मिक विचार ही नहीं, वैज्ञानिक कारण भी जुड़ा है।
महाभारत में वर्णित एक वृत्तांत के अनुसार सूर्यदेव ने द्रौपदी को पीतल का अक्षय पात्र वरदान स्वरूप दिया था। उसकी विशेषता थी कि जब तक द्रौपदी चाहें कितने भी लोगों को भोजन करा दे, खाना घटता नहीं था। पीतल के अनेक गुणों की वजह से उसका उपयोग किया जाता रहा है।
देश के कई क्षेत्रों में आज भी सनातनधर्मी जन्म से लेकर मृत्यु तक पीतल के बर्तनों का इस्तेमाल करते हैं। बालक के जन्म पर नाल छेदन के बाद पीतल की थाली को छुरी से पीटा जाता है। मान्यता है कि इससे पितृगण को सूचित किया जाता है कि आपके कुल में जल और पिंड दान करने वाले वंशज का जन्म हो चुका है।
मृत्यु के बाद अंत्येष्टि क्रिया के 10वें दिन अस्थि विसर्जन के बाद नारायणवली और पीपल पर पितृ जलांजलि मात्र पीतल कलश से दी जाती है। मृत्यु संस्कार के अंत में 12वें दिन त्रिपिंडी श्राद्ध और पिंडदान के बाद 12वीं के शुद्धि हवन व गंगा प्रसादी से पहले पीतल के कलश में सोने का टुकड़ा और गंगा जल भरकर पूरे घर को पवित्र किया जाता है।
पीतल के बर्तन घर में रखना शुभ माना जाता है। सेहत की दृष्टि से पीतल के बर्तनों में बना भोजन स्वादिष्ट तुष्टि-प्रदाता होता है और इससे आरोग्य और शरीर को तेज प्राप्त होता है। पीतल का बर्तन जल्दी गर्म होता है जिससे गैस और अन्य ऊर्जा की बचत होती है। पीतल का बर्तन दूसरे बर्तनों से ज्यादा मजबूत और जल्दी न टूटने वाली धातु है। पीतल के कलश में रखा जल अत्यधिक ऊर्जा प्रदान करने में सहायक होता है।
पीतल अथवा ब्रास एक मिश्रित धातु है। पीतल का निर्माण तांबा और जस्ता धातुओं के मिश्रण से किया जाता है। पीतल शब्द पीत से बना है और संस्कृत में पीत का अर्थ पीला होता है। धार्मिक दृष्टि से पीला रंग भगवान विष्णु को प्रिय है। सनातन धर्म में पूजा-पाठ और धार्मिक कर्म के लिए पीतल के बर्तन का ही उपयोग किया जाता है। वेदों के खंड आयुर्वेद में पीतल के पात्रों को भगवान धन्वंतरि का अतिप्रिय बताया गया है।
पीतल के पात्रों का महत्व ज्योतिष और धार्मिक शास्त्रों में भी बताया गया है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सुवर्ण और पीतल की ही भांति पीला रंग देवगुरु बृहस्पति को प्रिय है। ज्योतिष सिद्धांत के अनुसार पीतल पर देवगुरु बृहस्पति का आधिपत्य होता है। बृहस्पति ग्रह की शांति शांति के लिए पीतल का उपयोग किया जाता है। ग्रह शांति और ज्योतिष अनुष्ठानों में दान के लिए भी पीतल के बर्तन दिए जाते हैं।
पीतल के बर्तनों का कर्मकांड में अत्यधिक महत्व है। वैवाहिक कार्य में वेदी पढ़ने के लिए और कन्या दान के समय पीतल का कलश प्रयोग में लाया जाता है। शिवलिंग पर दूध चढ़ाने के लिए भी पीतल के कलश का उपयोग किया जाता है। बगलामुखी देवी के अनुष्ठानों में पीतल के बर्तन ही प्रयोग में लाए जाते हैं।
पीतल पीले रंग का होने से हमारी आंखों के लिए टॉनिक का काम करता है। पीतल का उपयोग थाली, कटोरे, गिलास, लोटे, गगरे, हंडे, देवताओं की मूर्तियां, सिंहासन, घंटे, अनेक प्रकार के वाद्य यंत्र, ताले, पानी की टोंटियां, मकानों में लगने वाले सामान और गरीबों के लिए गहने बनाने में होता है।
भाग्योदय के लिए पीतल की कटोरी में चना दाल भिगो कर रातभर सिरहाने रखें और सुबह चना दाल पर गुड़ रख कर गाय को खिलाएं। धन प्राप्ति के लिए पूर्णिमा के दिन भगवान श्रीकृष्ण पर शुद्ध घी से भरा पीतल का कलश चढ़ा कर निर्धन विप्र को दान करें।
लक्ष्मी की प्राप्ति के लिए वैभवलक्ष्मी का पूजन कर पीतल के दीये में शुद्ध घी का दीपक जलाएं।दुर्भाग्य से मुक्ति पाने के लिए पीतल की कटोरी में दही भरकर कटोरी समेत पीपल के नीचे रखें।सौभाग्य प्राप्ति के लिए पीतल के कलश में चना दाल भरकर विष्णु मंदिर में चढ़ाएं।