
Indian temple : स्वागत है आपका। आज हम एक धारावाहिक चर्चा की शुरुआत कर रहे हैं। उसे नाम दिया है आस्था की राहें। इन राहों पर चलने और उनकी चर्चा का मकसद पौराणिक महत्ता वाले गुमनाम मंदिरों के बारे में जानकारी देना है। वैसे भी इंफोपोस्ट का धर्म सूचना देना ही है। इस बार हम आपको ले चल रहे हैं बाबा बेलखरनाथ धाम।
Indian temple : क्या भारतीय मंदिर पूजा का स्थान नहीं ?
इंफोपोस्ट न्यूज
Indian temple : इससे पहले कि भारतीय मंदिरों के बारे में चर्चा शुरू की जाए, यह जान लेना जरूरी है कि आखिर मंदिर क्यों बनाए जाते थे ? लोगों ने इस पर तरह तरह से चिंतन किया है। कुछ लोगों का मानना है कि भारतीय मंदिर पूजा या प्रार्थना का स्थान नहीं हैं।
मंदिर बनाने का एक पूरा विज्ञान है। इसे आगम शास्त्र कहते हैं। अगर मूर्ति का रूप और आकार, मूर्ति की मुद्राएं, प्राण प्रतिष्ठा करने के लिए इस्तेमाल में लाए गए मंत्र, गर्भ ग्रह का रूप और आकार, बाहरी परिक्रमा यह सभी चीजें पांच मूल तत्व हैं।
अगर इन 5 चीजों को ठीक से व्यवस्थित किया जाए तो यह ऊर्जा का एक बहुत शक्तिशाली स्थान बन जाएगा। तो इस परंपरा में आपको बताया जाता है कि हर दिन सुबह इससे पहले कि आप काम या कहीं भी जाएं जाएं, आपको सबसे पहले नहाना चाहिए। फिर जाकर कुछ समय मंदिर में बैठना चाहिए और तब दुनिया में चीजें करनी चाहिए।
तो मंदिर सार्वजनिक बैटरी चार्जिंग स्थान की तरह
Indian temple : यह एक सार्वजनिक बैटरी चार्जिंग स्थान की तरह है। जब आप दुनिया में कुछ करते हैं तो दुनिया की प्रकृति भौतिक दुनिया ऐसी है कि दुनिया में आपका हर लेन-देन ऐसा होता है। मेरा फायदा आपका नुकसान है। आपका नुकसान मेरा फायदा है। अगर आप एक खास तरह से नहीं हैं तो आपके जीवन के हर लेन-देन में टकराव की आशंका होती है।
क्या ऐसा नहीं है? हर एक शब्द जो आप बोलते हैं, हर छोटी चीज जो आप जवाब लेते देते हैं, हर जगह आप किसी के साथ लड़ सकते हैं क्योंकि हर चीज में यह ऐसा ही है। अगर आपको किसी से कुछ प्राप्त करना है तो किसी को कुछ खोना होगा। यही भौतिक अस्तित्व की प्रकृति है।
जब ऐसी बात है तो जब तक आप भीतर एक खास तरह से नहीं हों, जब तक आपने अपने भीतर कुछ कीमती नहीं पाया हो, आप हर मौके पर लड़ेंगे। लोगों को सड़कों पर गाड़ी चलाते हुए देखें। सभी कगार पर होते हैं। छोटी सी बात पर वे एक दूसरे पर झपटने को आमादा हो जाएंगे। है कि नहीं?
मंदिर में चार्ज होती है शरीर की बैटरी
Indian temple : सड़क आपकी ही संपत्ति नहीं है। अगर आप बस अपनी लेन से दूसरे की लेन में जाते हैं या वह आपकी लेन में आता है तो एक समस्या पैदा हो जाती है। इतनी सी बात पर लोगों में संघर्ष होने लगता है। और क्या आपने कभी ऐसा देखा है। आप अपने भीतर एक खास तरह से ना हों तो हर एक लेन-देन एक टकराव होता है।
तो हर दिन आप मंदिर जाते हैं। अपनी बैटरी चार्ज करते हैं। और फिर बाहर जाते हैं ताकि आप दिन को आसानी से गुजार कर वापस आएं। इस परंपरा में यह भी कहा गया है कि जब आप आध्यात्मिक मार्ग पर हों तो आप को मंदिर जाने की जरूरत नहीं है। क्या आप यह जानते हैं? अगर आप आध्यात्मिक मार्ग पर हैं तो आपको मंदिर जाने की जरूरत नहीं है क्योंकि अब आपके पास खुद को चार्ज करने के तरीके हैं।
अब आप खुद की बैटरी चार्ज कर रहे हैं। अब आपको सार्वजनिक चार्जिंग स्थान पर जाने की जरूरत नहीं है। तो भारतीय मंदिर कभी भी पूजा या प्रार्थना का स्थान नहीं था। आज भी नहीं है। हालांकि लोग धीरे-धीरे इसे जैसा बनाने की कोशिश कर रहे हैं, उसके अनुसार वे जहां भी जाते हैं प्रार्थना करते हैं और तरह तरह की चीजें मांगते हैं। वरना इस परंपरा में आपसे कहा गया है कि वहां जाकर आपको कुछ समय बैठना चाहिए।
कम से कम दक्षिण भारत में आज भी ऐसा है। उत्तर में आमतौर पर यह खत्म हो गया है। और जो लोग दक्षिण भारत से आते हैं, वे जानते हैं कि बैठना चाहिए। और अब वे भी अपने शरीर की तली को जमीन से स्पर्श करा कर वापस चले जाते हैं।
ध्यान लिंग मंदिर
Indian temple : ऐसे जीवन जीवंत मौजूद हैं जो बहुत ही शक्तिशाली हैं। आपको उन्होंने ध्यान लिंग मंदिर के बारे में कुछ दिया है। इस मंदिर में कोई रीति रिवाज नहीं होता। कोई पूजा नहीं होती। कोई प्रार्थना नहीं होती। कोई चढ़ावा नहीं चढ़ता। यहां हमेशा बिल्कुल मौन रहता है। आप आकर वहां बैठें। जो इंसान ध्यान के बारे में कुछ भी नहीं जानता, वह भी बिना किसी निर्देश के वहां बैठकर ध्यान मग्न हो जाएगा।
अगर आप थोड़े संवेदनशील हैं तो यह मंदिर आपको हिला कर रख देगा। इतना शक्तिशाली है। आप पर इतना विशाल असर होता है। सभी मंदिरों को इसी तरह बनाया गया था। लेकिन विभिन्न उद्देश्यों के लिए। कुछ खुशहाली के लिए, कुछ मानसिक खुशहाली के लिए। इस तरह कई तरह के मंदिर बनाए गए। इसका एक पूरा विज्ञान है।
दुर्भाग्य से इसके रखरखाव की जानकारी न होने के कारण हमने बहुत सारे मंदिर खत्म कर दिए हैं। और आज हम मंदिरों को शॉपिंग कंपलेक्स की तरह बना रहे हैं। शायद उसी उद्देश्य के लिए। एक सामाजिक स्थान की तरह है। एक तरह से क्लब ज्यादा बन गए हैं।
यह अमेरिका के लिए तो ठीक

यह अमेरिका के लिए तो ठीक है। आप अपने समुदाय से मिलना चाहते हैं तो आपने ऐसी चीजें बनाई। मंदिर अपने मूल रूप में एक बहुत शक्तिशाली ऊर्जा केंद्र होता है।
यह लोगों को जीवन के एक बिल्कुल अलग आयाम से परिचित कराने का साधन होना चाहिए। उसे दुनिया में मौजूद रहना चाहिए। यह बहुत महत्वपूर्ण है। पर इसका विज्ञान आमतौर पर खो गया है। इसे सिर्फ कर्मकांड की तरह किया जा रहा है। इसमें शामिल जटिलताओं को बिना जाने किया जा रहा है।
बाबा बेलखरनाथ धाम
आपने भारतीय मंदिरों के विज्ञान को समझ लिया होगा। अब चर्चा बाबा बेलखरनाथ धाम की। उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले में सई नदी के तट पर शिवजी का एक धाम है। उसी को हम बाबा बेलखरनाथ धाम के नाम से जानते हैं।
यह धाम दूरदराज से आने वाले भक्तों के लिए बहुत ही मनमोहक स्थान है। यह अपने में बहुत से पौराणिक इतिहास समेटे हुए है। प्रतापगढ़ मुख्यालय से 15 किलोमीटर दूर पट्टी मार्ग पर लगभग 90 मीटर ऊंचे टीले पर स्थिति स्थान पर महाशिवरात्रि पर्व पर प्रत्येक तीसरे वर्ष मलमास में एक महीने के लिए विशाल मेले का आयोजन होता है।
इसके साथ ही साथ प्रत्येक शनिवार को भी यहां पूजन अर्चन और मेले का आयोजन होता है। इतिहासकारों की मान्यता के अनुसार इस मंदिर का नाम बेलघरिया राजपूतों के नाम पर पड़ा है। कहा जाता है कि दशकों पहले सई नदी के किनारे इस जमीन पर ऋषि वंश के दीक्षित कष्यप गोत्र के बलखड़िया राजपूतों का राज हुआ करता था।
बेलखड़िया राजपूतों का मूल उद्गम
बेलखड़िया राजपूतों का मूल उद्गम स्थान बिहार और राजस्थान के आसपास का क्षेत्र रहा होगा। हालांकि इसका कोई ठोस प्रमाण उपलब्ध नहीं है कि बेलघरिया राजपूत इतनी दूर से इस क्षेत्र में किस उद्देश्य आए थे। इतिहासकारों का मानना है कि इनके मूल उद्गम स्थल पर कभी भयानक सूखा पड़ने के कारण इन राजपूतों को वहां से पलायन करना पड़ा।
नदियों के स्थान को ढूंढते ढूंढते कुछ समय इन्होंने इलाहाबाद के गंगा नदी के किनारे भी अपना निवास स्थान बनाया था। लेकिन बरसात के समय गंगा नदी में बाढ़ आने के कारण दूसरी बार भी वहां से इन्हें पलायन करना पड़ा।
अंतत: बलखरिया राजपूतों ने सई नदी के किनारे एक ऊंचे टीले पर अपना आवास बनाया। यह टीला काफी ऊंचा है तो यहां बाढ़ आने की कोई संभावना नहीं है। इस टीले पर बलखरिया राजपूतों ने कोर्ट का भी निर्माण किया था, जिसका खंडहर आज भी वहां पर मौजूद है।
जब जंगलों से ढक गया धाम
किन्हीं कारणवश राज्य का पतन हो गया और बाद में इस किले के आसपास और शिव जी का जो मंदिर था वह स्थान जंगलों से ढक गया। लोगों का आना जाना वहां पर जानवरों को चाराना चलाना तथा लकड़ियों का काटना शुरु हो गया।
कहते हैं कि एक दिन एक व्यक्ति की नजर उस शिवलिंग पर पड़ी और वह व्यक्ति शिवलिंग को पत्थर समझ कर अपनी कुल्हाड़ी तेज करने लगा। और देखते ही देखते अनजाने में शिवलिंग पर कुल्हाड़ी से प्रहार भी कर दिया। जिसका निशान आज भी उस शिवलिंग पर मौजूद है। जैसे ही व्यक्ति ने कुल्हाड़ी का प्रहार उस शिवलिंग पर किया उसे बिजली के करंट जैसा झटका लगा। उसके कानों में डमरू की आवाज सुनाई देने लगी।
थोड़ी देर में वह बेहोश हो गया। बाद में उसे होश आया तो उसने सई नदी में स्नान किया और उस शिवलिंग की पूजा अर्चना की। मंदिर बनाने से पहले वहां पर पुराने मंदिर का कुछ भाग मौजूद था। बाद में भक्तों ने शिवलिंग के ऊपर छप्पर बना दिया।
राजा दिलीपपुर और बेलखरिया धाम
कहा जाता है कि राजा दिलीपपुर ने कई बार मंदिर बनवाने का प्रयास किया। दिन भर उस मंदिर का निर्माण होता था। अगले दिन मंदिर खंडहर में तब्दील हो जाता था। दिलीपपुर के कई बार प्रयास करने के बाद भी जब मंदिर का निर्माण नहीं हो पाया तो गांव में ही रहने वाले शिवहर ब्रह्मचारी ने मंदिर के निर्माण का प्रयास किया। उसने राजा को अवगत कराया कि इस मंदिर को बनवाने में आपकी 3 पीढ़ी का योगदान होगा।
और मंदिर आपके पैसे से ना बनकर चंदे के पैसे से ही बनेगा। इस प्रकार बाबा बेलखरनाथ धाम का कार्य संपन्न हुआ। इस धाम में प्रभु राम, माता सीता, हनुमान जी और विश्वकर्मा भगवान के मंदिरों का भी निर्माण कराया गया।
Indian temple : वर्ष 1996 में छपी एक पुस्तक वत्स गोत्र चौहान वंश के अनुसार, भगवान श्री राम अपने वनवास के समय बेल राजा के शासनकाल में इस स्थान पर महादेव की पूजा की थी। बेलखरिया धाम का अपना एक महत्व है। तमाम ग्रंथों में इसकी एक त्रिकोण यात्रा का वर्णन किया गया है।