कांट छांट, साइड लाइन करने, जमीनी मुद्दों को दरकिनार करने और हर बात का श्रेय लेने की राजनीति करनी है तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से सीखनी चाहिए। देश में होने वाले हर काम का श्रेय उन्हें लेना है। विदेश मंत्री के साथ ही रक्षा मंत्री की जगह खुद मोर्चा संभाल लेने का खेल तो उनका लंबे समय से चल रहा था।
अब देश के सबसे बड़े आंदोलन के बाद अयोध्या में बन रहे राम मंदिर के शिलान्यास के मौके पर भी राम मंदिर निर्माण के सबसे बड़े नायक रहे लाल कृष्ण आडवाणी को पीछे धकेलते हए खुद राम मंदिर का शिलान्यास करने पहुंच गए।
इतना ही नहीं, राम मंदिर निर्माण आंदोलन के किसी नायक को उन्होंने नहीं पूछा। वह भी तब जब संवैधानिक पद पर होने के नाते व कोरोना कहर के बीच रोजी रोटी के बढ़ते संकट के समय प्रधानमंत्री को किसी धार्मिक कार्यक्रम से ज्यादा महत्व लोगों की समस्याओं को निपटाने को देना चाहिए।
राम मंदिर शिलान्यास का दिन लाल कृष्ण आडवाणी और राम मंदिर आंदोलन के उनके साथियों का था। पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं कि उन्हें तो हर बात का श्रेय चाहिए। जिस मुद्दे पर उनकी पार्टी सरकार बनाने की स्थिति में पहुंची भला वह उस मुद्दे को कैसे भुनाने से छोड़ सकते थे। भले ही उनको अपने राजनीतिक गुरु को जिंदगी का सबसे बड़ा दुख देना हो।
वैसे भी मोदी जब से प्रधानमंत्री बने हैं तब से अपने राजनीतिक गुरु लाल कृष्ण आडवाणी का अपमान ही तो करते चले आ रहे हैं। शपथ ग्रहण समारोह में लाल कृष्ण आडवाणी अपनी पीड़ा नहीं छुपा पाए थे। नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद यह कहा जा रहा था कि मोदी अपने गुरु को देश के सर्वोच्च राष्ट्रपति के पद पर बैठाएंगे। जब राष्ट्रपति बनने का नंबर आया तो बाबरी मस्जिद विध्वंस मामला गरमा दिया गया।
चाहे चुनाव लड़ने का मामला हो या फिर किसी कार्यक्रम में सम्मान का, हर बार आडवाणी को अपमान का सामना करना पड़ा। जो व्यक्ति 2009 के लोकसभा चुनाव भाजपा के प्रधानमंत्री पद का दावेदार था वह व्यक्ति 2014 में मोदी के प्रधानमंत्री बनते ही राजनीतिक रूप से संन्यास की भूमिका में आ गया।
लालकृष्ण आडवाणी भाजपा के दूसरे नेताओं के लिए भले ही कुछ विशेष न कर पाए पर मोदी को उन्होंने एक तरह से राजनीतिक जीवनदान दिलवाया था। गुजरात दंगों के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी उन्हें गुजरात के मुख्यमंत्री पद से उतारना चाहते थे पर वह लालकृष्ण आडवाणी ही थे, जिन्होंने वाजपेयी से सीधा टकराव मोल ले मोदी का बचाव किया था।
राजनाथ सिंह के साथ भी मोदी ने यही किया। अपने अध्यक्ष रहते हुए राजनाथ सिंह ने भाजपा के दिग्गजों से नाराजगी मोल लेते हुए मोदी को 2014 के लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री पद का दावेदार बनाया था। मोदी ने क्या किया। पूरे कार्यकाल में राजनाथ सिंह के गृह मंत्री रहते उनकी फाइलों को वापस कर उनको नीचा दिखाते रहे।
2019 के आम चुनाव में तो उन्होंने आडवाणी और राजनाथ सिंह दोनों को ही धराशाई कर दिया। आडवाणी की उम्र का हवाला देते हुए जहां उनकी परंपरा गत शीट पर अपने सारथी अमित शाह को चुनाव लड़ा दिया वहीं राजनाथ सिंह का गृह मंत्री पद भी अमित शाह को दे दिया।
अब राम मंदिर के शिलान्यास के मौके पर आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने तो लाल कृष्ण आडवाणी का नाम लिया पर मोदी ने राम मंदिर निर्माण आंदोलन के नायक का नाम लेना भी मुनासिब नहीं समझा। मोदी ने बड़ी चालाकी से उम्र और कोरोना का हवाला देते हुए राम मंदिर निर्माण आंदोलन के नायक रहे लाल कृष्ण आडवाणी, कल्याण सिंह और मुरली मनोहर जोशी को कार्यक्रम का निमंत्रण तक नहीं भेजा।
शायद यही वजह रही होगी कि उमा भारती ने यह टिप्पणी कर दी कि राम मंदिर भाजपा की बपौती नहीं। उधर, भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने राम मंदिर निर्माण में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी और पीवी नरसिंह राव का भी बड़ा योगदान बताया। बेबाक रूप से अपनी बात रखने वाले स्वामी ने मोदी का राम मंदिर निर्माण आंदोलन में कोई योगदान न होने की बात कही।
राम मंदिर निर्माण आंदोलन में विहिप नेता अशोक सिंघल का भी बड़ा योगदान रहा है। राम मंदिर के शिलान्यास के मौके पर विहिप के नेता प्रवीण तोगड़िया का कहीं नाम नहीं रहा।