
Indian Democracy: महाराष्ट्र में जो कुछ हुआ, उससे आप वाकिफ ही हैं। लेकिन आने वाले दिनों में इसका एक वीभत्स रूप सामने आ सकता है। और भारतीय लोकतंत्र एक महामारी का शिकार हो सकता है। जानते हैं कि आगे क्या कुछ हो सकता है।
Indian Democracy: कभी रुपया तो कभी सरकार गिराती है भाजपा
श्रीकांत सिंह
नई दिल्ली। Indian Democracy: आज कल आप देख रहे हैं कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में रुपया जितनी तेजी से गिर रहा है, उतनी ही तेजी से गैरभाजपा सरकारों को गिराया जा रहा है। महाराष्ट्र इसका एक ताजा उदाहरण है। कर दाताओं के पैसे से करोड़ों अरबों रुपये खर्च कर उद्धव ठाकरे की सरकार को गिरा दिया गया। लेकिन अब आगे क्या होगा?
दरअसल, बाला साहेब ठाकरे की विरासत को उद्धव ठाकरे ही आगे बढ़ा पाएंगे। क्योंकि एकनाथ शिंदे के पास जो लगभग 50 विधायक हैं, उनमें से बमुश्किल सात या आठ ही अपने बल पर भविष्य में चुनाव जीत पाएंगे। क्योंकि इनके पास अपने कार्यकर्ता तक नहीं हैं।
आगे एक द्वंद में फंस सकते हैं बागी विधायक
इन परिस्थितियों में आगे क्या होगा? भविष्य के चुनावों की बात करें, तो बागी विधायकों के भाजपा में विलय के बाद इनमें से कोई भी जिस सीट से चुनाव लड़ना चाहेगा उस सीट के लिए भाजपा का कोई न कोई नेता पहले से मेहनत कर रहा होगा। जाहिर सी बात है कि ये बागी उम्मीद करेंगे कि उस सीट के लिए उन्हें भाजपा से टिकट मिले।
अगर ये बागी अपनी अलग पार्टी बनाते हैं, तो भी यही उम्मीद करेंगे कि उन्हें भाजपा वह पसंदीदा सीट दे दे। ऐसे में द्वंद पैदा होना स्वाभाविक है। फिर इनमें से कई तो ऐसे हैं, जो अपने दम पर चुनाव नहीं जीत सकते। और जहां जहां से शिवसेना के विधायक जीत कर आए थे वहां दूसरे नंबर पर एनसीपी थी। जाहिर है कि यहां भाजपा की स्थिति पहले से कमजोर थी।
क्या गुल खिला सकती है उद्धव ठाकरे की भावुक अपील?
हमें उद्धव ठाकरे की उस भावुक अपील को नहीं भूलना चाहिए, जिसमें उन्होंने कहा था कि बाला साहेब ठाकरे के पुत्र को महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री बनाया गया था लेकिन कुछ लोगों ने पद से हटवा दिया। इस अपील के प्रभाव को एकनाथ शिंदे तभी कम कर सकते हैं, जब महाराष्ट्र की जनता उन्हें बाला साहेब ठाकरे का असली वारिस माने। लेकिन इसकी संभावना बहुत कम है।
एक बात और। बाला साहेब ठाकरे की शिवसेना और उद्धव ठाकरे की शिवसेना में काफी अंतर है। क्योंकि उद्धव ठाकरे की शिवसेना में वह उग्र हिंदुत्व नहीं है, जो बाला साहेब ठाकरे की शिवसेना में रहा है। इस आधार पर कहा जा रहा है कि उद्धव ठाकरे खत्म हो जाएंगे। लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि पीढ़ी दर पीढ़ी पार्टी की रीति नीति और संसकारों में बदलाव आता है। कांग्रेस इसका एक सटीक उदाहरण रही है।
संपादक की दृष्टि से क्या है निष्कर्ष?
महाराष्ट्र का संपूर्ण घटनाक्रम एनसीपी और कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती बन कर सामने आ सकता है। क्योंकि महाराष्ट्र देश की आर्थिक नब्ज है। चुनावी चंदे की बात करें, तो उस मामले में यह प्रदेश बेजोड़ है। लेकिन भाजपा चुनावी चंदे की वह हर पाइप लाइन काटने का प्रयास करेगी, जो विपक्ष के नेताओं तक जाती है।
यही नहीं, अब विपक्ष की प्रताड़ना भी बढ़ेगी। ईडी, सीबीआई और आईटी की रेड के जरिये विपक्ष को तहस नहस करने की कोशिश की जाएगी। इसलिए अगर किसी को भाजपा से टकराना है तो उसे पाक साफ रहना होगा। एकता को मजबूत करना होगा। राजनीतिक स्वार्थ से आगे जाकर देश में लोकतंत्र की बहाली के लिए संघर्ष करना होगा। अन्यथा भारतीय लोकतंत्र को भाजपा नाम की महामारी निगल जाएगी।