
हिंदी साहित्य की शुरुआत आठवीं शताब्दी से मानी जाती है। यह वह समय है जब सम्राट हर्ष की मृत्यु के बाद देश में छोटे-छोटे शासन केंद्र स्थापित हो गए थे, जो परस्पर संघर्षरत थे। विदेशी मुसलमानों से भी इनकी टक्कर होती रहती थी। हिन्दी साहित्य के विकास को आलोचक सुविधा के लिए पांच ऐतिहासिक चरणों में विभाजित करते हैं।
हिन्दी साहित्य का आदिकाल 1400 ईसवी से पूर्व का माना जाता है। उस समय हिन्दी का उद्भव हो ही रहा था। हिन्दी की विकास-यात्रा के केंद्र दिल्ली, कन्नौज और अजमेर माने जाते हैं। पृथ्वीराज चौहान का उस समय दिल्ली में शासन था और चंदबरदाई नामक उनके एक दरबारी कवि हुआ करते थे।
चंदबरदाई की रचना ‘पृथ्वीराजरासो’ में पृथ्वीराज की जीवन गाथा है। ‘पृथ्वीराज रासो’ हिंदी साहित्य सर्वाधिक विस्तृत रचना मानी गई है। कन्नौज का अंतिम राठौड़ शासक जयचंद था जो संस्कृत का बहुत बड़ा संरक्षक था।
हिन्दी साहित्य का भक्ति काल प्रमुख रूप से भक्ति भावना से ओतप्रोत काल है। इस काल को समृद्ध बनाने वाली दो काव्य-धाराएं हैं। पहली निर्गुण भक्तिधारा और दूसरी सगुण भक्तिधारा। निर्गुण भक्तिधारा को आगे दो हिस्सों में बांटा गया। संत काव्य जिसे ज्ञानाश्रयी शाखा के रूप में जाना जाता है। इस शाखा के प्रमुख कवि कबीर, नानक, दादूदयाल, रैदास, मलूकदास, सुन्दरदास, धर्मदास आदि हैं।
निर्गुण भक्तिधारा का दूसरा हिस्सा सूफी काव्य का है। इसे प्रेमाश्रयी शाखा भी कहा जाता है। इस शाखा के प्रमुख कवि हैं- मलिक मोहम्मद जायसी, कुतुबन, मंझन, शेख नबी, कासिम शाह, नूर मोहम्मद आदि। भक्तिकाल की दूसरी धारा को सगुण भक्ति धारा के रूप में जाना जाता है।
सगुण भक्तिधारा दो शाखाओं में विभक्त है। रामाश्रयी शाखा और कृष्णाश्रयी शाखा। रामाश्रयी शाखा के प्रमुख कवि हैं-तुलसीदास, अग्रदास, नाभादास, केशवदास, हृदयराम, प्राणचंद चौहान, महाराज विश्वनाथ सिंह, रघुनाथ सिंह।
इसी प्रकार कृष्णाश्रयी शाखा के प्रमुख कवि हैं-सूरदास, नंददास, कुम्भनदास, छीतस्वामी, गोविन्द स्वामी, चतुर्भुज दास, कृष्णदास, मीरा, रसखान, रहीम आदि। चार प्रमुख कवियों ने अपनी-अपनी धारा का प्रतिनिधित्व किया। वे हैं कबीरदास (1399-1518), मलिक मोहम्मद जायसी (1477-1542), सूरदास (1478-1580), तुलसीदास (1532-1602)।