Indian Colonies: इसे विडंबना कहें या शासन प्रशासन की उदासीनता या फिर जिम्मेदार लोगों की मनमानी, पुनर्वासित दयानंद कॉलोनी के लोग बुनियादी सुविधाओं को मोहताज हैं।
Indian Colonies: कई लोगों के खिलाफ बिजली चोरी की एफआईआर दर्ज
चरण सिंह राजपूत
चंडीगढ़/फरीदाबाद। Indian Colonies: सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर बनी दयानंद कॉलोनी में बुनियादी सुविधाओं का घोर अभाव है। कॉलोनी में बिजली के खंभे हैं, बिजली है पर यहां के लोगों के घर पर मीटर नहीं लगे हैं।
कॉलोनी के लोगों ने मीटर लगाने के लिए आवेदन कर रखा है। लेकिन कई लोगों के खिलाफ बिजली चोरी की एफआईआर दर्ज हो चुकी है। बिजली विभाग इन लोगों को जेल में डालने की धमकी देता रहता है।
छह एकड़ जमीन पर पुनर्वासित इस कॉलोनी में दो बड़े शौचालय हैं। जिनमें एक खराब पड़ा है। पानी के लिए एक ट्यूबवेल है। यहां के निवासियों को इस ट्यूबवेल से पानी भरकर अपने घर लाना पड़ता है। बिजली का कटना और ट्यूबवेल का खराब होना तो आम बात है।
क्या करते हैं बंधुआ मुक्ति मोर्चा के लोग?
कहने को तो कॉलोनी में रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन भी है। पर एसोसिएशन के पदाधिकारी यह कहकर पल्ला झाड़ लेते हैं कि बंधुआ मुक्ति मोर्चा के लोग उनके काम में रोड़ा अटकाते हैं। वे लोग न तो कुछ करते हैं और न ही करने देते हैं।
सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार, इस कालोनी में 523 मकान बनने थे। लेकिन 365 ही बने हैं। 97 मकान ऐसे हैं जो अभी अलॉट होने हैं। कॉलोनी के कुछ मकानों में पत्थर खदान में काम करने वाले लोग रह रहे हैं।
यह तो ठीक है, लेकिन कुछ प्रभावशाली लोगों ने कॉलोनी के कुछ मकानों को किराये पर दे रखा है। इस प्रकार गरीब मजदूरों का हक मारा जा रहा है। कॉलोनी के लोगों ने बताया कि किराया खाने वाले लोगों में बंधुआ मुक्ति मोर्चा के पदाधिकारी भी हैं।
जिला प्रशासन ने मुड़कर भी नहीं देखा
सुप्रीम कोर्ट के अनुसार तो इस कॉलोनी में अस्पताल, स्कूल, खेल का मैदान भी बनना था पर कालॉनी बनने के बाद जिला प्रशासन ने इस ओर मुड़कर भी नहीं देखा। और लोग भगवान भरोसे असुविधाओं में जीवन यापन करने को मजबूर हैं।
दरअसल, दयानंद कॉलोनी की कहानी बड़ी दिलचस्प है। किसी समय पत्थर खदान में काम करने वाले मजदूरों के हक की लड़ाई सोशल एक्टिविस्ट रहे स्वामी अग्निवेश ने लड़ी। बंधुआ मुक्ति मोर्चा के सर्वेसर्वा रहे स्वामी ने मजदूरों को एकजुट करके एक बड़े आंदोलन को अंजाम दिया।
यह लड़ाई सुप्रीम कोर्ट तक लड़ी गई। स्वामी अग्निवेश के निधन के बाद अब एक तरह से यह कॉलोनी लावारिस हो गई है। बंधुआ मुक्ति मोर्चा के पदाधिकारी अपने तक ही सीमित रह गए हैं। कहने को तो कॉलोनी में रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन भी है पर कॉलोनी के लोगों की बात जिला प्रशासन गंभीरता से नहीं लेता।
स्लम बस्ती लगती है दयानंद कॉलोनी
कॉलोनी की हालत यह है कि अब यह एक स्लम बस्ती की तरह लगती है। अरावली पहाड़ी पर अवैध रूप से बनी बस्तियों को हटाने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद अब कॉलोनी चर्चा में है। अंखिर, खोरी, महतो, गदाखोर समेत लगभग 12 डेरों में रहने वाले मजदूर अब कॉलोनी की ओर आशा भरी निगाह से देख रहे हैं।
विभिन्न डेरों में रह रहे लोगों को डर सता रहा है कि देर-सबेर उनका भी आशियाना उजाड़ा जाएगा। ऐसे में ये सभी लोग इस कॉलोनी में शरण मिलने की उम्मीद लगाए बैठे हैं।
कॉलोनी के लोगों का कहना है कि जिन मजदूरों ने मकान के नाम पर बंधुआ मुक्ति मोर्चा को चंदा दिया है, उन्हें वे मकान दे दिए जाएं जो किराये पर लगा दिए गए हैं। बाकी मजदूरों को भी कॉलोनी में खाली पड़ी जमीन पर बसाया जाए।
पूंजपीतियों के धंधे के लिए व्यवस्था
फरीदाबाद के तत्कालीन मेयर सुबेदार सुमन ने बताया कि उनके समय में ही यह कॉलोनी बसी थी। उन्होंने यह जमीन अलॉट कराई थी। उनका कहना है कि स्वामी अग्निवेश ने इन मजदूरों की लड़ाई लड़ी। ये मजदूर क्रेशरों में काम करते थे। जिला प्रशासन की लापरवाही के कारण कॉलोनी मूर्त रूप नहीं ले पाई।
इस कॉलोनी में मजदूर कई गुटों में बंटे हैं। खट्टर सरकार गरीबों की दुश्मन बनी हुई है। अरावली पहाड़ी पर चल रही तोड़फ़ोड़ पर उनका कहना है कि 50 साल पहले बनी इमारतों को तोड़ा जा रहा है। गरीब बिलख रहे हैं। पूंजपीतियों के धंधे के लिए सरकार व्यवस्था कर रही है।