
High Court Order On Century : श्रमिकों का संघर्ष अब कानूनी पचड़े में उलझ कर रह गया है। हाईकोर्ट ने एक फैसला भी सुनाया है जिसे मीडिया का एक धड़ा कंपनी मालिकों के पक्ष में बता रहा है तो मजदूरों का संगठन श्रमिक जनता संघ इसे सेंचुरी मैनेजमेंट के लिए बड़ा झटका बता रहा है।
High Court Order On Century: विश्लेषण के भंवरजाल में फंसा हाईकोर्ट का आदेश
अंकित तिवारी
खरगोन, मध्य प्रदेश। High Court Order On Century: सेंचुरी यार्न एंड डेनिम टेक्सटाइल लिमिटेड के श्रमिकों का संघर्ष अब कानूनी पचड़े में उलझ कर रह गया है। बदहाल श्रमिक अपने हक के लिए पिछले चार वर्षों से संघर्ष करते हुए कंपनी के गेट से हाईकोर्ट के गेट तक पहुंच गए हैं।
हाईकोर्ट ने एक फैसला भी सुनाया है जिसे मीडिया का एक धड़ा कंपनी मालिकों के पक्ष में बता रहा है तो मजदूरों का संगठन श्रमिक जनता संघ इसे सेंचुरी मैनेजमेंट के लिए बड़ा झटका बता रहा है। फिलहाल यहां की सड़कों पर श्रमिकों का संघर्ष जारी है।
किसके विश्लेषण पर करें भरोसा?
राजस्थान पत्रिका ने लिखा है, सेंचुरी मिल मामले में श्रमिक जनता संघ की दूसरी याचिका भी हाईकोर्ट ने की निरस्त। एक और अखबार ने लिखा है, डबल बेंच का निर्णय सेंचुरी मिल के पक्ष में। राज एक्सप्रेस ने भी लिखा है, डबल बेंच का निर्णय सेंचुरी मिल के पक्ष में।
श्रमिक जनता संघ ने एक प्रेसनोट जारी कर जानकारी दी है कि हाईकोर्ट के आर्डर में कुछ बातें श्रमिक जनता संघ के हित में हैं। मसलन, हाईकोर्ट के आदेश में यह कहीं नहीं लिखा है कि मालिक और मजदूर के बीच विवाद खत्म हो गया है। और अभी विवाद खत्म नहीं हुआ है तो कानूनी लड़ाई के दरवाजे अभी भी खुले हैं।

लेबर कमिश्नर को हस्तक्षेप करना ही होगा
दरअसल, औद्योगिक विवाद अधिनियम 1947 में यह प्रावधान है कि यदि विवाद है तो लेबर कमिश्नर को हस्तक्षेप करना ही होगा। एक तरफ लेबर कमिश्नर कहते थे कि कोई विवाद ही नहीं है तो दूसरी ओर हाईकोर्ट ने माना है कि मैनेजमेंट और मजदूर के बीच औद्योगिक विवाद है।
और इसी विवाद के आधार पर लेबर कमिश्नर के यहां वाद दायर किया जा सकता है। औद्योगिक न्यायाधिकरण में भी मामला चलाया जा सकता है। उधर, सेंचुरी और मनजीत के बीच जो रजिस्ट्री हुई है, उस पर खरगोन के रजिस्ट्रार की जांच अभी बाकी है।
श्रमिकों को बगैर कुछ बताए, सारा खेल कर दिया गया
क्योंकि 17 अगस्त 2017 के पत्र के माध्यम से सेंचुरी मैनेजमेंट ने यह लिखा था कि कंपनी बेचने से पहले उसकी जानकारी मिल के श्रमिकों को दी जाएगी। लेकिन श्रमिकों को बगैर कुछ बताए, सारा खेल कर दिया गया।
अब यह देखना दिलचस्प होगा कि कल्याणकारी राज्य होने का दम भरने वाली प्रदेश सरकार श्रमिकों को राहत दिलाने के लिए आगे आती है या हमेशा की तरह पूंजीपतियों के हाथ की कठपुतली बन कर रह जाती है।