आर.के.तिवारी
नई दिल्ली। सत्ताधारी सत्ता में बने रहने के लिए प्रयास करता रहता है तो विपक्षी नेता सत्ता हथियाने के जुगाड़ में लगा रहता है। सत्ता की दौड़ का खेल कुछ इसी तरह चलता रहता है। इस खेल में संतुलन बहुत जरूरी होता है। ऐसा नहीं है कि सत्ता हासिल करने वाले के पास किसी तरह की निश्चिंतता आ जाती है।
सच तो यह है कि असली चुनौती सत्ता मिलने के बाद शुरू होती है। भरोसा न हो रहा हो तो राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से पूछ लीजिए। लेकिन आज हम राजस्थान की राजनीति पर कोई चर्चा नहीं करने जा रहे हैं। हम कश्मीर की राजनीति पर भी ज्यादा चर्चा नहीं करेंगे, जहां का उपराज्यपाल यानी एलजी वरिष्ठ भाजपा नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री मनोज सिन्हा को बनाया गया है।
मनोज सिन्हा को जम्मू-कश्मीर का नया उपराज्यपाल गिरीश चंद्र मूर्मू के इस्तीफा देने के बाद बनाया गया। सिन्हा 2017 में उत्तर प्रदेश के सीएम पद के प्रमुख दावेदार रहे हैं, लेकिन सत्ता का ताज योगी आदित्यनाथ के सिर पर सजा दिया गया था। ऐसे में मनोज सिन्हा के उपराज्यपाल बनाए जाने से कश्मीर से ज्यादा उत्तर प्रदेश की सियासत को एक राजनीतिक संदेश मिला है।
बीएचयू छात्रसंघ अध्यक्ष से लेकर केंद्रीय मंत्री तक का सफर तय करने वाले मनोज सिन्हा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के करीबी माने जाते हैं। पीएम मोदी और मनोज सिन्हा के बीच आरएसएस के दिनों से ही अच्छे संबंध हैं। मोदी लहर पर सवार होकर बीजेपी ने 2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव की सियासी जंग फतह की तो मुख्यमंत्री के प्रबल दावेदारों में मनोज सिन्हा का नाम सबसे आगे था।
मनोज सिन्हा की ताजपोशी की तैयारी पूरी तरह हो गई थी। उन्होंने काशी पहुंच कर बाबा विश्वनाथ के दर्शन और पूजा अर्चना करने की कवायद भी शुरू कर दी थी। इसी बीच सूबे में सियासी समीकरण ऐसे बने कि मनोज सिन्हा सीएम बनते-बनते रह गए। सत्ता के सिंहासन पर योगी आदित्यनाथ बैठा दिए गए।
मनोज सिन्हा केंद्र में मंत्री बने रहे, लेकिन 2019 का लोकसभा चुनाव हार गए। इसके बावजूद मनोज सिन्हा को योगी के विकल्प के रूप में देखा जा रहा था। माना जा रहा था कि सूबे में जब कभी सत्ता में नेतृत्व परिवर्तन होगा तो सीएम के रूप में मनोज सिन्हा की ही ताजपोशी होगी।
कहा जाता है कि उत्तर प्रदेश में ब्राह्मण की नाराजगी योगी सरकार के खिलाफ है, लेकिन बीजेपी चुनावी मोड में उतर चुकी है। ऐसे में मनोज सिन्हा को उपराज्यपाल बनाकर यह संकेत दे दिया गया है कि सूबे में अब किसी तरह का कोई नेतृत्व परिवर्तन नहीं किया जाएगा। मनोज सिन्हा 2017 में सीएम की रेस से बाहर होने के बाद भी योगी के विकल्प के तौर पर बीजेपी शीर्ष नेतृत्व की पहली पसंद बने हुए थे।
मनोज सिन्हा साफ सुथरी छवि के हैं और भूमिहार समुदाय से आते हैं। ऐसे में उन्हें योगी के विकल्प के तौर पर सीएम बनाया जाता तो यह जरूरी नहीं था कि ब्राह्मण समुदाय इससे खुश होता। मोदी के करीबी होने के नाते उन्हें बहुत दिनों के लिए बैठाकर रखा भी नहीं जा सकता था। ऐसे में उन्हें उपराज्यपाल बनाकर सेट कर दिया गया है। इस तरह सीएम योगी की सियासी राह का कांटा सदा सर्वदा के लिए हट गया है।
जम्मू-कश्मीर में संविधान के अनुच्छेद 370 के हटने के एक साल बाद अब प्रशासनिक कार्य से ज्यादा सियासी गतिविधियां शुरू किए जाने की चुनौती है। नेशनल कॉफ्रेंस के प्रमुख उमर अब्दुला चुनाव लड़ने से इनकार कर चुके हैं और पीडीपी की मुखिया अभी नजरबंद हैं। जम्मू-कश्मीर में लंबे समय से एक राजनीतिक गैप है। ऐसे में मोदी सरकार के सामने उसे भरने के लिए एक महत्वपूर्ण नेता की जरूरत थी।
अब परंपरागत राजनीति खत्म हो गई है कि सियासी तौर पर रिटायर्ड माने जाने वाले नेताओं को ही राज्यपाल या फिर उपराज्यपाल बनाया जाए। अभी कश्मीर में एक ऐसे नेता की जरूरत है जो वहां सियासी माहौल तैयार कर सके, क्योंकि वहां से जो मैसेज जाता है वह देश ही नहीं बल्कि दुनिया भर में जाता है। ऐसे में मोदी सरकार घाटी में बहुत दिनों तक चुनाव नहीं टाल सकती है। इसीलिए मनोज सिन्हा को उपराज्यपाल के तौर पर बहुत बड़ा टास्क सौंपा गया है।