
Irony: यह एक व्यंग्य रचना है। इसमें प्रकाशकों की पोल खोली गई है। उम्मीद करता हूं कि जो प्रकाशक कुटिलता से दूर रहते हैं, वे इसे अन्यथा नहीं लेंगे। और जो भर भर के छुद्रता दिखाते हैं, वे अपने में सुधार लाकर अच्छे प्रकाशक बनने का प्रयास करेंगे।
@ रमेश कुमार “रिपु”
Irony: रावण इस बार भेष बदल कर भीड़ से हटकर एक कोने में इतमिनान से मोबाइल देख रहा था। चुपके से उसके पास पहुंंचा। अरे यार, गजब कर दिए। तुम यहांं बैठे हो। मैं तुम्हें कहांं नहीं ढूंढा। मोबाइल में क्या देख रहे हो…?
ठहाके लगाकर हंंस कर रावण बोला, मैं कुछ नया करना चाहता हूं…।
‘‘मैंने हैरान होकर उससे कहा, हाथरस, लखीमपुर, मुंबई में ड्रग्स कांड, बस्तर में नक्सलवाद, तुम्हारे सिर की तरह महंगाई में शून्य लगातार बढ़ रहा है, फिर भी कहते हो कुछ नया करना है…!
Irony: ‘‘मोबाइल देखकर एक नया आइडिया आया है। प्रकाशक बनने का।’’
अपना माथा ठोकते हुए कहा, अरे ये काम आपका नहीं है। इसमें नेताओं से भी ज्यादा झूठ बोलना पड़ता है। छल प्रपंच करना पड़ता है। लेखकों को अंधेरे में रखना और उनकी रायल्टी हड़पने का काम आपके बस की बात नहीं। बहुत घटिया काम भी करना पड़ता है।’’
‘‘कोई काम घटिया नहीं होता। हर काम में दिमाग लगाना पड़ता है। तुम्हें याद है ना, सीता हरण…! उसके लिए कितना दिमाग लगाना पड़ा था। भेष बदलना पड़ा था। झूठ बोलना पड़ा था। वो सब कर सकता हूं तो फिर प्रकाशक बनने में कोई बाधा नहीं है। बस, थोड़ा कमीनापन और सही।
मैंने चौक कर कहा, कैसे इतना कमीनापन सोच लेते हो?
Irony: ‘‘सीता हरण हो या फिर कहानी का हरण अथवा दूसरे प्रकाशक का हरण, यह तो अब भी कर सकता हूं। मायावी बातें मुझसे अच्छा कोई नहीं कर सकता। एक पुरानी लेखिका की भतीजी के बार-बार मुझे फोन आ रहे हैं। दिल्ली में मुझसे मिली थी। उसे कह दिया हूं, मेरे रहते चिंता मत करो, तुम्हारी पीएचडी के लिए मैं लेखकों की लाइन लगा दूंगा। रावण अभिमानी अंदाज में बोला।
सोशल मीडिया देखते हो ना। मोबाइल में देखो। जिसे देखो वही अपनी किताब आने की सूचना दे रहा है। किताब का लाइव विमोचन करा रहा है। प्रकाशक का भी प्रचार हो रहा है। अखबारों में किताब की समीक्षा के साथ प्रकाशक का नाम छप रहा है। यानी बिना चूना फिटकरी के रंग चोखा है। दशानन प्रकाशन नाम कैसा है! ठीक है ना!
एक बात मेरी समझ में नहीं आ रही है। प्रकाशक क्यों बनना चाहते हो?
प्रकाशक बनने के कई फायदे हैं। सीता हरण जैसा प्रपंच नहीं करना पड़ेगा। मेरे पास हजारों सीता के फोन आएंगे। फेस बुक पर उनकी रिक्वेस्ट आएगी। व्हाटसऐप पर मैसेज आएगा। लाइव बाते होंगी। होटल में मुलाकात होगी।
कई प्रशासनिक अधिकारियों की पत्नियां कविताएं लिखती हैं, कहानियां लिखती हैं। उनकी किताबें प्रकाशित करूंगा। रायल्टी भी नहीं देना पड़ेगा, बल्कि उनके पति किताबें पाठ्य पुस्तक निगम के लिए आर्डर कर देंगे। पुस्तकालय के लिए किताबें खरीद लेंगे। यही काम विधायक, मंत्री का करूंगा। मंत्री, मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री, राज्यपाल और प्रशासनिक अफसरों से मिलने का शार्ट कट रास्ता है प्रकाशक बन जाओ।
अगले साल दिल्ली में पुस्तक मेला जनवरी में होने वाला है। अभी से तैयारी कर ली है। फेसबुक, इंस्टाग्राम में अपने प्रकाशन की सूचना मैंने डाल दी है। कई लेखकों को ई मेल कर दिया है। दशानन प्रकाशन की तरफ से छूट।
तीन किताबें छपवाने वाले हर बड़े लेखक को बीस फीसदी की रायल्टी और नए लेखकों को किताब छपवाने में पचास फीसदी की छूट। यानी, आधा पैसा दशानन प्रकाशन किताब छापने में लगाएगा और आधा युवा लेखक।”
पत्रकार ने कहा, प्रभू राम को पता है?
“मेरे इस गेटअप से वो भी मुझे नहीं पहचान पाएंगे। वैसे भी इस बार दशहरा नहीं होगा। उन्हें व्हाटसपऐप कर बता दिया है। कोरोना फैल सकता है। लक्ष्मण को पहले ही कोरोना हो गया है। वानर सेना भी डरी हुई है।”
आप अभी आ कहांं से आ रहे हैं, पत्रकार ने पूछा।
लखीमपुर से सीधे तुम्हारे मध्य प्रदेश में हूं। सुना है यहां उपचुनाव होने जो रहे हैं। हमारी जरूरत सरकार को पड़ेगी ही। हर बार दशहरे में राम जीत जाते हैं। फिर भी न उनके अच्छे दिन आए और न ही हमारे।
कोरोना की वजह से सबके अच्छे दिन को राम सा वनवास हो गया है। इसलिए तय किया है कि लेखकों से अच्छे दिन कैसे आएं, किताब लिखवाएंगे। फिर उस किताब को संसद की कैंटीन से लेकर देश में जहांं-जहांं बीजेपी की सरकार है, उसका विमोचन मुख्यमंत्री के हाथों से करवाएंगे और अपने प्रकाशन की किताब सरकार को बेचेंगे।”
अयोध्या में राम का मंदिर तो बन रहा है? पत्रकार ने सवाल दागा।
“राम का मंदिर जब तक बनेगा, सरकार बदल जाएगी। नई सरकार के काम राम नहीं रावण आएगा। राम भी गुस्से में हैं। आखिर कब तक हमारे नाम के दम पर वोट लेंगे। रोटी की बात करते नहीं हैं। यूपी में रामराज्य की जगह गुंडा राज्य है। इसीलिए प्रकाशक बनने की ठानी है। व्यंग्यकारों की किताब के बहाने भगवा वालों की पोल खोलेंगे।
देखना दशानन प्रकाशन देश में सारे प्रकाशन को पीछे कर देगा। किसी के अच्छे दिन आएं या न आएं, मेरे तो आ ही जाएंगे। कुछ दिन पहले अखबार में एक खबर छपी थी वित्त मंत्री ने ढाई लाख करोड़ रुपये का बजट संसद में पेश किया था। कुछ तो बचा ही होगा…?
पत्रकार कुछ बोलने ही वाला था रावण ने कहा।
Irony: मेरा मोबाइल देखो, मेरे फेस बुक में “दशानक प्रकाशन” को कितने लाइक मिल रहे हैं। कितने लोग अपना व्हाटसऐप नम्बर पोस्ट किए हैं। अपनी किताब प्रकाशित करवाना चाहते हैं। तुम मेरे प्रकाशन के बारे में जरूर छापना। तुम्हारी किताब फ्री में छाप दूंंगा।