सत्य ऋषि
आप जानते हैं कि अग्नि के बिना संसार का कोई भी काम चल ही नहीं सकता। न भोजन बन सकता है और न ही किसी प्रकार का वाहन चल सकता है। इसलिए ऋग्वेद के पहले सूक्त में अग्निदेव की स्तुति की गई है। उनसे यज्ञ में सभी देवताओं के साथ पधारने की प्रार्थना की गई है। इस सूक्त में कुल 9 मंत्र हैं, जिनमें से पहले मंत्र के बारे में आप जान चुके हैं। अब शेष आठ मंत्रों की चर्चा करते हैं।
अग्निःपुर्वेभिर्ऋषिभीरीडयो नूतनैरुत। स देवाँ एह वक्षति।2।
अर्थात, हे अग्निदेव! आप की प्रशंसा का पूर्वकालीन ऋषियों (अर्थात ऋषि भृगु और ऋषि अंगिरा आदि) ने की है। आप आने वाले समय में भी हमेशा पूजनीय और स्तुत्य हैं। आप कृपा कर इस यज्ञ में देवाताओं का आवाहन करें और हमें पुण्य फल प्राप्ति में सहायक बनें।
अग्निनारयिमश्नवत् पोषमेव दिवेदिवे। यशसं वीरवतमम्।3।
अर्थात, हे अग्निदेव! हम आपकी स्तुति करते हैं। आप सभी याजकों/यजमानों/ मनुष्यों को यश, धन, सुख, समृद्धि, पुत्र–पौत्र, विवेक और बल प्रदान करने वाले हैं।
अग्नेयं यज्ञमध्वरं विश्वतः परिभूरसि। स इछेवेषु गच्छति।4।
यहां बताया गया है कि यज्ञ को देवताओं तक पहुंचाने में अग्नि देव की क्या महत्ता है और कहा गया है कि हे अग्नि देव! आप सबकी रक्षा करते हैं और जिस यज्ञ को हिंसा रहित तरीके से रक्षित और आवृत करते हैं वही यज्ञ देवताओं तक पहुंच पाता है।
अग्निहोंताकविक्रतु: सत्यश्चित्रश्र्वस्तमः। देवो देवेभिरा गमत्।5।
इस मंत्र में अग्निदेव को सभी देवताओं के साथ यज्ञ में पधारने का आवाहन किया गया है और कहा गया है कि हे अग्निदेव! आप सत्य रूप हैं। आप ज्ञान और कर्म की संयुक्त शक्ति के प्रेरक हैं और आपका रूप विलक्षण है। आप इस यज्ञ में सभी देवों के साथ पधार कर इस यज्ञ को पूर्ण करें।
यद्डग्दाशुषे त्वमग्ने भद्रं करिष्यसि। तवेत्त् सत्यमडिग्र:।6।
यहां कहा गया है कि सब कुछ आपका ही है। सब कुछ आपसे ही प्राप्त हुआ है और सब कुछ वापस आपके ही पास आना है। कहा गया है कि हे अग्निदेव! आप जो मनुष्यों को रहने के लिए घर, जीवन यापन के लिए धन, संतान या पशु आदि देकर समृद्ध करते हो और उनका कल्याण करते हो वह यज्ञ से आपको ही प्राप्त होता है।
उपत्वाग्ने दिवेदिवे दोषावस्तर्धिया वयम् | नमो भरन्त एमसी || 7 ||
इस मंत्र में कहा गया है कि हे अग्निदेव !हम सब आपके सच्चे उपासक है और पूरी श्रद्धा से आपकी उपसना करते है, हम अपनीश्रेष्ठ बुद्धि से दिन रात आपकी स्तुति व आपका सतत गुणगान करते है. साथ हीअग्निदेव से प्रार्थना की जाती है कि हे अग्निदेव ! हम सबको हमेशा आपका सान्निध्यप्राप्त हो.
राजन्तमध्वराणांगोपामृतस्य दीदिविम्। वर्धमानं स्वे दमे।8।
यहां भी अग्निदेव की प्रशंसा की गई है और कहा गया है कि हम सब गृहस्थ लोग हैं और आप (अग्निदेव) सभी यज्ञों की रक्षा करते हैं। सत्य वचन रूप व्रतों को आलोकित करते हैं। यज्ञ स्थलों में वृद्धि करते हैं। हम सब आपके समीप आते हैं और आपकी स्तुति करते हैं।
सनः पितेव सूनवेग्ने सूपायनो भव। सचस्वा नः स्वस्तये।9।
इस मंत्र में अग्निदेव को पिता का दर्जा देते हुए प्रार्थना की गई है कि हे गार्हपत्य अग्ने! जिस प्रकार हर पुत्र को पिता सुखपूर्वक प्राप्त हो जाते हैं, उसी प्रकार आप भी हमेशा हमारे साथ रहें और हम पर अपनी कृपा दृष्टि बनाए रखें।